गांव के बाहर खेतों में बने घर को राजस्थान में ढाणी कहकर पुकारा जाता है खेती करने वाले किसान अपने खेतों की अच्छी तरह से देखभाल करने के लिए अक्सर खेत में बनी ढाणियों में ही रहते है |ये ढाणियां वहां रहने वाले की आर्थिक स्थिति के हिसाब से पक्के मकानों की या फिर कच्चे झोंपड़ों की बनी होती है | प्रकृति माँ की गोद में बसी इन ढाणियों के शांत व् एकांत वातावरण में रहना बहुत शकुन देता है लेकिन जीने के लिए जरुरत की अल्प सुविधाओं के चलते इन ढाणियों में रहना इतना आसान भी नहीं है हालाँकि आजकल बिजली की सुविधा के चलते किसानो द्वारा सिंचाई के लिए अपने अपने खेतों में कुँए व ट्यूब वेळ बनाने से रौशनी व पानी की सुविधा होने से ढाणियों में भी रहना आसान हो गया है , व्यक्तिगत यातायात व संचार के बढे साधनों ने भी ढाणियों का जीवन आसान किया है वरना पहले ढाणियों में आने जाने के लिए कई कई किलोमीटर पैदल ही चलना पड़ता था साथ ही पानी की कमी ढाणियों के जीवन को सबसे ज्यादा कठिन बनाती थी आज भी बाड़मेर व जैसलमेर जिलों की ढाणियों में रहना बहुत ही दुष्कर है वहां के लोगो को आज भी कई कई किलोमीटर चलकर सिर पर पानी के मटके ढ़ोने पड़ते है |
ढाणी शब्द की लोकप्रियता को देखते हुए आजकल महानगरो के पास ढाणी के नाम से राजस्थानी थीम के कई होटल और रिसोर्ट खुल गए है जैसे चोखी ढाणी,आपणी ढाणी आदि आदि | इन ढाणी के नाम वाले होटलों में राजस्थानी खाना ,नृत्य ,संगीत व राजस्थानी आवभगत की व्यवस्था होती है | राजस्थानी परिवेश को दर्शाती ये ढाणी के नाम वाली होटल्स आगुन्तक को बहुत अच्छा प्रभावित करती है | जयपुर के पास चोखी ढाणी नाम से बना रिसोर्ट तो देश विदेश में अपनी पहचान बना चूका है |

13 Responses to "ढाणी"