ठाकुर भाखरसिंह कूंपावत : गजसिंहपुरा गांव के तालाब किनारे एक छतरी के रूप स्मारक बना है | इस छतरी के मध्य घोड़े पर सवार एक योद्धा की प्रतिमा बनी है, प्रतिमा में योद्धा के घोड़े के आगे एक महिला की भी छवि बनी है | गजसिंहपुरा गांव के रहने वाले ठाकुर सुमेरसिंह कूंपावत के अनुसार ये छतरी उनके पूर्वज ठाकुर भाखरसिंहजी कूंपावत की है | ठाकुर भाखरसिंह जी आसोप के प्रसिद्ध ठाकुर नाहरखानजी के पुत्र थे और गजसिंहपुरा गांव उनको जागीर में मिला था | सुमेरसिंहजी के अनुसार भाइयों में अनबन थी, इसी अनबन के चलते भाखरसिंहजी के बड़े भाई ने उनकी हत्या के इरादे से एक जहर बुझा बाना (पोशाक) भेजा |
सुमेरसिंहजी ने आगे बताया कि जहर बुझे बाने को पहनने के बाद उनकी मृत्यु हो गई | इनके निधन के कुछ समय बाद पालड़ी गांव के एक जाट के बैल खो गये | तब जाट ने भाखरसिंहजी को याद किया कि – हे दाता ! आज आप होते तो मेरे बैल तलाश लाते | कहते हैं कि मृत ठाकुर भाखरसिंह जी ने जाट के वे बैल तलाशे और पालड़ी की तरफ आ रहे एक व्यक्ति को ये कहते हुए संभाला दिए कि – पालड़ी के फलां जाट को ये बैल दे देना, उसकी के है |
इस घटना के बाद ठाकुर भाखरसिंहजी को स्थानीय लोग लोक देवता के रूप में भौमिया जी महाराज कहकर पूजते हैं | वर्तमान में उनकी छतरी का उनके वंशजों यानी गजसिंहपुरा गांव के वासियों ने मिलकर जीर्णोद्धार किया और आस-पास पौधे लगाकर एक सुन्दर जगह बना दी | हर माह की चतुर्दशी के दिन यहाँ पूजा अर्चना करने आने आस-पास के ग्रामीणों की भीड़ लगती है | नव विवाहित जोड़े भौमिया जी महाराज के धोक लगाकर अपने सूखी वैवाहिक जीवन के लिए आशीर्वाद लेते हैं |
इस तरह गजसिंहपुरा गांव के जागीरदार यानी जोधपुर के सामंत ठाकुर भाखरसिंह कूंपावत आज भी लोगों के दुःख दर्द दूर कर लोक देवता यानी भौमिया जी महाराज के रूप में पूजित है |