स्व.आयुवानसिंह जी ने अपनी पुस्तक राजपूत और भविष्य में भविष्यवाणी की थी कि – “भावी युग श्रमजीवी ( दलित ) जातियों के अभ्युत्थान का युग होगा। भारत में अब तक श्रमजीवियों की उन्नति का रूप सामूहिक न होकर व्यक्तिक ही हुआ है। शूद्रों में जो व्यक्ति महान और उच्च होते थे उन्हें उपाधियों आदि से विभूषित करके उच्च वर्ण वाले अपने में मिला लेते थे। पर अब समय आ गया है कि जब शुद्रत्त्वसहित शूद्रों का समाज पर प्रभुत्व होगा। अर्थात् अब तक जिस प्रकार शूद्र जाति ब्राह्मणत्व, क्षत्रियत्व अथवा वैश्यत्त्व प्राप्त कर समाज पर प्रभुत्व जमाती आई है इसके विपरीत भविष्य में यह अपने शुद्रोचित धर्म-कर्म और स्वभाव सहित समाज पर अधिपत्य स्थापित कर लेगी। भारतीय प्रजातान्त्रिक प्रणाली द्वारा भी बहुसंख्यक श्रमजीवी शूद्रों के उत्थान का सूत्रपात हो गया है।”
आयुवानसिंह का 1956 में लिखा सच भी हुआ है आज देश की राजनीति में हर दल के एजेन्डे में दलित मुद्दा सर्वोपरी है. लेकिन विडम्बना है कि एक तरफ दलित उत्थान सत्तारूढ़ बुद्धिजीवी वर्ग के लुभावने कार्यक्रमों के जाल में फंसा है वहीं दलितवाद की नई पीढ़ी का प्रेरणा स्त्रोत आस्तिकवाद पर आधारित भारतीय जीवन-दर्शन के विपरीत नास्तिकवाद पर आधारित विदेशी जीवन दर्शन है| घृणा, वर्ग-द्वेष और पाशविक बल इसके वे साधन है जिनके द्वारा वह समाज पर पूर्ण प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है, जो देश के सामाजिक ढांचे के लिए घातक है| यह राजपूत जाति के लिए ही नहीं राष्ट्र के लिए भी ऐसा भयंकर खतरा है जो शायद इतिहास में पहले कभी नहीं आया|
ऐसे में प्रश्न उठता है कि राजपूत क्या करे ? इसका उपाय भी आयुवानसिंह जी ने अपनी पुस्तक में सुझाया है| उन्होंने इसी दलित वर्ग को श्रमजीवी वर्ग की संज्ञा देते हुए इसे हमारा मित्र बताया है| इसी श्रमजीवी वर्ग के सहारे हमारे पूर्वजों ने हजारों वर्ष इस देश पर राज किया| लेकिन बुद्धिजीवी-वर्ग ने इसी श्रमजीवी-वर्ग को ढाल बनाकर हमारे सामने खड़ा किया और हमें सत्ताच्युत कर दिया। उसने हमें बड़ी चतुराई से श्रमजीवी-वर्ग से पृथक करके शोषक और अत्याचारी का रूप दे दिया, तथा स्वयं उनके मुक्तिदाता के रूप में आगे आ गया। सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय, राजनैतिक न्याय, सामाजिक समता, आर्थिक समता, राजनैतिक समता आदि मनमोहक सिद्धांतों की ओट लेकर इस बुद्धिजीवी-वर्ग ने हमारे और अन्य श्रमजीवी वर्गों के बीच फूट का बीजारोपण कर सत्ता प्राप्त किया है, चुनावों में विजयी हुआ है तथा उसी सिद्धांत को आधार मानकर हमें कुचलने का प्रयास किया है।
आज श्रमजीवी वर्ग का दलितवाद के नाम पर हो रहे उत्थान को आयुवानसिंहजी ने निश्चित होना लिखा है व इसको रोकने के प्रयास निरर्थक बताये हैं| उन्होंने लिखा है- राजपूतों को शुद्रत्त्व के निकृष्टतम गुणों सहित जो अभ्युत्थान होने जा रहा है उसे रूपांतरित कर भारतीय संस्कृति और वातावरण के अनुकूल श्रमजीवी अभ्युत्थान के रूप में प्रकट करना है। इस प्रकार के अभ्युत्थान में कन्धा भिड़ा कर हमें योग देना है। भविष्य में राजपूतों को श्रमजीवी अभ्युत्थान में सहायक होने के लिए पहले उस वर्ग के साथ एकाकार होना होगा। उसके साथ एकाकार होने का अर्थ है समान स्वार्थ और हितों को एकाकार करना। यह एकाकार मुख्यतः राजनैतिक और आर्थिक हितों के एकाकार के रूप में होगा, पर ऐसा करते समय सामाजिक जीवन के घृणात्मक और विभेदात्मक पहलुओं का शुद्धिकरण आवश्यक है।
संक्षेप में कहें तो महान क्षत्रिय चिन्तक आयुवानसिंहजी ने हमें साफ़ रास्ता सुझाया कि- बुद्धिजीवी व पूंजीपति वर्ग का चक्कर छोड़ हमें श्रमजीवी जातियों को साथ लेकर चलना है और नास्तिकवाद और विदेशी जीवन दर्शन पर हो रहे दलित उत्थान को भारतीय संस्कृति और वातावरण के अनुकूल रूपांतरित कर उसे दिशा देनी है यही युगधर्म है जो देश, समाज व भारतीय संस्कृति के हित में है|
Sw. Aayuwan Singh Ji was a great social thinker, Chanakya of Rajputs, reformer and great far sighted writer who gave us a blue print for social political up-lifting way back in 1950s. When he saw the upsurge of downtrodden sc-st and making use of them by congress Brahmin lobby by promoting new sc turned Babu (Jagjiwan Ram) and ruled the country till 1966. SO AAYUWAN SINGH JI IS THE REAL MASHIHA OF RAJPUTS IN TRUE SENSE OF THE WORD. Unfortunately our youth is 7×24 busy in social media whatsapp etc and roam in darkness. I doubt even KYS boys are taught his lessons (being former Sangh Pramukh) in their shakhas-camps. Thanks for this post.