एक दिन राजा विक्रमादित्य और उसकी एक रानी के साथ थोड़ी बहस हो गयी रानी कहने लगी-” मैं रूठ गयी तो आपको मेरे जैसी रूपवती व गुणवान पत्नी कहाँ मिलेगी ?”
राजा बोला- ” मैं तो तेरे से भी सुन्दर व गुणवान ऐसी पत्नी ला सकता हूँ जिसका तूं तो किसी तरह से मुकाबला ही नहीं कर सकती|”
रानी बोली- यदि ऐसे ही बोल बोल रहे है तो फिर “चौबोली” को परण कर लाओ तब जानूं |”
राजा तो उसी वक्त चौबोली से प्रणय करने चल पड़ा| चौबोली बहुत ही सुन्दर रूपवती, गुणवान थी हर राजा उससे प्रणय करने की ईच्छा रखते थे| पर चौबोली ने भी एक शर्त रखी हुई थी कि –
“जो व्यक्ति रात्री के चार प्रहरों में चार बार उसके मुंह से बुलवा दे उसी से वह शादी करेगी और जो उसे न बुलवा सके उसे कैद |” अब तक कोई एक सौ साठ राजा अपने प्रयास में विफल होकर उसकी कैद में थे| चौबोली ने अपने महल के आगे एक ढोल रखवा रखा था जिसे भी उससे शादी करने का प्रयास करना होता था वह आकार ढोल पर डंके की चोट मार सकता था|
राजा विक्रमादित्य भी वहां पहुंचे और ढोल पर जोरदार चोट मार चौबोली को आने की सुचना दी| चौबोली ने सांय ही राजा को अपने महल में बुला लिया और उसके सामने सौलह श्रृंगार कर बैठ गयी| राजा ने वहां आने से पहले अपने चार वीर जो अदृश्य हो सकते थे व रूप बदल सकते थे को साथ ले लिया था और उन्हें समझा दिया था कि उसके साथ चौबोली के महल में रूप बदलकर छुप जाएं|
राजा चौबोली के सामने बैठ गया, चौबोली तो बोले ही नहीं ऐसे चुपचाप बैठी जैसे पत्थर हो| पर राजा भी आखिर राजा विक्रमादित्य था| वह चौबोली के पलंग से बोला-
“पलंग चौबोली तो बोलेगी नहीं सो तूं ही कुछ ताकि रात का एक प्रहर तो कटे|”
पलंग में छुपा राजा का एक वीर बोलने लगा- “राजा आप यहाँ आकर कहाँ फंस गए ? खैर मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ आप हुंकारा दीजिए कम से कम एक प्रहर तो कट ही जायेगा|”
पलंग बोलने लगा राजा हुंकारा देने लगा- ” एक राजा का और एक साहूकार का बेटा, दोनों मैं तगड़ी दोस्ती थी| साथ सोते,साथ खेलते.साथ आते जाते| एक पल भी एक दूसरे से दूर नहीं होते|दोनों ने आपस में तय भी कर रखा था कि वे दोनों कभी अलग नहीं होंगे|
दोनों की शादियाँ भी हो चुकी थी और दोनों की ही पत्नियाँ मायके बैठी थी|एक दिन साहूकार अपने बेटे से बोला कि -“बेटे तेरी बहु मायके में बैठी है जवान है उसे ज्यादा दिन वहां नहीं छोड़ा जा सकता सो जा और उसे ले आ|”
बेटा बोला- “बापू!आपका हुक्म सिर माथे पर जावूँ कैसे मैंने तो कुंवर से वादा कर रखा है कि उसे छोड़कर कहीं अकेला नहीं जाऊंगा|”
साहूकार ने सोचते हुए कहा- ” बेटे तुम दोनों में ऐसी ही मित्रता है तो एक काम कर राजा के बेटे को भी अपनी ससुराल साथ ले जा | पर एक बात ध्यान रखना तेरे ससुराल में उसकी खातिर उनकी प्रतिष्ठा के हिसाब से बड़े आव-भगत से होनी चाहिए|”
आखिर दोनों मित्र साहूकार के बेटे की ससुराल चल दिए|रास्ते में राजा का बेटा तो बड़ी मस्ती से व मजाक करता चल रहा था और साहूकार का बेटा बड़ी चिंता में चल रहा था पता नहीं ससुराल वाले कुंवर की कैसी खातिर करेंगे यदि कोई कमी रह गयी तो कुंवर क्या सोचेगा आदि आदि|
