एक गांव में सेठ धनी राम अपने जीवन की आखिरी साँसे गिनते हुए अपने पुत्रों को सही ढंग से व्यवसाय चलाने के तरीके बताते हुए निसीहते दे रहे थे उन्होंने अपने पुत्रो से कहा कि हे पुत्रो ! अपने व्यवसाय में कामयाब होना चाहते हो तो अपनी दुकान पर हमेशा छाया में ही जाना और वापस घर छाया में लौटना | ऐसा करने से तुम कभी अपने व्यवसाय में असफल नहीं होवोगे | इतना कहते ही सेठ धनी राम जी की आखिरी सांस निकाल यमराज ने उनके प्राण हर लिए | सेठ जी की मृत्युपरांत सभी क्रियाकर्मो से निवृत होने के बाद पुत्रो ने सेठ जी की नसीहत अनुसार घर से दुकान पर छाया में आने जाने का निश्चय कर घर से दुकान तक पुरे रास्ते में टेंट लगवा कर छाया करवा दी और उसी टेंट की छाया में प्रतिदिन घर से दुकान पर आते जाते रहे | वणिक पुत्र दुकान पर बहुत कम समय देते रहते थे वे जब मर्जी दुकान पर जाते थे जब मर्जी लौट आते थे | दुकान का सारा काम नौकरों के जिम्मे व मनमर्जी से होने लगा जिस कारण दुकान पर ग्राहकी कम हो गयी और धीरे धीरे दुकान में घाटा होने लगा | घाटा ज्यादा बढ़ने पर वणिक पुत्र चिंता में पड़ गए और सोचने लगे कि ” पिताजी ने कहा था छाया में आना जाना दुकान में कभी घाटा नहीं होगा ” हम दोनों छाया में आते जाते है फिर घाटा क्यों ?
परेशान वणिक पुत्र स्व. सेठ जी के अभिन्न मित्र ताऊ के पास पहुंचे कि ताऊ ही इसका कोई हल सूझा दे | ताऊ को अपनी आप बीती सुनाते हुए वणिक पुत्र ने ताऊ से पूछा
वणिक पुत्र :- हे आदरणीय ताऊ ! स्व. पिताजी के कहे अनुसार हम दोनों भाइयों ने दुकान पर छाया में ही आना जाना निश्चित करने के लिए घर से दुकान तक पुरे रास्ते में टेंट लगा छाया करवा दी और उसी कि छाया में दुकान पर आते जाते है फिर ये दुकान में घाटा क्यों ?
ताऊ :- बावलीबुचो ! तुम्हारे मरहूम बाप का ये मतलब नहीं था कि तुम टेंट की छाया में दुकान पर जावो | अरे बावलीबुचो ! उसका कहने के मतलब था सुबह जल्दी दुकान पर जाना और साँझ ढले देरी से घर आना | जब इतना समय दुकान पर दोगे तब दुकान चलेगी ना |
वणिक पुत्र :- हे आदरणीय ताऊ ! स्व. पिताजी के कहे अनुसार हम दोनों भाइयों ने दुकान पर छाया में ही आना जाना निश्चित करने के लिए घर से दुकान तक पुरे रास्ते में टेंट लगा छाया करवा दी और उसी कि छाया में दुकान पर आते जाते है फिर ये दुकान में घाटा क्यों ?
ताऊ :- बावलीबुचो ! तुम्हारे मरहूम बाप का ये मतलब नहीं था कि तुम टेंट की छाया में दुकान पर जावो | अरे बावलीबुचो ! उसका कहने के मतलब था सुबह जल्दी दुकान पर जाना और साँझ ढले देरी से घर आना | जब इतना समय दुकान पर दोगे तब दुकान चलेगी ना |
ये ताऊ जी हर काम में माहिर है।
ताऊ का नाम जहाँ आये, वहाँ बात निराली होती है
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Tech Prevue: तकनीक दृष्टा
taau isi liye to taau kahlaate hae
sahi baat
मुझे शक है कि वो सच मै ताऊ जी ही थे, क्योकि ताऊ तो सुबह शाम छाता ले कर खुद छाया मै आते जाते है:)
भौत सुंदर कहानी कही आप ने ओर ताऊ की नसीयहत भी सही लगी, सच मै ताऊ ही ऎसी बात समझा सकता है, नालायको को
बहुत सुन्दर । गजब ।
ताऊ न हो तो दुनिया ही रुक जावे..घणा समझदार आइटम है अपणा ताऊ. 🙂
ताऊ बहुत ज्ञानी हैं सबका हल निकाल देते हैं 🙂
वैसे हर आदमी पहले आराम वाली बात ही समझता है और जिस्मे मेहनत करना हो उसमे "ताऊ" की मदद लेनि पडती है :))))
शेखावाटी की शान, मेरा ताऊ महान ॥
आप जिस तरह से इतिहास की जानकारियां देते हैं वैसे ही बीच बीच में हमारी इन देशी मनेजमैंट की कहानियों को देकर एक बहुत ही काम करते हैं. इन कहानियों से हास्य के साथ सुगमता पुर्वक जीवन की बहुत बडी शिक्षा मिलती है. बहुत शुभकामनाएं, इन्हे लिखते रहिये.
रामराम.
इन छोटी छोटी कथा कहानियों के माध्यम से ही जीवन में बहुत कुछ नया सीखने को मिल जाता है………
रोचक कथा!!
बहुत काम के हैं ताऊ! जरा ई-मेल आईडी बताइये तो! 🙂
Bahut hi acchi kahani hai kafi din bad dobara sunne ko mili. Dhanyvad mitra.
Om Namo Narayanaya.
Anantbodh Chaitanya
http://www.sanatandhara.com