Home Historical Facts ताम्बे की नगरी में खोया नेहरु वंश का इतिहास

ताम्बे की नगरी में खोया नेहरु वंश का इतिहास

1
ताम्बे की नगरी में खोया नेहरु वंश का इतिहास

ताम्बे की नगरी में खोया नेहरु वंश का इतिहास : ताम्बे की खदानों वाले खेतड़ी में गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस का प्रमुख मठ है| आकर्षक राजपूत शैली के भव्य मठ से उसके इतिहास के रंग सामने आते हैं| अध्यात्म का यह केंद्र कभी खेतड़ी राजघराने के दीवान पंडित नन्दलाल नेहरु का राजसी निवास था| इस ऐतिहासिक भवन के गर्भ में नेहरु वंश की मुफलसी की दास्तान छिपी है| यह कोई 1861 की बात है| दरबदर घूमते पंडित गंगाधर की मृत्यु आगरा में हुई | उनके दो लड़कों बंशीधर और नन्दलाल पर कुनबे का बोझ आन पड़ा| उनकी माँ श्रीमती जीओरानी गर्भ से थी| आगरा कालेज के प्रिंसिपल एन्डरसन की सिफारिशी चिट्ठी लेकर 17 वर्षीय नन्दलाल देशी रियासतों की सरहदों, जंगलों को पार करते खेतड़ी के तत्कालीन राजा फतहसिंह के पास पहुंचे| युवा नन्दलाल खेतड़ी के राजा फतहसिंह के यहाँ निजी शिक्षक नियुक्त हुए| उनकी तनखा डेढ़ रूपये मासिक थी| वह खेतड़ी अपनी माँ, बहनों को भी ले गए| इसी बीच 6 मई, 1861 को मोतीलाल नेहरु पैदा हुए| नन्दलाल की कुछ ही दिनों में अपने राजा फ़तेहसिंह से गहरी छनने लगी| राजा फ़तेहसिंह उनसे दो वर्ष ही बड़े थे| उधर राधाकृष्ण को राजा के निजी सचिव पद से हटाये जाने से राजा को वह स्थान भरना था| राजा फहतसिंह ने नन्दलाल कौल नेहरु को अपना सचिव, लाला हरनारायण श्रीमाल, ज्वालासहाय को हाकिम और ठाकुर सौभागसिंह को मुसाहिब नियुक्त किया| 1862-63 में खेतड़ी के राजा के सामने मुख्य चुनौती बाकायदा शासनाधिकार, तीन लाख का कर्ज चुकाने और दरबारी षड्यंत्रों से निपटने की थी, जिसे नन्दलाल के समूह ने स्वीकारा| तब तक वे खेतड़ी के दीवान नियुक्त हो चुके थे| उन्होंने कर्ज चुकाने के लिए गांवों की मालगुजारी कर्जदाताओं को देने का फैसला किया|

घरेलु मोर्चे पर भी नन्दलाल की परेशानी कम नहीं थी| उनकी युवा माँ जीओरानी के दूधमुंहे बच्चे और भाई मोतीलाल नेहरु के लिए दूध पिलाने की समस्या थी| माँ के दूध ही नहीं उतर रहा था| चुनांचे धाय की तलाश आरम्भ हुई| तलाश के दौरान पता चला कि उनके बागवान लख्मीराम के घर भी एक पुत्र पैदा हुआ है| सो, लख्मीराम की युवा पत्नी को मोतीलाल को दूध पिलाने के लिए चुना गया| वह मोतीलाल को दूध पिलाने के लिए तैयार हो गयी| उसने मोतीलाल को ढाई वर्ष तक दूध पिलाया, पाला-पोसा| उसका नवजात पुत्र तुला मोतीलाल का संगी बना| मोतीलाल अपने बड़े भाई नन्दलाल के दीवानखाने, खेतड़ी के रेतीले टीलों, खेजड़ी, रोहिड़ा वृक्षों पर खेलते बड़े होने लगे| दीवान नन्दलाल और उनकी माँ की छूट ने उन्हें जिद्दी, क्रोधी, पर कुशाग्र बुद्धि का बनाया| उन्हें अपने निर्णय स्वयं करने होते थे| धाय माँ के शेखावाटी का दूध पंडित मोतीलाल में करारापन लाया| उन्हें राजा फतहसिंह के उस्ताद काजी सदरूद्दीन अरबी-फारसी पढ़ाने आते थे| अंग्रेजी उर्दू की तालीम अलग से दी जा रही थी|

