राजपूताने के राजाओं के पास चारण रहते थे| जो बहुत ही बुद्धिजीवी, कवि व साहित्यकार होते थे| बड़े बड़े राजा इन चारण कवियों से डरते थे, क्योंकि राजपूत काल में चारणों को अभिव्यक्ति की पूरी आजादी थी और वे अपनी इसी अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग करते हुए, किसी भी राजा को खरी खोटी सुना देते थे| राजा भी उनकी रचनाएँ सुनकर उन्हें ईनाम में बड़ी बड़ी राशियाँ देते थे, ताकि वे उनकी बुराई वाली रचनाएँ ना बनाये| बीकानेर राज्य का लाला नाम का चारण एक बार जैसलमेर के शासक रावल जैतसी के यहाँ गया| लाला चारण जब भी रावल जैतसी के सामने जाता तब रावल जैतसी राठौड़ों की मजाक उड़ाते, जो लाला को बुरी लगती|
एक बार लाला ने जैतसी से कहा कि – “चारणों से ऐसी हंसी नहीं करनी चाहिये, राठौड़ बहुत शक्तिशाली होते हैं।” रावल ने प्रत्युतर में बिगड़कर कहा-‘जा, तेरे राठौड़ मेरी जितनी भूमि पर अपना घोड़ा फिरा देंगे, वह सब भूमि मैं ब्राह्मणों को दान कर दूंगा।” लाला ने बीकानेर लौटने पर बीकानेर के राजा लूणकर्ण से सारी घटना कही तथा अनुरोध किया कि अपने कुछ चुनिन्दा वीर राठौड़ों को आज्ञा दें कि वे जाकर रावल के कुछ गांवों में अपने घोड़े फिरा दें। तब राव ने उत्तर दिया-‘लाला तू निश्चिन्त रह। जब रावल ने ऐसा कहा है, तो मैं स्वयं जाऊंगा।’ अनन्तर राजा लूणकर्ण ने एक बड़ी सेना एकत्र कर जैसलमेर की ओर प्रस्थान किया। इस अवसर पर बीदा का पौत्र सांगा, बाघा का पुत्र वणीर (वणवीर) और राजसी (कांधलोत) तथा अन्य सरदार आदि भी सेना सहित लूणकर्ण की फौज के साथ थे। गांव राजोबाई (राजोलाई) में फौज के डेरे हुए, जहां से मंडला का पुत्र महेशदास 500 सवारों के साथ चढ़कर गया और जैसलमेर की तलहटी तक लूटमार करके फिर वापस आ गया।
उधर जैसलमेर के रावल जैतसी ने अपने सरदारों आदि से सलाह कर रात्रि के समय शत्रु पर आक्रमण करना निश्चित किया। अनन्तर गढ़ की रक्षा की व्यवस्था कर वह 5000 आदमियों सहित राजोबाई में लूणकर्ण के डेरे,पर चढ़ा। राव ने, जो अपनी सेना सहित तैयार था, उसका सामना किया। सेना कम होने के कारण जैतसी अधिक देर तक लड़ न सका और भाग निकला, परन्तु सांगा ने उसका पीछाकर उसे पकड़ लिया और लूणकर्ण के पास उपस्थित किया, जिसने उसे हाथी पर बैठाकर सांगा को ही उसकी चौकसी पर नियत किया। अनन्तर राठौड़ों की फ़ौज ने जैसलमेर पहुंचकर लूट मचाई, जिससे बहुत सा धन इत्यादि उनके हाथ लगा।
लाला जब पुन: रावल जैतसी के पास गया तो वह बहुत लज्जित हुए। राजा लूणकर्ण एक मास तक घड़सीसर पर रहे, परन्तु भाटी गढ़ से बाहर न निकले और उन्होंने भीतर से ही आदमी भेजकर सुलह कर ली। इस पर उस (लूणकर्ण) ने जैतसी को मुक्तकर जैसलमेर उसके हवाले कर दिया तथा अपने पुत्रों का विवाह उसकी पुत्रियों से किया। अनन्तर अपनी सेना-सहित लूणकर्ण बीकानेर लौट आये। इस तरह एक चारण कवि के साथ मजाक और उसके स्वामीयों की हंसी उड़ाना जैसलमेर के शासक रावल जैतसी को महंगा पड़ गया|
जहा मुस्लिम चादर चढ़ाते है एक राजपूत की मजार पर…
_______वीर योद्धा डूंगर सिंह भाटी_______
सिर कटे धड़ लड़े रखा रजपूती शान
“दो दो मेला नित भरे, पूजे दो दो थोर॥
सर कटियो जिण थोर पर, धड जुझ्यो जिण थोर॥ ”
मतलब :-
एक राजपूत की समाधी पे दो दो जगह मेले लगते है,
पहला जहाँ उसका सर कटा था और दूसरा जहाँ उसका धड लड़ते हुए गिरा था….
