जैसलमेर के शासक जैतसी के राजकुमारों द्वारा अल्लाउद्दीन खिलजी का अकूत खजाना लूटने के बाद नाराज खिलजी ने नबाब महबूब खान के नेतृत्व में जैसलमेर पर आक्रमण के लिए सेना भेजी| इस सेना ने वर्षों जैसलमेर किले को घेरे रखा| इसी दौरान रावल जैतसी के एक पुत्र रतनसी की दुश्मन सेनापति महबूब खान से मित्रता हो गई और वे नित्य एक खेजड़े के पेड़ के नीचे बैठकर शतरंज खेलने लगे| इन दोनों दुश्मनों के मध्य बेशक मित्रता हो गई, पर जब बात कर्तव्य की आती तब दोनों मित्रता भुलाकर एक दूसरे के सामने युद्ध लड़ते|
इसी घेरे के दौरान रावल जैतसी का निधन हो गया और उनके जेष्ठ पुत्र मूलराज सन 1294 ई. में जैसलमेर की गद्दी पर बैठे| चारों और से शत्रु से घिरे होने के बावजूद जैसलमेर दुर्ग में राजतिलक की पारम्परिक खुशियाँ मनाई गई| इन खुशियों का पता चलने के बाद खिलजी अपने सेनापति पर बड़ा नाराज हुआ और उसे आगे बढ़कर किले पर आक्रमण का आदेश भेजा| महबूब खान ने किले पर आक्रमण किया पर अपने नौ हजार सैनिक खोने के बाद भी वह यदुवंशी भाटियों को परास्त नहीं कर पाया| इस हमले में सफलता नहीं मिलने पर खिलजी की सेना निराश हुई| उधर किले में भी बहुत कम सैनिक रह गए, पर शत्रु सेना को वहम था कि अन्दर अभी भी काफी सैनिक है और खाद्य सामग्री की भी कमी नहीं है यही सोचकर खिलजी की सेना पीछे हट गई| तभी महबूब खान को सूत्रों से किले के अन्दर की असलियत का पता चला तो उसने किले पर फिर आक्रमण की तैयारी की और मित्रता के नाते रतनसी को सन्देश भिजवाया कि कल वे फिर आक्रमण करेंगे|
किले की स्थिति को देखते हुए रावल मूलराज व उनके भाई रतनसी ने अपने सभी सम्बन्धियों को एकत्र किया और जौहर-साका करने का निर्णय किया| रतनसी के दो पुत्र घड़सी और कनार थे| बड़े की उम्र बारह वर्ष थी| रतनसी आने वाले सर्वनाश से उन्हें बचाना चाहते थे| इसलिए उन्होंने अपने शत्रु सेनापति महबूब खान को सन्देश भेजकर दोनों बालकों को बचाने का आग्रह किया| मुस्लिम सेनापति ने उनकी रक्षा की प्रतिज्ञा की व उन्हें लाने के लिए अपने विश्वस्त नौकरों को भेजा| केसरिया वस्त्र पहन मातृभूमि के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने को तैयार रतनसी ने अपने पुत्रों के सिर पर हाथ फेरा और उन्हें सौंप दिया| जब वे लड़के शाही खेमे में पहुंचे तब नबाब ने उनका स्वागत किया| दूसरे दिन युद्ध हुआ| किले में जौहर व साका हुआ| रतनसी अद्भुत वीरता प्रदर्शित करते हुए शहीद हुए| किले पर खिलजी की सेना का अधिकार हुआ|
महबूब खान को पता था कि ये दोनों बच्चे जैसलमेर राजवंश के वारिस है, उसने दोनों का अपनी प्रतिज्ञा निभाते हुए लालन-पालन किया| महबूब की मृत्यु के बाद दोनों यदुवंशी राजकुमार महबूब के पुत्र जुल्फिकार व गाजी खान के संरक्षण में रहे| आपको बता दें आगे चलकर सन 1306 ई. में घड़सी ने पुन: जैसलमेर पर भाटी राज्य की पताका फहराई| इस तरह जैसलमेर के भाटी यदुवंश के वारिसों को एक मुस्लिम शत्रु ने बचाकर अपनी उदारता का परिचय दिया|
सन्दर्भ : राजस्थान का पुरातन व इतिहास; कर्नल टॉड