चलते चलते रास्ते में एक देवी का मंदिर आया| जिसके बारे में ऐसी मान्यता थी कि वहां देवी के आगे जो मनोरथ मांगो पूरा हो जाता| कोढियों की कोढ़ मिट जाती, पुत्रहीनों को पुत्र मिल जाते| साहूकार के बेटे ने भी देवी के आगे जाकर प्रार्थना की-
“हे देवी माँ ! ससुराल में मेरे मित्र की खातिर व आदर सत्कार वैसा ही हो जैसी मैंने मन में सोच रखा है| यदि मेरे मन की यह मुराद पूरी हुई तो वापस आते वक्त मैं अपना मस्तक काटकर आपके चरणों में अर्पित कर दूँगा|”
ऐसी मनोकामना कर वह अपने मित्र के साथ आगे बढ़ गया और ससुराल पहुँच गया| ससुराल वाले बहुत बड़े साहूकार थे, उनकी कई शहरों में कई दुकाने थी, विदेश से भी वे व्यापार करते थे इसके लिए उनके पास अपने जहाज थे| पैसे वाले तो थे ही साथ ही दिलदार भी थे उन्होंने अपने दामाद के साथ आये राजा के कुंवर को देखकर ऐसी मान मनुहार व आदर सत्कार किया कि उसे देखकर राजा का कुंवर खूद भौचंका रह गया| ऐसा सत्कार तो उसने कभी देखा ही नहीं था|
दोनों दस दिन वहां रहे उसके बाद साहूकार के बेटे की वधु को लेकर वापस चले| रास्ते में राजा का बेटा तो वहां किये आदर सत्कार की प्रशंसा ही करता रहा| साहूकार के बेटे ने जो मनोरथ किया था वो पूरा हो गया| रास्ते में देवी का मंदिर आया तो साहूकार का बेटा रुका|
बोला- “आप चलें मैं दर्शन कर आता हूँ|”
राजा का बेटा बोला- “मैं भी चलूं दोनों साथ साथ दर्शन कर लेंगे|”
साहूकार का बेटा- “नहीं ! मैंने अकेले में दर्शन करने की मन्नत मांगी है इसलिए आप रुकिए|”
साहूकार का बेटा मंदिर में गया और अपना सिस काटकर देवी के चरणों में चढा दिया| राजा के कुंवर ने काफी देर तक इन्तजार किया फिर भी साहूकार का बेटा नहीं आया तो वह भी मंदिर में जा पहुंचा| आगे देखा तो मंदिर में अपने मित्र का कटा सिर एक तरफ पड़ा था और धड एक तरफ|कुंवर के पैरों तले से तो धरती ही खिसक गयी| ये क्या हो गया? अब मित्र की पत्नी और उसके पिता को क्या जबाब दूँगा| कुंवर सोच में पड़ गया कि इस तरह बिना मित्र के घर जाए लोग क्या क्या सोचेंगे ? आज तक हम अलग नहीं रहे आज कैसे हो गए ? ये सब सोचते सोचते और विचार करते हुए कुंवर ने भी तलवार निकाली और अपना सिर काट कर डाला|
उधर साहूकार की वधु रास्ते में खड़ी खड़ी दोनों का इन्तजार करते करते थक गयी तो वह भी मंदिर के अंदर पहुंची और वहां का दृश्य देख हक्की बक्की रह गयी| दोनों मित्रों के सिर कटे शव पड़े थे|मंदिर में लहू बह रहा था| वह सोचने लगी कि –
“अब उसका क्या होगा? कैसे ससुराल में बिना पति के जाकर अपना मुंह दिखाएगी? लोग क्या क्या कहेंगे? यह सोच उसने भी तलवार उठाई और जोर से अपने पेट में मारने लगी तभी देवी माँ ने प्रकट हो उसका हाथ पकड़ लिया|
साहूकार की वधु देवी से बोली- ” हे देवी! छोड़ दे मुझे और मरने दे| इन दोनों का तुने भक्षण कर लिया है अब मेरा भी कर ले|”
देवी ने कहा-” तलवार नीचे रख दे और दोनों के सिर उठा और इनके धड़ पर रख दे अभी दोनों को पुनर्जीवित कर देती हूँ|”
साहूकार की वधु ने झट से दोनों के सिर उठाये और धड़ों के ऊपर रख दिए| देवी ने अपने हाथ से उनपर एक किरण छोड़ी और दोनों जीवित हो उठे|देवी अंतर्ध्यान हो गयी|
पर एक गडबड हो गयी साहूकार की बहु ने जल्दबाजी में साहूकार का सिर कुंवर की धड़ पर और कुंवर का सिर साहूकार की धड़ पर रख दिया था| अब दोनों विचार में पड़ गए कि -अब ये पत्नी किसकी ? सिर वाले की या धड़ वाले की ?
