चूरू किला : चूरू का किला अपनी स्वतंत्रता को बचाए रखने के लिए चांदी के गोले दागने वाले किले के नाम से विश्व में प्रसिद्ध है | रियासती काल में बीकानेर के राजा सूरतसिंह और चूरू के ठाकुर शिवसिंह के मध्य युद्ध हुये | बीकानेर नरेश चूरू को अपने अधीन रखना चाहते थे और ठाकुर शिवसिंह से अपने हर सही गलत निर्णय का समर्थन चाहते थे | ठाकुर शिवसिंह का मानना था कि चूरू उनके पूर्वजों को भाई बंट में नहीं मिला, उनके पूर्वजों ने अपने शौर्य और पराक्रम के बल पर प्राप्त किया है अत: बीकानेर उनका टिकाई राज्य तो हो सकता है, पर स्वामी नहीं और यही चूरू व बीकानेर राज्य के बीच विवाद का कारण था |
इसी विवाद को लेकर बीकानेर की सेना ने चूरू को घेर लिया | “बीकानेर राज्य का इतिहास” पुस्तक में इतिहासकार ओझाजी ने लिखा है कि वि.सं. 1871 के प्रथम भाद्रपद मास में यानि सन 1814 ई. में अमरचंद के नेतृत्व में बीकानेर की सेना ने चूरू को घेर लिया और उस पर तोपों की मार की | कई माह तक घिरे रहने के कारण चूरू गढ़ में रसद व गोलाबारूद की कमी हो गई | इतिहासकारों के अनुसार चूरू के ठाकुर शिवसिंह खुद तोपें ढालने व गोले बनाने में माहिर थे, लेकिन तोपों के गोले बनाने के लिए उनके पास लोहा नहीं था | ऐसी हालात में उन्होंने चांदी के गोले बनाकर बीकानेर की सेना पर दागे |
गोले बनाने के लिए चांदी रियासत के खजाने के अलावा चूरू के सेठों व जनता द्वारा प्रदान की गई थी | इस तरह चूरू का किला विश्व में इकलोता किला है, जिसने अपनी स्वतंत्रता को बचाए रखने के लिए चांदी के गोले दागे |
ठाकुर शिवसिंह बणीरोत राठौड़ कुल में जन्में थे | बणीरोत राठौड़ वंश की एक शाखा है, जो अपने पूर्वज राव बणीरजी के नाम से प्रचलित है | राव बणीरजी राठौड़ चूरू के पास घांघू के शासक थे | बणीरजी व ठाकुर शिवसिंह के बारे में हम विस्तृत जानकारी एक अलग लेख में देंगे | राव बणीरजी के पुत्र राव मालदेव ने चूरू क्षेत्र पर अधिकार कर इसे चूरू नाम दिया और यहाँ अपना ठिकाना कायम किया | इतिहासकारों के अनुसार इस क्षेत्र में बादशाह की तरफ से दिलावर खान चौधरी के पद पर नियुक्त था, चौधरी दिलावर खान फतेहपुर नबाब का वंशज बताया जाता है | इसी दिलावर खान से मालदेव ने यह क्षेत्र जीता और कालेरों के बास नामक बस्ती के पास चूरू नाम से चूरू गढ़ की स्थापना की | लेकिन उनके समय में पक्का गढ़ नहीं बन पाया था | राव मालदेव द्वारा चौधरी दिलावर खान से चूरू लेने व इसके नामकरण से एक रोचक कहानी जुड़ी है, जिस पर एक वीडियो हमारे चैनल पर पहले से उपलब्ध है और हाँ चौधरी दिलावर खान के बारे में पूरी जानकारी वाला ल्केह लिखेंगे ताकि चौधरी दिलावर के बारे में फैलाई गई भ्रान्ति दूर की जा सके |
चूरू का यह वर्तमान पक्का गढ़ ठाकुर कुशलसिंह ने बनवाया था | उस वक्त चोरी आदि की घटनाओं से सुरक्षा पाने के के लिए ठाकुर कुशलसिंह ने चूरू नगर के चारों और शहर पनाह यानि परकोटा बनवाया और गढ़ का निर्माण कराकर चूरू का विकास किया | चूरू नगर में परकोटा बनने के बाद शेखावाटी के कई बड़े सेठ यहाँ आकर बसे, जिनकी वजह से व्यापार बढ़ा और चूरू राज्य की आय में वृद्धि हुई | चूरू के विकास में इन सेठों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, आज भी चूरू में इन सेठों की बड़ी बड़ी हवेलियां उनके वैभव व व्यापारिक साम्राज्य की मूक गवाह है |
वर्तमान में यह गढ़ राज्य सरकार के अधीन है | गढ़ के नाम पर मुख्य दरवाजा और परकोटा बचा है, अन्दर के ज्यादातर निर्माण ध्वस्त हो चुके हैं | परकोटा भी जीर्णोद्धार की राह देख रहा है | यदि गढ़ के परकोटे का जीर्णोद्धार समय पर नहीं हुआ, तो इसका भी हश्र शहरपनाह के रूप में बनाये परकोटे की तरह होगा | कभी चूरू नगर की सुरक्षा का ढाल रहा शहरपनाह परकोटे का आज कहीं अस्तित्व तक नजर नहीं आता | गढ़ के परकोटे के भीतर कोतवाली, अस्पताल व विद्यालय संचालित है | गढ़ प्रांगण में ठाकुर जी का खुबसूरत मंदिर बना है यह मंदिर बाहर से देखने में जितना सुन्दर दीखता है उतना ही अन्दर से भी खुबसूरत व दर्शनीय है | गढ़ के बाहर एक और बड़ा सा मंदिर बना है जिसे नगर सेठ का मंदिर कहा जाता है |