आज जाना है की तड़प क्या होती हैं ,
किसी से बिछड़ने की कसक क्या होती हैं
जितना करीब जाना था उसके
वो उतना परे खिंच जाता हैं
जब भी डूबना चाहा मैने उसमे,
वो खुद सूखता जाता हैं
कब समझेगा वो पागलपन मेरा ,
खुद ही जब बावला बना बैठा हैं
ना जाने क्या हरा दिया उसने मुझे कि,
जीत के जश्न में बैठा हैं
कोई मोह वाले ने तो कब का समा लिया होता खुद में.
पर मुझे भी इस निर्मोही का आगोश भा गया हैं |
केशर क्यारी….उषा राठौड़
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