ठाकुर हाथीराम जी ठा. जोरावरसिंह के पुत्र थे। उन्होंने सुलताना को अपना संस्थान बनाया। वे वीर एवं उदण्ड प्रकृति के योद्धा थे। बीकानेर राज्य के पूर्वी भागों में छापे मार कर उन्होंने वहां के अनेक गांव लूटे और पूनियाणा (रिणी) परगने के दो गांवों पर अधिकार जमा लिया। उनका तर्क था कि- वे गांव पहले नरहड़ परगने के भाग थे। और नरहड़ पर चूंकि शार्दूलसिंहोतों का अधिकार था, अतः वे गाँव उनके अधिकार क्षेत्र के थे। सं. 1813 वि. में सिंघाणा के गाँवों के बैंट को लेकर सादावतों में विवाद उठ खड़ा हुआ। एक तरफ ठाकुर नवलसिंह और उनके छोटे भाई केशरीसिंह थे। दूसरी तरफ खेतड़ी के भोपाल सिंह और चौकड़ी के ठा. अर्जनसिंह थे। ठाकुर हाथीराम आदि जोरावरसिंह के समस्त पुत्रपौत्र चौकड़ी वालों के पक्ष पर थे। बीकानेर के महाराजा गजसिंह ने ठा. नवलसिंह की मदद पर अपनी सेना भेजी। इस पर ठा. भोपालसिंह ने जयपुर से मदद मांगी।
जयपुर नरेश महाराजा सवाई माधवसिंह प्रथम ने धूला के राजावत रघुनाथसिंह दलेलसिंहोत को यह आदेश देकर भेजा कि वह दोनों पक्षों में समझौता करावे और युद्ध की नोबत न आने दे। रघुनाथसिंह ने दोनों पक्षों को समझा कर समझौता कराया और उस समझौते के फलस्वरूप पूनियाण परगने के वे दो गांव जो हाथीराम ने दबा लिये थे, बीकानेर वालों को वापिस सौंपे गये। (महता बख्तावरसिंह की ख्यात हस्तलिखित पृ. 94)। खेतड़ी के शासक भोपालसिंह ने लोहारू पर चढ़ाई की (सं. 1828 वि.) उस युद्ध में खेतड़ी की सेना का संचालन ठा. हाथीराम ने किया और शत्रु सेना को धकेल कर वे गढ़ के दरवाजे तक पहुंच गये। यद्यपि ठा. भोपालसिंह उसी युद्ध में मारे गये किन्तु विजय खेतड़ी वालों की हुई। (बिसाऊ के कागजात से)
माण्डण के युद्ध में ठाकुर हाथीराम जी शामिल थे। उन्होंने युद्ध में अद्भुत शौर्य प्रदर्शित किया एवं भागती शत्रुसेना का कोसों तक पीछा करके उसे लूटा और हानि पहुँचाई। (माण्डण युद्ध छन्दसंख्या 33, 60, 68, 69) सं. 1842 वि. में बिसाऊ पर चढ़ दौड़े। बिसाऊ के ठा. सूरजमल को उनके उस कार्य की ठीक समय पर सूचना मिल जाने से उनका वह प्रयास सफल नहीं हुआ और भग्नमनोरथ उन्हें वहां से लौट जाना पड़ा। हाथीराम जी के वंशज सुल्ताना, ख्याली, भोड़की और ऊदास आदि गांवों में आबाद है।
ठाकुर सुरजनसिंह जी शेखावत द्वारा लिखित “मांडण युद्ध” पुस्तक से साभार