पलंग बोला- ‘ हे राजा ! विक्रमादित्य आप न्याय के लिए प्रसिद्ध है अत: आप ही न्याय करे वह अब किसकी पत्नी होगी?
राजा बोला- ” इसमें पुछने वाली कौनसी बात है ? वह महिला धड़ वाले की ही पत्नी होगी|”
ये सुनते ही चौबोली बोली चमकी| गुस्से में भर कर बोली- ” वाह ! राजा वाह ! बहुत बढ़िया न्याय करते हो| धड़ से क्या लेना देना, पत्नी तो सिर वाले की ही होगी| सिर बिना धड़ का क्या मोल|’
राजा बोला- “आप जो कह रही है वही सत्य है|”
बजा रे ढोली ढोल|
चौबोली बोली पहला बोल||
और ढोली ने ढोल पर जोरदार डंका मारा ” धे”
क्रमश: ………..
कहानी का अगला भाग- मंगलवार १९ जून १२ सुबह ९ बजे
Waiting for more. 3 part……!!
कहानी रोचक है। अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी।
रोचक !
बहुत सुन्दर तरीके से लिखी गयी कहानी। पढ़कर आनंद आया।
kahani main kahani….maja aa gaya …
jai baba banaras…
बाकी तीन भाग भी ऐसे ही रोचक होने वाले हैं।
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (17-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सुन्दर कहानी है अगले भागो की प्रतीक्षा मे
यहा भी पधारे
यूनिक ब्लाग का लिंक यहा है
कितने दिनों बाद आना हो पाया मेरा. जैसे बरसों बाद कोई छोरी अपने पीहर आई हो. पर भाई ने बुलाया नही.याद भी नही किया कभी. दोष तेरा नही बीरा!गरीब बहन को भाई भौजाई याद नही करते. खुद ही मान मर्यादा छोडकर चली आती है मेरी जैसी बहनें.चौबोली रानी जरूर बोलेगी चरों फर में. राजा भी तो विक्रमादित्य है छोटा मोटा राजा नही है वो. बहुत पढ़ती आई हूँ बचपन से उनको. अगली कड़ी का इंतज़ार करूंगी.इस बार बुला लेना. बेमाजने के न आऊँगी हर बार. 🙂
ऐसे लिखते हो जैसे बचपन में मेरे सबसे बड़े भाई कहानी सुनाया करते थे और कहानी सुनने के लालच में मैं दौड दौडकर उनके सारे काम किया करती थी.और कहानी सुनते -२ जाने कब सो जाती थी.उनके हाथ पर सर रखे रखे ही.बचपन याद आ गया.
खम्मा घणी
कल मंगलवार सुबह ९ बजे जरुर आना कहानी का दूसरा भाग पढ़ने 🙂
बहुत सुन्दर मजेदार रोचक किस्सा ! अगली कहानी का बेसब्री से इन्तजार !
nice
बहुत बढिया कहानी चल रही है।
Very interesting … where are the other parts ….
Ashish Bhatia
Very interesting … Where are the other parts …!!!
baki ki kahani sunao bhai
continue next stor. pl zzzzz