दीवान नन्दलाल को सबसे पहले राजा फतहसिंह की माँ मांजी राणावतजी से चुनौती मिली| राजमाता और फतहसिंह के बीच फूट पड़ी हुई थी| माता राणावतजी के जाबांज लड़ाके रियासत में मनमानी मालगुजारी बटोरने लगे| खेतड़ी की सेना का दाखिला १० किलोमीटर पर बवाई परगने में रोका गया| घमासान लड़ाई में मांजी राणावतजी राजमाता की सेना हारी| इस युद्ध का समाचार सुनकर ब्रितानीराज का प्रतिनिधि मेजर ब्रुक खेतड़ी आया| राजा फतहसिंह व पंडित नन्दलाल ने उन्हें अंग्रेजी में पूरा किस्सा बयान किया| तब कहीं जाकर राजमाता के रहने का बंदोबस्त जयपुर के खेतड़ी हाउस में हुआ| अभी दो वर्ष भी नहीं गुजरे कि 1864 में ब्रितानीराज के प्रतिनिधि डब्लू.एच. बैनन ने शेखावाटी के दौरे का कार्यक्रम बनाया| वकील रपट का अनुसार जयपुर रियासत के वकीलों ने बैनन से शिकायत की कि राजा फतहसिंह अंग्रेजों के खिलाफ है| खेतड़ी के एय्यारों ने यह समाचार दीवान नन्दलाल को दिया| उन्होंने राजा फतहसिंह से सलाह की कि वे बैनन को गोपनीय तरीके से शेखावाटी के रास्ते में मिलकर जयपुर के पुराने झगड़ों की जानकारी दें| राजा फतहसिंह बैनन से उदयपुरवाटी में मिले और उनकी राजसी आगवानी की| इससे बैनन और फतहसिंह में अंतरंगता हुई| बैनन ने फतहसिंह को कलकत्ता आकर गवर्नर सर लारेंस से मिलने को कहा| 3 दिसम्बर 1864 को सर लारेंस और राजा फतहसिंह की ऐतिहासिक मुलाक़ात हुई| रातोंरात खेतड़ी की तूती देशी रजवाड़ों में बोलने लगी| दीवान नन्दलाल ने किसानों को शोषण से मुक्त कराने के लिए कानून बनाया| फौजदारी, दीवानी मुकदमों के लिए पृथक न्यायालय गठित हुआ| नई सड़कों का जाल बिछा| अस्पताल खुले| खेतड़ी, कोटपुतली में अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था वाले स्कुल आरम्भ हुए| समूची प्रशासनिक व्यवस्था बदली गई|

मोतीलाल अभी दस वर्ष के भी नहीं थे कि उन्हें खेतड़ी में अपने बालसखा राजा अजीतसिंह, तुला आदि को छोड़कर अनजान मंजिल की तलाश में जाना पड़ा| इस तरह 10 वर्ष राज भोगने के बाद मंडराती आफतों को देख दीवान नन्दलाल ने खेतड़ी छोड़ने में ही अपनी खैर समझी| वे अपने संयुक्त परिवार के साथ पिता की स्मृतियों से जुड़े आगरा में आ बसे| उनके सामने समस्या था कि व्यवसाय क्या किया जाए? दीवानी करने के बाद नौकरियां बंधन लगती थी| उन्होंने वकालत को चुना| उनका शासनानुभाव, अंग्रेजी का ज्ञान और बड़े लोगों से ताल्लुकात काम आने लगे| आरम्भ में नन्दलाल ने आर्थिक बदहाली में मोतीलाल को अपने बड़े भाई बंशीधर के यहाँ कानपुर भेजा| कुछ ही वर्षों में नन्दलाल वकालत की दुनिया में छा गए| तब उन्होंने मोतीलाल को आगरा बुलाया| सन 1875 में प्रयागराज इलाहबाद में उच्च नायालय बना तब पंडित नन्दलाल इलाहबाद जा बसे| उन्होंने मोतीलाल को इलाहबाद बुलाकर दुनियादारी की दीक्षा दी| उनके दो विवाह हुए| दूसरा विवाह पहली पत्नी के मरने के बाद हुआ| उन्हें पत्नी नन्दरानी से पांच पुत्र बिहारीलाल, मोहनलाल, श्यामलाल, किशनलाल, ब्रजलाल और दो पुत्रियाँ हुई|

