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Wednesday, September 27, 2023

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ग्लोबल होता राजस्थानी साफा

पगड़ी का इस्तेमाल हमारे देश में सदियों से होता आया है | प्राचीन काल से ही हमारे यहाँ पगड़ी को व्यक्तित्व,आन,बान,शान और हैसियत का प्रतीक माना जाता रहा है | पगड़ी हमारे देश में चाहे हिन्दू शासक रहें हों या मुस्लिम शासक सभी की प्रिय रही है | आज भी पगड़ी को इज्जत का परिचायक समझा जाता है | पगड़ी को किसी के आगे रख देना सर झुकाना व उसकी अधीनता समझना माना जाता है | महाराणा प्रताप ने वर्षों में जंगल में रहना पसंद किया पर अकबर के आगे अपनी पगड़ी न झुका कर मेवाड़ी पाग (पगड़ी )की हमेशा लाज रखी |
राजस्थान में हर वर्ग व जाति समुदाय अपनी अपनी शैली में सिर पर पगड़ी बांधते है ,राजपूत समुदाय में इसी पगड़ी को साफा कह कर पुकारा जाता है ,राजपूत समाज में साफों के अलग-अलग रंगों व बाँधने की अलग-अलग शैली का इस्तेमाल समय समय के अनुसार होता है जैसे – युद्ध के समय राजपूत सैनिक केसरिया साफा पहनते थे अत: केसरिया रंग का साफा युद्ध और शौर्य का प्रतीक बना | आम दिनों में राजपूत बुजुर्ग खाकी रंग का गोल साफा सिर पर बांधते थे तो विभिन्न समारोहों में पचरंगा,चुन्दडी,लहरिया आदि रंग बिरंगे साफों का उपयोग होता था | सफ़ेद रंग का साफा शोक का पर्याय माना जाता है इसलिए राजपूत समाज में सिर्फ शोकग्रस्त व्यक्ति ही सफ़ेद साफा पहनता है |
लेकिन पिछले कुछ सालों में आधुनिकता की दौड़ में राजस्थान की युवा पीढ़ी अपनी इस परम्परा से विमुख होती गयी और वो साफा बंधना भी भूल गयी पर धीरे धीरे वर्तमान पीढ़ी को अपनी गलती महसूस हुई पर जब तक बहुत देर हो चुकी थी गांवों में तो फिर कुछ लोग थे जिन्हें परम्परागत साफा बांधना आता था पर शहरों में तो शादी ब्याह के अवसर पर भी साफा बाँधने वालों को तलाश करना पड़ता था | इसी कमी को पूरा करने के लिए शहरों में साफा बाँधने वालों की मांग ने इसे व्यवसायिक बना दिया और इस व्यवसाय को सही दिशा दी जोधपुर के शेर सिंह राठौड़ ने |
शेर सिंह राठौड़ में राजस्थान की हर शैली में बंधे बंधाये साफे उपलब्ध कराने शुरू किये तो राजस्थान की वर्तमान पीढ़ी खास कर राजपूत समुदाय के युवाओं ने इसे हाथों हाथ लिया | राजपूत युवाओं के प्रेरणा श्रोत उच्च शिक्षित व बाड़मेर के पूर्व सांसद स्व.तन सिंह जी हमेशा खाकी साफा पहनते थे सार्वजानिक जीवन में खाकी साफा पहनने उनकी उस विरासत को पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व.कल्याण सिंह जी कालवी ने व उनके पुत्र करणी सेना के प्रधान व कांग्रेस नेता श्री लोकेन्द्र सिंह ने बरक़रार रखी |
आज शेर सिंह राठौड़ के प्रयासों से राजस्थानी साफे ने सिर्फ राजस्थान में ही अपना खोया गौरव प्राप्त नहीं किया बल्कि विदेशों में भी लोकप्रियता हासिल कर ग्लोबल होने की राह पर अग्रसर है |
आईये अब मिलते है राजस्थानी साफों को ग्लोबल गौरव दिलाने वाले इस शख्स व उसके पुत्र से :

1जनवरी 1964 को जोधपुर जिले की बिलाडा तहसील के रूपनगर गांव में भंवर सिंह राठौड़ के घर जन्मे शेर सिंह राठौड़ जोधपुर रहकर सामाजिक गतिविधियों में सक्रीय रहते है ये सामाजिक गतिविधियाँ ही साफा बांधने में महारत हासिल करने की कारण बनी |
जोधपुर में शादी विवाहों में धनि लोग अच्छे पैसे खर्च कर साफे बंधवाते थे पर आम आदमी अपना ये शौक कैसे पूरा करे यही चिंता कर शेर सिंह राठौड़ ने संकल्प लिया कि वो आम आदमी के लिए बंधा-बंधाया साफा उपलब्ध कराएँगे और इसी जूनून के चलते उन्होंने साफों का व्यवसाय किया और वे सफल हुए आज उनके उनके द्वारा बांध कर बेचे गए गए शेर शाही साफों के नाम से प्रसिद्ध है |
आज शेर सिंह राठौड़ जोधपुर साफा हाउस के नाम से जोधपुर की पावटा रोड पर मानजी का हत्था के पास अपना साफा का व्यवसाय चालते है साथ ही साफों को राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के ब्लॉग जगतफेसबुक पर भी मौजूद है |साफों के बारे में किसी भी तरह की जानकारी के लिए उनसे इस पते पर संपर्क किया जा सकता है –
जोधपुरी साफा हाउस
24 ,मान जी का हथा,
पावटा `बी` रोड ,जोधपुर (राज.)
फ़ोन नंबर : 94142 -01191 / 9314712932
0291-2541187
Email : jodhpurisafahouse@gmail.com

