भवानीपुरा के जागीरदार ठा. मोड़सिंहजी सम्बन्ध में राव गोपालसिंह के निकटस्थ चाचा होते थे। राव गोपालसिंह के प्रपितामह राव रामसिंह के लघु भ्राता श्यामसिंह के पुत्र देवीसिंह के, मोड़सिंह पुत्र थे। खरवा के क्षत्रियोचित्त वातावरण में पले-पोषे मोड़सिंह घुड़सवारी और शस्त्र संचालन में पूर्ण दक्ष थे। अपने पूर्व पुरुषों से विरासत में प्राप्त वीरता, निडरता और साहस आदि गुण उनमें मौजूद थे। स्वभाव से तेज मिजाज और क्रोधी होने के बावजूद उनकी क्षत्रियोचित उदारता उल्लेखनीय है। राव गोपालसिंह के पूर्ण विश्वास पात्र थे। उनके क्रान्तिकारी कार्यों में छाया की भांति वे राव साहब के साथ बने रहे।
टॉडगढ़ की नजरबन्दी के बाद फरारी अवस्था में भी वही उनके साथ थे। सलेमाबाद के मन्दिर में अंग्रेज सेना द्वारा घेर लिए जाने पर वह राव गोपालसिंह के साथ उस स्वातंत्रय यज्ञ में प्राणों की आहुति देने को भी वे मौजूद थे। इस प्रकार मोड़सिंह विपत्ति काल में हरदम उनके साथ बने रहे । वास्तव में वे एक वीर राजपूत थे। उनके पुत्र लक्ष्मणसिंह का अधिकांश जीवन फरारी अवस्था में बीता था।
ठाकुर सुरजनसिंह शेखावत, झाझड़ द्वारा लिखित पुस्तक “राव गोपालसिंह खरवा” से साभार