सन 1880 में खेतड़ी के राजा अजीतसिंह को विधिवत शासक घोषित किया गया| राजा अजीतसिंह के लिए जहाँ पंडित नन्दलाल पितातुल्य थे वहीं मोतीलाल बालसखा थे| उनके सम्बन्ध परवान चढ़े, पर नियति को पंडित नन्दलाल की यह स्थिति मंजूर नहीं थी| 42 वर्ष की उम्र में अप्रैल 1887 में उनकी मृत्यु हुई| उनके संयुक्त परिवार में सबसे उनका 16 वर्षीय छोटा भाई मोतीलाल था| आकर्षक कश्मीरी व्यक्तित्व के मोतीलाल के सामने कुनबे के पालन-पोषण की जिम्मेदारी आई| उन्होंने भी स्वर्गीय पंडित नन्दलाल के नक्शेकदम पर चलते हुए वकालत करने का फैसला किया| उनके भी दो विवाह हुए| स्वाभाविक रूप से पहली पत्नी का देहांत हुआ था| वह गर्भावस्था में मरी थी| दूसरी पत्नी स्वरूप रानी का भी पहला बच्चा मर गया| इसलिए दूसरा बच्चा होने से पहले मोतीलाल ने धार्मिक स्थानों तथा साधू-संतों के स्थलों पर अरदास की| पहले और इकलौते लड़के जवाहरलाल 14 नवम्बर 1889 को पैदा हुए| खेतड़ी के राज ज्योतिषी पंडित रुड़मल शर्मा ने जवाहरलाल की जन्मपत्री बनाते हुए उसके शहंशाह होने की भविष्यवाणी की|

नवम्बर 1892 में राजा अजीतसिंह प्रयागराज इलाहबाद आये| वे अपने साथ मोतीलाल की धाय को भी ले गए थे| धाय ने शेखावाटी की बोली में लिखाया कि पंडित मोतीलाल के घर टेनिस खेली जा रही थी| उनके घर के बच्चे आये, जिनमें दीवान नन्दलाल के लड़के ब्रजलाल और तीन वर्षीय जवाहरलाल के हाथों में 5-5 रूपये रखे गये| पंडित मोतीलाल के घर से थाल तैयार होकर आया| अगले दिन धाय ने लिखवाया कि मोतीलाल के साथ म्योर कालेज देखा| कुल मिलाकर धाय को मोतीलाल ने माँ जैसा सम्मान दिया| हिंदुस्तान की छह सौ के लगभग देशी रजवाड़ों की दुनिया में अध्यात्मिक ज्योति जगाने का श्रेय खेतड़ी के राजा अजीतसिंह को जाता है| उन्होंने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य विवेकानन्द को विश्वधर्म सम्मलेन में भाग लेने अमेरिका भेजने का बंदोबस्त किया था| इसके बाद खेतड़ी के राजा अजीतसिंह ने पंडित मोतीलाल नेहरु को ब्रिटेन भेजकर ब्रितानी साम्राज्य की शोषणकारी व्यवस्था से साक्षात्कार करवाकर स्वाधीनता संग्राम को एक सेनानी दिया| खेतड़ी के रियासती दस्तावेजों में पंडित मोतीलाल नेहरु के अजीतसिंह को लिखे पत्र यात्रा के उद्देश्य और लन्दन के ब्योरों की जानकारी देते हैं|

उन्होंने पत्र के जरिये राजा साहब से 11 वर्षीय जवाहरलाल के लिए घोड़ा भेजने की व्यवस्था चाही, जिससे वह घुड़सवारी का अभ्यास नहीं भूले| मोतीलाल पर राजपुताना के रजवाड़ों का रंग छाया हुआ था| इसीलिए वे अपने शहजादे जवाहर के लिए रंगीले राजस्थान की लड़की तलाशने लगे| उनकी नजर आमेर पर गई| जयपुर के राजा रामसिंह के कश्मीरी दीवान पंडित मोतीलाल अटल के पौत्र जवाहर कौल की पुत्री कमला से ही जवाहरलाल नेहरु की शादी हुई| जयपुर में ही कमला की लाड़ली बिटिया अर्थात् इंदिरा का बचपन बीता| वनस्थली यात्रा के साथ सर मिर्जा इस्माइल प्रसंग जुड़ा है| नबाबी खानदान के मिर्जा इस्माइल को जब यह मालूम हुआ कि वनस्थली की पगडंडियों पर चलने के कारण बीमार हुई है तब उसी क्षण निर्माण विभाग प्रधान सर तेजसिंह मलिक को वनस्थली में सड़क निर्माण का हुक्म दिया|

नोट : यह लेख वर्ष 1991 अख़बार में छपा था, जिसकी कटिंग की फोटो लेख में लगाईं गई| हमारे पास उपलब्ध कटिंग में लेखक का नाम पूरा नहीं होने के कारण हम लेखक का नाम नहीं लिख सके|

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Exit mobile version