देवगढ के किले में पानी आपूर्ति के लिए अंडरग्राउंड टैंक बना है | जिसमें मुख्य महल की छत और प्रांगण में बहने वाले वर्षा जल को संग्रहित कर वर्षभर की पानी की आवश्यकता पूरी की जाती थी | चूँकि देवगढ किला सैनिक छावनी था अत: सैनिकों व संकटकाल में सीकर के राजपरिवार की आवश्यकता के अनुसार जल संचय करने के लिए इस हौज का निर्माण किया था | पानी के इस स्टोरेज तक दुश्मन को भी पहुँचने के लिए सात सुरक्षा चक्रों को पार करना पड़ता था | इस हौज की छत में पत्थर की पट्टियों को सहारा देने के लिए टोड़ियों का सहारा लिया गया है | इसकी दीवारों में जगह आले बनाये गये हैं, बीच में दीवार, दरवाजे व छोटे छोटे मोखे भी बने है जो छत को मजबूती प्रदान करने के साथ इसे सफाई के लिए उतरने वाले को बैठने की सुविधा प्रदान करते हैं |
देवगढ किले के बाहरी प्रांगण में भी एक छोटा हौज बना है जो यहाँ रहने वाले सैनिकों की जलापूर्ति सुनिश्चित करता था | इसका निर्माण भी किले में बने मुख्य हौज की तर्ज पर ही किया गया है, पर यह छोटा है | जो यहाँ की जरुरत के अनुसार निर्मित किया गया है |
देवगढ किले में जल संग्रहण की जो व्यवस्था है उसे देखकर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे देश में वर्षा जल संग्रह करने की शानदार तकनीक थी, हर किले में ऐसे ही हौज बनाकर जल आपूर्ति के लिए आवश्यक वर्षा जल एकत्र किया जाता था | यही नहीं इसी तर्ज पर हर नगर, गांव व ढाणियों में वर्षा जल संचय करने की परम्परा थी जो हमने आधुनिक बनने के चक्कर में छोड़ दी, रियासती काल में राजाओं, रानियों, समाजसेवियों व धनी व्य्वापरियों द्वारा पक्के तालाब बनाकर जल समस्या का निदान किया जाता था पर अफ़सोस हमने अपनी पारम्परिक तकनीक खो दी और उनके बनाये जलाशयों को कचरे से पाट दिया और पानी आपूर्ति में कमी होने पर हा हा कार करते हैं आन्दोलन करते हैं पर बादलों द्वारा लाई वर्षा की बूंदों को हम नहीं सहेजते | काश हम अपने देश का प्राचीन ज्ञान इस्तेमाल कर पायें और अपना जीवन सुखी बना पायें |