राजपुताना वीरो की भूमि है। यहाँ ऐसा कोई गाव नही जिस पर राजपूती खून न बहा हो, जहाँ किसी जुंझार का देवालय न हो, जहा कोई युद्ध न हुआ हो। भारत में मुस्लिम आक्रमणकर्ताओ को रोकने के लिए लाखो राजपूत योद्धाओ ने अपना खून बहाया बहुत सी वीर गाथाये इतिहास के पन्नों में दब गयी। इसी सन्दर्भ में एक सच्ची घटना-
उस वक्त जैसलमेर और सिंध (वर्तमान पाकिस्तान में) दो पड़ोसी राज्य थे। सिंध के नवाब की सेना आये दिन जैसलमेर राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रो में डकैती, लूट करती थी परन्तु कभी भी जैसलमेर के भाटी वंश के शासको से टकराने की हिम्मत नही करती थी।जैसलमेर रियासत के महाराजा चाचकदेव थे सन् “1500 “की बात हे महाराजा चाचकदेव का रावल मोकल भाई था रावल मोकल के दस बेटा थे ,भादा जी,डूँगर हेमजी हरुजी, मकाजी मेराजी चंद्र ,राजॉ ,भोजराज जी,,जुझार डूँगर बचपन से ही वीर योद्धा थे आपकी वीरता के कारण महाराजा ने रियासत का अहम् पद दिया दूसरी रियासतो से वार्ता करना संदैश पहुँचाना एक दिन ( पाक ) खेरपुर से जुझार डूँगर भतीजा चाहडदेव के साथ जैसलमेर आ रहे थे लंबी दूरी के कारण रास्ते मे मोकला के पास आराम किया
ज्येठ की दोपहरी वदी 7 आदित्वार ” 1542 “में दोनों वीर योद्धा डूंगर जी चाहडदेव जी, जो की मोकला गांव के उतर 3 किलोमीटर जालिपा तालाब पर स्नान कर रहे थे चाहडदेव योद्धा डूँगर जी केभतीजे थे!! योद्धा डूँगर कानू बाबा के भक्त थे कानू बाबा ने योद्धा को गले मे पहने का बन्धन हार दिया था जो की कोई भी दुश्मन योद्धा को पराजित नहीँ कर सकता था !! चाहड देव हेमजी के इकलौते बेटे थे जैसलमेर महारावल के छोटे भाई के पुत्र थे और आपके भतीजे चाहड़ देव जिसकी शादी कुछ दिन पूर्व ही हुयी थी, । तभी अचानक योद्धाओ के चेतक जालिपा तालाब पर घूर्राने लगे तब अचानक बहुत जोर से शोर सुनाई दिया और कन्याओ के चिल्लाने की आवाजे आई। उन्होंने देखा की दूर
सिंध के नवाब की सेना की एक टुकड़ी जैसलमेर रियासत के ही पालीवाल ब्राह्मणों के गाँव “काठोडी” से लूटपाट कर अपने ऊँटो पर लूटा हुआ सामान और साथ में गाय, ब्राह्मणों की औरतो को अपहरण कर जबरदस्ती ले जा रही है।योद्धा डूँगर ने तभी कानू बाबा का हार गले से स्नान करने पर उतारा हुआ था कटक को देखकर जोश मे हार अपने साफ़े पर बाँध दिया भतीजे चाहड़ देव को कहा की तुम जैसलमेर जाओ और वहा महारावल से सेना ले आओ तब तक में इन्हें यहाँ रोकता हूँ। लेकिन चाहड़ समझ गए थे की काका जी कुछ दिन पूर्व विवाह होने के कारण उन्हें भेज रहे हैँ। काफी समझाने पर भी चाहड़ नही माने ओर चाहड देव उम्र मे काफ़ी छोटे थे योद्धा डूँगर ने जब चाहड के मुँह पर प्यार से हाथ लगाया और दादी मूँछ आ गई अंत में दोनों वीर क्षत्रिय धर्म के अनुरूप धर्म निभाने गौ ब्राह्मण को बचाने हेतु मुस्लिम सेना की ओर अपने घोड़ो पर तलवार लिए दौड़ पड़े।योद्धा डूँगर ने मुसलिम सेनापती को बहुत समझाया लेकिन नही माना योद्धा डूँगर को
