ठाकुर महेशदास आसोप : सुमेलगिरी के समरांगण में मातृभूमि के लिए प्राणों का उत्सर्ग करने वाले वीरवर कूंपा की वंश परम्परा में जन्में ठाकुर महेशदासजी की वीरता का बखान मारवाड़ के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा है | ठाकुर महेशदासजी का जन्म वि.सं. 1803 में हुआ था | आपके पिता कुंवर दलपतजी थे और माता का नाम अमर कँवर नरुका था | आपके पिता कुंवर दलपतजी का कुंवर पदे ही देहांत हो गया था, अत: आसोप के ठाकुर दादा कनीरामजी के निधन के बाद आप आसोप ठिकाने की गद्दी पर बैठे | आसोप मारवाड़ राज्य का महत्त्वपूर्ण ठिकाना रहा है | वीरवर कूम्पाजी के वंशज आज कूंपावत राठौड़ कहलाते हैं|
ठाकुर महेशदासजी अपने ज़माने के उदभट वीर थे और उन्होंने मारवाड़ राज्य की रक्षा व राज्य में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए अनेक युद्ध लड़े और हर युद्ध में वीरता प्रदर्शित की | महेशदासजी ने मुस्लिम शासकों और राजस्थान में चौथ वसूलने आने वाले पेशवा शासकों भी अनेक युद्ध किये, जिनमें तुंगा व मेड़ता के युद्ध प्रमुख है |
कूंपावत राठौड़ों के वृहद इतिहास में लिखा है कि वि.सं. 1847 में माधोराव सिंधिया ने लकवादादा लाड़ (यह सारस्वत ब्राह्मण था और सिंधिया का सेनापति था) और डिबोई (यह फ़्रांसिसी जनरल था) के नेतृत्व में एक बड़ी देकर उन्हें राजपूताने की रियासतों से चौथ वसूलने के लिए भेजा | मराठी सेना तंवरावाटी के पाटण पहुंची जहाँ अन्य रियासती सेनाओं के साथ महेशदासजी ने भी मुकाबला किया, इस युद्ध में मराठा सेना के पांव उखड़ गये पर मराठों ने आगे बढ़कर अजमेर पर अधिपत्य जमा लिया|
अजमेर विजय करने के बाद मराठा सेना जोधपुर पर आक्रमण के लिए बढ़ी, जिसका मेड़ता के पास जोधपुर की सेना से सामना हुआ | मेड़ता जा रही मराठा सेना के जनरल डिबोई की तोपें अलानियावास की नदी में फंस गई | उस वक्त आसोप के ठाकुर महेशदासजी व आउवा के ठाकुर शिवसिंहजी डिबोईन पर हमला कर उसकी तोपें छिनना चाहते थे, पर जोधपुर के सेनापति सिंघी भींवराज ने अनुमति नहीं दी | अत: डिबोईन अपनी तोपें निकालने में सफल रहा और मोर्चाबंदी कर गोलाबारी शुरू कर दी | 80 तोपों की गोलाबारी के आगे जोधपुर के सेनापति सिंघी भींवराज व भंडारी गंगाराम टिक नहीं सके और भाग खड़े हुए, तब आउवा के ठाकुर शिवसिंहजी के आव्हान पर ठाकुर महेशदासजी अपने महज 22 योद्धाओं के साथ डिबोईन के तोपखाने पर तलवारें लेकर टूट पड़े|
ठाकुर महेशदास आसोप डिबोई की तोप तक पहुँच गये, डिबोई ने घोड़े पर सवार ठाकुर महेशदासजी का रोद्र रूप देखा तो डर के मारे तोप के नीचे घुस गया | महेशदासजी ने अपनी फौलादी तलवार से वार किया तो डिबोईन तो बच गया पर उसकी तोप की नाल कट गई | इस प्रचंड आक्रमण से जहाँ मराठा सेना में खलबली मच गई, वहीं मारवाड़ की सेना के अन्य सरदारों में जोश का संचार हुआ और वे मराठा सेना पर भूखे शेरों की टूट पड़े | मराठा सेना भाग खड़ी हुई, पर इस युद्ध में ठाकुर महेशदासजी का सिर कट गया और वे मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो गये |
ठाकुर महेशदासजी की घोड़ी उनका मस्तक विहीन धड़ आसोप ले आई, जहाँ उनका दाह संस्कार किया ग्या, उनकी ठकुरानी सोलंकीजी उनके साथ सती हो गई | आज उस स्थान पर उनकी याद में एक चबूतरा बना है और उस पर उनकी देवली लगी | ठाकुर महेशदासजी के सिर का दाह संस्कार मेड़ता के पास किया गया, जहाँ भी उनकी स्मृति में छतरी बनी है| इस तरह आसोप के ठाकुर महेशदास आसोप ने अपनी मातृभूमि के लिए प्राणों का उत्सर्ग कर अपने पूर्वज वीरवर कूंपाजी की बलिदानी परम्परा को कायम रखा |
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