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जब राजा बरगद के पेड़ पर जा बैठा था

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जब राजा बरगद के पेड़ पर जा बैठा था

सीकर के राव राजा माधवसिंह जी के रोचक किस्से बहुतायत से प्रचलित है| ऐसे ही किस्सों कहानियों में एकबार उनका बरगद के पेड़ पर जा बैठना भी लोग बड़े चाव से सुनते सुनाते है| जनश्रुति के अनुसार एक दिन राव राजा माधवसिंह जी ने अपने दीवान राय परमानन्द को बुलाकर खजाने की स्थिति पर चिंता प्रकट की| राजा के खजाने में धन की कमी हो गई थी और उसकी पूर्ति के लिए गरीब प्रजा पर बोझ डालना ना राजा को अच्छा लग रहा था ना राय परमानन्द को| लेकिन दीवान राय परमानन्द गरीबों पर बोझ डाले बिना खजाना भरने की कला में माहिर थे, उनकी योजनाएं बड़ी उटपटांग और रोचक होती थी| यही कारण था कि राजा ने दीवान से एकांत में अपनी चिंता जताई|

राय परमानन्द ने राजा को कहा कि- “आप चिंता ना करें और आज शाम खूब मस्ती करें|” राव राजा माधवसिंह जी की मस्ती भी निराली होती थी| शाम होते ही उन्होंने खूब हंसी ठिठोली के साथ मस्ती की और सुरापान कर सोने लगे, तब राय परमानन्द ने उन्हें हाथी के होदे पर सोने का आग्रह किया| राजा हाथी के होदे में सो गए और जब उन्हें गहरी नींद आ गई तब राय ने महावत को कहा कि सोते हुए राजा को सेठों के रामगढ़ की और लेकर चलो और खुद भी घोड़े पर साथ हो लिए| सुबह होने पर राजा की नींद खुली तो उन्होंने हाथी पर अपने आपको महल से दूर अनजान जगह पाया| पूछने पर राय ने बताया कि हम सेठों के रामगढ के पास आ पहुंचे है|

रामगढ कस्बे के बाहर बरगद का एक बड़ा पेड़ था, राय ने राजा को पेड़ पर चढ़कर ऊपर बैठ जाने को कहा| राजा ने बिना सवाल जबाब किये राय की बात मानी और वे पेड़ के ऊपर जाकर बैठ गए| थोड़ी देर में रामगढ में यह खबर आग की तरह फ़ैल गई कि हाथी पर राजा आये है और पेड़ पर चढ़ बैठे है| खबर सुनते ही गांव के बच्चे, बूढ़े, महिलाएं, गरीब, अमीर सब वहां राजा को देखने पहुँच गए| रामगढ सेठों का नगर था| घटना सुनकर बड़े बड़े सेठ भी वहां पहुंचे और राय से राजा के पेड़ पर चढ़ने का कारण पूछा| राय ने बताया कि- “राजा आज से रामगढ के सेठों के पास जो महाजन की पदवी है वो फतेहपुर के महाजनों के अनुरोध पर उन्हें देने जा रहे है|” यह सुन रामगढ के सेठों ने राय से राजा से बातचीत कर अपनी पदवी बचाने का अनुरोध किया| राय कहने लगा “राजा पेड़ से नीचे उतरे तब ना बात करूँ| आप पहले राजा को पेड़ से नीचे उतारें|” सेठों ने राजा से नीचे उतर आने की खूब मिन्नतें की पर राजा ने सब अनसुनी कर दी| तब राय ने कहा कि “राजा ऐसे नहीं उतरते, उनके लिए रुपयों की थैलियों से सीढी बनवाओ, नहीं तो तुम्हारी पदवी गई|”

इतना सुनते ही सेठों ने अपने घरों घरों से रुपयों की थैलियाँ मंगवाई और एक ऊपर एक रखकर राजा तक सीढी बनाई और राजा से नीचे उतरने का अनुरोध किया| तब राजा थैलियों पर पैर रखते हुए नीचे उतरे, राय ने राजा से कहा- “हुकम अन्नदाता ! अब महाजन पदवी रामगढ वालों के पास ही रहने दें|” राजा ने हामी भरदी| रामगढ के सेठ राजा को नगर में ले गए, उनका स्वागत सत्कार किया और अपनी पदवी बरकरार रहने की ख़ुशी में राजा को खूब नजराना भेंट किया| राजा का खजाना एक बार फिर किसी पर कर का बोझ लादे बिना भर गया|

नोट : राय परमानन्द के छठी पीढ़ी के वंशज सुरेश माथुर ने यह किस्सा बताया| History of Sikar, Sikar ka itihas

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