कानू बाबा ने सुरक्षित रेगिस्तान पार कराने और अच्छे सत्कार के बदले में एक चमत्कारिक हार दिया था जिसे वो हर समय गले में पहनते थे।
दोनों वीर मुस्लिम टुकडी पर टूट पड़े और देखते ही देखते सिंध सेना की टुकड़ी के लाशो के ढेर गिरने लगे। कुछ समय बाद वीर योद्धा चाहड़ देव भी वीर गति को प्राप्त हो गए जिसे देख क्रोधित योद्धा डूंगर जी ने दुगुने वेश में युद्ध लड़ना शुरू कर दिया। तभी अचानक एक मुस्लिम सैनिक ने पीछे से वार किया और इसी वार के साथ उनका शीश उनके धड़ से अलग हो गया। जो मोकला से उतर चेतों वाली घाटी पर शीश गिरा आज भी युद्ध के चिनह मौजूद हे किवदंती के अनुसार, शीश गिरते वक़्त अपने वफादार घोड़े से बोला-
“बाजू मेरा और आँखें तेरी”
घोड़े ने अपनी स्वामी भक्ति दिखाई व धड़, शीश कटने के बाद भी लड़ता रहा ओर पालीवाल ब्राह्मण ओर गायों कन्याओ को मुक्त करा दिया जिससे मुस्लिम सैनिक भयभीत होकर भाग खड़े हुए और योद्धा डूंगर जी का धड़ घोड़े पर लडता पाकिस्तान के सिंध के पास पहुंच गया। तब लोग सिंध नवाब के पास पहुंचे और कहा की एक बिना मुंड आदमी सिंध की तरफ उनकी टुकडी को खत्म कर गांव के गांव तबाह कर जैसलमेर से आ रहा है।
वो सिद्ध पुरुष कानू बाबा भी उसी वक़्त वही थे जिन्होंने योद्धा डूंगर जी को वो हार दिया था। वह समझ गए थे कि वह कोई और नही योद्धां डूंगर ही हैं। उन्होंने सात 7 कन्या नील ले कर पोल(दरवाजे के ऊपर) पर खडी कर दी और जैसे ही योद्धा डूंगर नीचे से निकले उन कन्याओं के नील डालते ही धड़ शांत हो गया।
सिंध जो की पाकिस्तान में है जहाँ योद्धा डूंगर भाटी जी का धड़ गिरा, वहाँ इस योद्धा को मुण्डापीर कहा जाता है। इस राजपूत वीर की समाधी/मजार पर उनकी याद में हर साल मेला लगता है और मुसलमानो द्वारा चादर चढ़ाई जाती है।
वहीँ दूसरी ओर भारत के जैसलमेर का मोकला गाँव है, जहाँ आपका शीश कट कर गिरा उसे डूंगरपीर कहा जाता है। वहाँ एक मंदिर बनाया हुआ है और तालाब हे उसे डूँगासर नाम से जाना जाता हे हर रोज पूजा अर्चना की जाती है। ओर भोपा डूँगर योद्धा के हे डूंगर पीर की मान्यता दूर दूर तक है और दूर दराज से लोग मन्नत ”’मांगने आते हैँ। (रुखीया) मेघवाल बाणी वार्ता भक्ति करते हे !! ओर पालीवाल ब्रह्माण ने योद्धा डूँगर के नाम ज़मीन भेंट की 20000 बीघा जो ओरण से जाना जाता हे जहाँ पर नही पेड़ काटा जाता हे !! आस्था का प्रमुख स्थान हे जोकी भक्तों की मनोकामना पूरी होती हे!!!! जिसे ( पर्चा ) कहते हे ओर वर्ष मे दो वार मेला लगता हे !! भाद्ववा शुक्ल सप्तमी को ओर माघ शुक्ल सप्तमी को ओर आशमानी रंग सहन नहीँ किया जाता हे
शत शत नमन गौ-ब्राह्मण धर्म रक्षक वीर योद्धा डूंगर जी को_/\_ डूँगर साचो देव कलयुग मे मोकल कूँवर