बचपन मे कही से बिखर कानो मे पड़ गया था…..ये शब्द घुटन
तब सोचा घुटन से मर जाता होगा इन्सान
पर आज जब मे घुट रही हूँ तो क्यूँ नहीं निकलता मेरा दम
घुटन घुटन मे घुटते घुटते मैं सब काम निपटा लेती हूँ
जब सब निपट जाता हैं , तो मुझ में क्यू कुछ बाकी रह जाता हैं,
ये सारा गम तह बन कर क्यू मुझ पर ही आके जम जाता हैं
इतना भी क्या कठोर हो गया मेरा ह्रदय
की सब कुछ चुप चाप सह जाता हैं
और जब कठोर हो ही गया हैं
तो अकेले में फिर आंसू बन कर क्यू बह जाता हैं .
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