विवधताओं से भरी हमारे देश की संस्कृति में कई तरह की मान्यताएं प्रचलित है। इन्हीं मान्यताओं में से है एक है, भैरूंजी महाराज को बच्चे का जडूला चढ़ाना। किसी भी बच्चे के पहली बार बाल काट कर देवता को चढ़ाना, जड़ूला चढ़ाना कहा जाता है। ज्यादातर जगह यह जडू़ला भैरूंजी महाराज के चढ़ता है। पर क्या आपने कभी सुना है कि यह जड़ूला ना चढाने या देर करने पर भैरूंजी महाराज बच्चों को रुलाते हों।
जी हाँ ! राजस्थान में सालासर से 17 किलोमीटर दूर मालासी गांव में एक भैरूंजी महाराज का मंदिर है। जहाँ दूर दूर से लोग अपने बच्चों का जडू़ला चढाने आते है। इस मंदिर के भैरूं के बारे में स्थानीय मान्यता है कि यदि बच्चे के बाल चढाने में ज्यादा देरी की जाए तो यह भैरूंजी महाराज बच्चे को तब तक रुलाता है, जब तक उसके मंदिर में बच्चे का जडू़ला ना चढ़ाया जाए।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मालासी गांव के इस लोक-देवता भैरूंजी महाराज का मंदिर कुँए में है और भैरूं की प्रतिमा कुँए में उल्टी लटकी है। आज से कई वर्ष पूर्व तक श्रद्धालु कुँए में झुककर इस भैरूं की पूजा अर्चना करते व प्रसाद आदि चढाते थे। पर अब श्रद्धालुओं की भीड़ ज्यादा होने व सुरक्षात्मक उपायों के कारण कुँए को बंद कर उसके ऊपर मंदिर बना दिया गया है। जहाँ कुआँ था उसी के ऊपर एक शिला रूपी प्रतिमा पर अब लोग प्रसाद व बच्चों के बाल चढाते है।
- कुँए में भैरूंजी महाराज का राज
सदियों पहले एक जाट अपनी ससुराल मालासी गांव आया हुआ था। उस काल में जवांई से महिलाएं काफी मजाक किया करती थी। जाट महिलाओं का मजाक करने का अंदाज कुछ ज्यादा खतरनाक भी हो जाया करता था। इस जवांई राजा के साथ भी उसकी सलहजों व सालियों ने मजाक किया। मजाक मजाक में इस जाट जवांई राजा को सलहजों व सालियों ने टाँगे पकड़ कर इस कुँए में उल्टा लटका दिया और मजाक में टाँगे छोड़ने का कहकर, जवांई राजा को डराने लगी। दुर्घटनावश महिलाओं के हाथों से जवांई छुट गया और सीधे कुँए में गिरने से उसकी मौत हो गई। तभी से उस जाट को भैरूंजी महाराज के रूप में पूजा जाने लगा। स्थानीय लोग अपने बच्चों का मुंडन कर बाल चढाने लगे, नव वर-वधु अपने सुखी दाम्पत्य जीवन की मन में कामना लिए इस भैरूंजी को धोक लगाने आने लगे। चूँकि उस जाट की मृत्यु कुँए में उल्टा लटकाने से हुई थी, सो कुँए में ही उसकी उलटी प्रतिमा लगाईं गई और कुँए में ही उसे पूजा जाने लगा।
- मंदिर में चढ़ावे से होने वाली आय के लिए हुआ था झगड़ा
शुरू में भैरूंजी महाराज को खुश करने के लिए बकरे की बलि दी जाती थी। बलि देने के बाद पुजारी द्वारा बर्तन आदि उपलब्ध करवा दिए जाते थे, बलि चढाने वाले वहीं मांस पकाकर प्रसाद के रूप में खा लिया करते थे। धीरे धीरे मान्यता बढ़ने लगी, श्रद्धालुओं का कारवां भी बढ़ता गया और मांसाहार से परहेज करने वाले लोग भी आने लगे। जो बकरे को भैरूंजी के चढ़ाकर वहीं छोड़ देते। बस यही छोड़े गए बकरे आस्था के इस केंद्र पर पुजारी की मोटी आय का साधन बन गए। एक बकरा दिन में कई बार बिककर कई बार भैरूंजी के चढ़ने लगा और उधर पुजारी की तिजोरी भरने लगी।
चूँकि जिस कुँए में इस भैरूंजी महाराज की पूजा होती वह राजपूत परिवार का है, अतः वही परिवार पुजारी का दायित्व निभाता है और चढ़ावे के रूप में होने वाली आय का हकदार है। यही बात जाट समाज के लोगों को चुभने लगी। उनका तर्क था कि जिस व्यक्ति की भैरूं के रूप में पूजा होती है वह जाट था। अतः यहाँ होनी वाली आय का हक जाट समाज का है। इसी सोच को लेकर वर्ष 1984 में जाट समुदाय के लोग मालासी में मंदिर पर कब्जा करने के लिए एकत्र हुए।
चूँकि पुजारी राजपूत है सो राजपूत समाज उसके पक्ष में लामबंद हो गया। दोनों पक्ष के लोग मालासी में एकत्र हुए, आपस में झगड़ा हुआ। इस झगड़े में दोनों में पक्ष के कुछ लोग (शायद तीन) मारे गए। मामले ने जातीय रंग ले लिया। उस झगड़े के बाद मंदिर पर पुलिस का पहरा रहने लगा, आज भी पुलिस के जवान के वहां शांति व्यवस्था के लिए तैनात रहते है।
यह बात तो झूठी है कोई भी ऐसी मजाक नहीं करता है दामाद के साथ अपनी बहु को गणगोर पर्व के कारण नही साथ नहीं भेजने पर कुए मे गिरे थे न की उनकी साली व अन्य लोगो ने उनसे ऐसी कोई मजाक नहीं की थी ऐसा ही हमने तो सुन रखा है
हमारे यहाँ तो मजाक वाली जनश्रुति प्रचलित है, हो सकता है आप सही कह रहे हों|
Majak mai girana ek hadasa mana jayega ,naki balidan.magar pyar ke liye khud girana balidan mana ja sakata hai. So dusari lok kahani kahi tak sahi baithati hai….