नहीं भाता किसी को पतझड़ का आना
पर मैं चाहूँ की वो एक बार पलट के आये
बच गए जो गम वो भी झड़ जाये
अपने आँगन में जमा कर लो अनचाहे ख्याल
मैं आँधी को बुला के उड़वा दूंगी
नम्र निवेदन किया है मैने अग्नि से कि….
वो आपकी नेकी को बिन झुलसाये
बदी को धुंआ बना अपने संग ले जाये
फाल्गुन के संग न्योता भिजवा दिया है चैत्र को
वो संग नई चेतना और उमंगो कि कोपल लेते आये
तुम अटल रहना इरादों पे…..
बैशाख कि लू भी उन्हें झुलसा न पाए
रुक जरा अरमानो के बादल ,
तू उड़ेल न देना सारे अरमां एक ही जगह पर
मै चाहूँ तू छितर जाये
तुम एक बार तो जीतो अपने अहंकार को
जश्न मनाने तो मैं चारो ऋतुओ को बुला लूँगी
मांग लूँगी खुदा से खुशियाँ हर आँगन के लिए
उसने नहीं दी तो ,उसके झोले से चुरा लूँगी
केसर क्यारी ….उषा राठौड़
19 Responses to "दिल है छोटा सा ,छोटी सी आशा"