जयपुर पर हमला करने आये मराठों को जयपुर की जनता के रोष का सामना करना पड़ा और देखते देखते ही जयपुर की जनता ने मारकाट मचाकर डेढ़ दो हजार मराठों को मार दिया | इसके बाद डेढ़ वर्ष तक राजपुताना में लूटने व चौथ वसूली करने के लिए आने वाले मराठा दस्तों का आना रुक सा गया | आपको बता दें दिल्ली की केन्द्रीय सत्ता कमजोर होने के बाद दिल्ली की राजनीति में मराठा मजबूत होकर उभरे और उन्होंने राजस्थान की रियासतों से चौथ वसूली आरम्भ कर दी, इसके लिए मराठा सैनिक राजाओं की सेनाओं से सीधे टक्कर लेने के बजाय गांवों को जला देते और रियासत में अराजकता पैदा कर देते ताकि मजबूरन राजाओं को उन्हें चौथ देनी पड़े|
ठीक इसी तरह खांडे राव के नेतृत्व में मल्हार राव होल्कर और गंगाधर तात्या ने जयपुर पर हमले के लिए चढ़ाई की| इसी बीच जयपुर के राजा ईश्वरी सिंह ने आत्महत्या कर ली| तब माधोसिंह जयपुर की गद्दी पर बैठे| चूँकि मल्हार राव होल्कर आदि पहले माधोसिंह के सहयोगी रह चुके थे अंत: मराठा सेना शिविर में रही और युद्ध नहीं हुआ| इसी बीच 10 फरवरी 1751 को चार हजार मराठे स्त्री पुरुष नये बसे जयपुर नगर को देखने और मंदिरों में दर्शन करने आये| इन्हें घोड़ों और ऊंट व उनकी साज सामग्री भी खरीदनी थी जिसका जयपुर व्यापारिक केंद्र था| मराठों ने जयपुर को अपने द्वारा खैरात में दिया मानकर यहाँ के राजा का उपहास किया| जिससे स्थानीय जनता भड़क उठी और दोपहर में शुरू हुआ दंगा नौ घंटे तक चला रहा| इन दंगों की खबर राजधानी के बाहर फ़ैल गई और गांवों के राजपूत भी देखते ही देखते मराठे हरकारों को मारने लगे और उनके सारे रास्तों की नाकेबंदी कर दी|
आठ दिन बाद माधोसिंह ने मराठों से वार्ता शुरू की और उन्हें बताया गया कि इस मारकाट में डेढ़ दो हजार मराठे मारे गए थे, इसमें उनका कोई योगदान नहीं था जो भी हुआ वो जन भावनाएं भड़क जाने से हुआ| इस तरह जिस मराठा सेना का छोटी मोटी रियासती सेना मुकबला नहीं कर पाती थी, उस सेना व सैनिकों के परिजनों को जयपुर की जनता ने सबक सिखा दिया वो भी अपने राजा का उपहास उड़ाने पर| इस घटना से आप रियासती काल में जनता व राजा के मध्य सम्बन्धों का अनुमान लगा सकते हैं|
सन्दर्भ पुस्तक : जयपुर राज्य का इतिहास ; लेखक : चंद्रमणि सिंह