बेशक राजस्थान में समाज की नई पीढ़ी कार्पोरेट व वेस्टर्न कल्चर में ढूब अपना परम्परागत साफा बांधना भूल गयी हो पर शेर सिंह का १८ वर्षीय पुत्र अजीतपाल सिंह एक घंटे में बिना थके १०० से ज्यादा साफे बांध सकता है | एक साफा बाँधने में उसे मुस्किल से ३० से ४० सैकिंड लगते है और उसे विभिन शैलियों के १५ तरीकों के साफे बाँधने में महारत हासिल है |
अजीतपाल देश के बड़े-बड़े शादी समारोहों में साफा बाँधने के के लिए शामिल होने के साथ ही साफा बाँधने के लिए मारीशस,मलेशिया व सिंगापूर की यात्राएं भी कर चूका है | सिंगापूर के शादी समारोह में बारातियों के लिए उसने मात्र डेढ़ घंटे में १२५ साफे बाँध कर वहां उपस्थित सभी मेहमानों को आश्चर्यचकित कर दिया था |
१५ अलग-अलग शैलियों में साफा बाँधने वाले अजीतपाल को सबसे ज्यादा मजा मारवाड़ी शैली में साफा बांधने में आता है जिसे वह कुछ सैकिंड़ो में बांध देता है |

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22 COMMENTS

  1. सिर्फ राजस्थानी साफा ही नहीं , भोजन और पहनावा भी ग्लोबल हो गया है …
    ग्लोबल होने के बाद कहीं हमारे लिए ही दुर्लभ ना हो जाये …

    अच्छी जानकारी के लिए आभार ..!

  2. राजस्थानी साफे की शान निराली है! उदयपुर में मेरे चीफ इंस्ट्रक्टर श्री शक्तावत जब पहनते थे तो अपनी मूंछों के साथ बहुत फबते थे!
    दूसरी ओर मुझे डा राधाकृष्णन और सी वी रमन के साफे भी आकर्षित करते रहे हैं।

  3. राजस्थान के रंग बिरंगे साफे हर किसी का मन मोह लेते है | आज गाँवों में भी बांधने वाले गिने चुने लोग बचे है | नयी पीढ़ी बाँधना चाहती है लेकिन यह कला सिखाने वाले भी बहुत कम है |पुराने समय में हमारे यंहा १५ अगस्त और २६ जनवरी को स्कूल में राजपूत छात्रों के लिए केसरानी साफा अनिवार्य था |आपने शेर सिंह जी का पता देकर बहुत से लोगो का ज्ञान वर्धन किया है | इसके लिए आभार |

  4. बहुत सुंदर जानकारी, हमारे पंजाबियो(हिंदुयो) मै भी पहले पगडी बांधते थे… अब सिर्फ़ शादियो मै ही पगडी बच गई है, युरोप मै भी बहुत समय पहले पगडी का रिवाज था…. फ़िर धीरे धीरे यह टोपी बनती गई.
    धन्यवाद

  5. कमाल करते हैं शेर सिंह जी,
    कलफ़ लगे साफ़े यदि कोई सात से अधिक बांधे तो माथे-कान की चमडी छिल जाती है,वे जरूर सेफ़्टी का प्रयोग करते होंगे,पर बडे परिश्रम का काम है।

  6. बहुत अच्च्ची जानकारी मिली. न जाने क्यों साफों का प्रयोग लुप्त सा हो गया., शादी जैसे अवसरों को छोड़कर. दक्षिण में भी साफों का प्रचलन रहा है.


  7. रतन जी,
    आरज़ू चाँद सी निखर जाए, ज़िंदगी रौशनी से भर जाए।
    बारिशें हों वहाँ पे खुशियों की, जिस तरफ आपकी नज़र जाए।
    देर से ही सही, पर जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    …………..
    अद्भुत रहस्य: स्टोनहेंज।
    चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..।

  8. बहुत अच्छी जानकारी दी आप ने, पहले हमारे घरो मै भी पगडी बांधते थे, मेरे दादा, नाना सब लेकिन अब सिर्फ़ व्याह शादियो पर या किसी खास मोको पर ही बांधते है पगडी. धन्यवाद

  9. बहुत अच्छी जानकारी दी आप ने, पहले हमारे घरो मै भी पगडी बांधते थे, मेरे दादा, नाना सब लेकिन अब सिर्फ़ व्याह शादियो पर या किसी खास मोको पर ही बांधते है पगडी. धन्यवाद

  10. आज के दौर में तो बनिये, ब्राह्मण और दलित भी राजपूतों साफों को बांधने के लिए लालायित रहते हैं। लोग सिर्फ राजपूतों से नफरत करते हैं, परन्तु राजपूती संस्कृति अपनाने में देर नहीं करते। महिलाओं का पहनावा देखेंगे तो आज किसी भी जाति व धर्म की महिला राजपूती पोशाख पहनना अपनी शान समझती हैं। शेरसिंहजी को साधुवाद जो उन्होंने यह परंपरा पुन: स्थापित करने का सफल प्रयास किया।

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