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चौबोली -भाग ४ (अंतिम) : कहानी

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भाग तीन से आगे …….
इस तरह तीन प्रहर कटने और तीन बार चौबोली के मुंह से बोल बुलवाने में राजा विक्रमादित्य सफल रहे और चौबोली भी पहले से ज्यादा सतर्क हो गयी कि अब चौथी बार नहीं बोलना है | राजा ने चौबोली के हार को बतलाया कि –
“हे हार ! किसी तरह तीन प्रहर तो कट गए, अब चौथा प्रहर तूं कोई कहानी सुनाकर पुरा करवा दे |”

हार कहानी सुनाने लगा-
“एक ब्राहमण, एक सुनार, एक दर्जी ,एक खाती चार मित्र थे, चारों एक दिन आपस में सलाह कर कमाने के लिए एक साथ दूसरे प्रदेश के लिए रवाना हुए| पुरे दिन चलने के बाद एक जगह वे रात्रि विश्राम के लिए रुके, वहां चारों ने फिर सलाह की कि -“कहीं ऐसा नहीं हो रात को सोते समय कोई हमारा सामान चुरा ले सो एक एक कर रात में बारी-बारी से पहरा लगातें है|
सबसे पहले पहरे पर खाती बैठा| चूँकि वह भी दिन भर पैदल चलने के कारण थका हुआ था सो थोड़ी देर में ही नींद आने लगी पर वह सो कैसे सकता था| खाती ने नींद भगाने के लिए पानी से मुंह धोया और इधर उधर देखा तो उसे एक लकड़ी का टुकड़ा पड़ा दिखाई दिया| उसने समय बिताने व नींद ना आये इसके लिए उस लकड़ी के टुकड़े को ले अपने औजारों से तराश कर एक पुतली बना दी साथ ही उस पुतली के हाथों में चूडियाँ भी घड़ कर पहना दी|
इतनी देर में एक प्रहर बीत गया|

अब दर्जी की पहरा देने की बारी आई| दर्जी ने उठकर मुंह धोया और इधर उधर देखा तो उसे खाती की बनायीं लकड़ी की पुतली दिखाई दी| दर्जी ने भी अपना सुई धागा लिया और समय व्यतीत करने के लिए उस पुतली के कपड़े सीलकर उसे पहना दिए तब तक दूसरा प्रहर भी खत्म हो गया|

अब तीसरा प्रहर होते ही सुनार पहरे के लिए उठा, हाथ मुंह धोकर जैसे ही वह पहरे के लिए बैठा उसे भी वह कपड़े पहने लकड़ी की सुन्दर पुतली दिखाई दी , तो वह भी झट से उस पुतली के लिए गहने बनाने के लिए अपने औजार लेकर जुट गया और तीसरा प्रहर खत्म होते होते उसने गहने बना उस पुतली को पहना दिए|

अब चौथे प्रहर के लिए पहरा देने ब्राह्मण उठा, और पहरा देने लगा , थोड़ी देर में ही ब्राह्मण की नजर भी उस सुन्दर कपड़े व गहने पहने लकड़ी की पुतली पर पड़ी तो उसने उसे झट से उठाकर एक जगह रखा और मन्त्र पढकर उसमे प्राण डाल दिए| अब तो पुतली एक सुन्दर ,रम-झम करती सुन्दर कपड़े व गहने पहने स्त्री बन गयी |

अब सुबह होते ही वे चारों आपस में लड़ने लगे कि -एक कहे ये मेरी पत्नी बनेगी, तो दूसरा कहे मेरी बनेगी इस पर मेरा हक है|”
अब हार बोला- “हे राजा! विक्रमादित्य ! आपका न्याय तो जग प्रसिद्ध है अत: आप ही न्याय कीजिये कि -वह किसकी पत्नी हुई ?”
राजा बोला- ” ये तो सीधी सी बात है, ब्राह्मण ने उस पुतली में प्राण डालकर उसे स्त्री बनाया तो वह उसी की ही होगी ना !”
इतना सुनते ही चौबोली गुस्से में कड़क कर बोली- “लानत है तेरे न्याय में राजा ! ब्राहमण ने उस पुतली में प्राण डाले मतलब उसे जन्म दिया अत: वह उसका पिता हुआ | कोई भी स्त्री पत्नी तो उसकी होती है जो उसके हाथों में चूडियाँ पहनाता है| इस तरह तो वो स्त्री खाती की पत्नी हुई क्योंकि उसके हाथों में चूडियाँ उसी ने पहनाई थी|”

राजा बोला- ” शाबास ! चौबोली जी ! आपने बहुत बढ़िया व सही न्याय किया|”
बजा रे ढोली ढोल |
चौबोली बोली चौथो बोल||
सुनते ही ढोली ने जोर से चार बार ढोल पर दे मारा धें-धें|

इस तरह चौबोली चारों प्रहारों में बोलकर हार गयी और राजा विक्रमादित्य जीत गया|
दोनों की शादी हो गयी और चौबोली ने अपने बंदीग्रह में बंद पहले हारे हुए राजाओं को आजाद कर उनको सम्मान सहित उनका राजपाट दे उन्हें विदा किया और खूद राजा विक्रमादित्य के साथ चल पड़ी |
समाप्त

15 COMMENTS

  1. शिक्षा प्रद कहानी है, ऐसी कहानियां स्कूलों के पाठ्यक्रम में होनी चाहिए, पर पहले से जो थी वह भी हटा दी गयी हैं……..

  2. kahani beshk achchhi hai pr aapka likhne ka andaz aisa hai lgta hai koi samne baithkr kahani suna rha hai aur hm main sun rhee hun. bhai! akeli pdh rhi hun to mujhe to yhi lgega n ? kai jagah to yun lga ki hunkaaraa bhr dun. swabhavik srl bhasha jisme pravaah hai aur sahjta hai. kahin bhasha ko paanditya pradarshn saa kaam me nhi liya.yhi iski aur aapke lekhn ki vishehsta hai .

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