एक ठाकुर साहब खेतों में अपनी गाय चरा रहे थे। उसी समय एक घोड़ों का व्यापारी कुछ घोड़े लेकर पास से गुजर रहा था। ठाकुर साहब ने उसे रोका और घोड़े की कीमत पूछी। व्यापारी को लगा कि एक गाय चराने वाला क्या घोड़ा खरीदेगा, सो उसनें यह कहते हुए कीमत बताने से इंकार कर दिया कि घोड़ा खरीदना उसके बस की बात नहीं। बस फिर क्या था। ठाकुर साहब ने ठान लिया कि कुछ भी हो व्यापारी से वह घोड़ा खरीदकर ही मानेंगे। सो उन्होंने घोड़े की कीमत सीधे ही दुगुनी से ज्यादा बताते हुए कहा- इस घोड़े के दस हजार रूपये दूंगा। बेचेगा ?
व्यापारी ने सोचा ठाकुर के मुर्ख बनने से उसे मुनाफा हो रहा है तो क्यों ना मुनाफा कमा लिया जाय और व्यापारी ठाकुर को घोड़ा बेचने को तैयार हो गया।
ठाकुर साहब ने उसे रुपयों की व्यवस्था करने तक गांव के बाहर इंतजार करने का कहा और खुद गांव में रुपयों का इंतजाम करने चल पड़े। ठाकुर साहब ने घर रखे रूपये लेने के बाद गांव में उधार लेने की खूब कोशिश की पर वह मात्र 6000 रूपये एकत्र कर पाये और आखिर 6000 रूपये लेकर वह सीधे व्यापारी के पास आये और रूपये देते हुए बोले- यह लो 6000 रूपये और बाकी के 4000 रूपये के बदले जो घोड़ा मैंने तुमने से खरीदा है वह ले जाओ।
व्यापारी साहब ठाकुर साहब की बात सुनकर हैरान था कि ठाकुर बिना घोड़ा पाए ही 6000 रूपये मुझे मुफ्त में दे रहा है। तब उसने ठाकुर साहब से पूछा कि ऐसा सौदा करने से उन्हें क्या लाभ हुआ ?
ठाकुर साहब बोले- हम ठाकुर है, लाभ-हानि की बातें नहीं सोचते। जुबान रखने की बात सोचते है। मुझे 6000 रूपये खोने के बाद भी भले ही घोड़ा नहीं मिला, पर मैंने तुमसे जो जुबान की थी वह बच गई। जो एक ठाकुर के लिए काफी है।
(पूर्व आईएएस हुकमसिंह राणा के उद्बोधन से)
GooD
प्राण जाए पर वचन जाए ।
युग युग से राजपूत अपने जुबान के लिए जाने जाते है ।
very good