सीकर जिले का गाड़ोदा गांव रावजी का शेखावतों का एक महत्त्वपूर्ण ठिकाना है | रावजी का शेखावत कछवाह वंश की शेखावत शाखा की उपशाखा है | गांव में ठिकानेदारों द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत और खुबसूरत गढ़ बना है | इस ठिकाने की स्थापना सीकर के प्रतापी शासक राव शिवसिंहजी के छोटे भाई स्वरूपसिंहजी ने की थी | स्वरूपसिंह जी सीकर के राजा दौलतसिंह जी के तीसरे पुत्र थे | जिन्हें गाड़ोदा की जागीर मिली | ठाकुर स्वरूपसिंहजी के देवीसिंह, नत्थूसिंह, बैरिशाल सिंह, सुल्तानसिंह और थानसिंह नाम के पांच पुत्र थे | थानसिंह ने वि.सं. 1803 में भासू की लड़ाई में वीरगति प्राप्त की थी |
ठाकुर स्वरूपसिंहजी के बड़े पुत्र की असामयिक मृत्यु हो गई थी, उनके पुत्र अजीतसिंह को अपनी ननिहाल गढ़ी खानपुर (तंवरावाटी) में रहे | बड़े होने पर उन्हें सीकर के राजा ने बागड़ोदा गांव दे दिया, जहाँ का जमींदार कोई कायमखानी नबाब था | अजीतसिंह ने नबाब को हटाकर बागड़ोदा में अपनी जागीर कायम की |
ठाकुर स्वरूपसिंहजी के दूसरे पुत्र नत्थूसिंहजी गाड़ोदा के जागीरदार बने | कहा जाता है कि नत्थूसिंहजी के पास एक अच्छी नस्ल का घोड़ा था | जिसे देखकर सीकर के राजा देवीसिंहजी का मन ललचा गया और उन्होंने नत्थूसिंहजी से घोड़ा मांग लिया | नत्थूसिंहजी द्वारा मना करने पर सीकर के राजा ने गाड़ोदा पर सेना भेज दी | उस वक्त नत्थूसिंहजी गढ़ में नहीं थे, पर उनका साथ देने के लिए 500 बिदावत राठौड़ चढ़ आये और सीकर की सेना को घेर लिया |
सीकर की सेना ने तोपों से गाड़ोदा गढ़ पर गोले बरसाये | नत्थूसिंहजी की ठकुरानी ने वीरांगना थी, उसने सीकर के दो तोपचियों को गोली मार कर मार दिया | जिसमें एक तोपची का नाम फतेदारखान था | बाद में समझौता हुआ, पर सीकर के राजा देवीसिंहजी ने गाड़ोदा के अधीन आठ गावों में से दो गांव भोजासर और धिरन्या छोटी खालसा कर लिए |
नत्थूसिंहजी के बाद क्रमश: कर्णसिंह, हनुंतसिंह, गोविन्दसिंह (शेखीसर से गोद आये), मेघसिंह हुए | ठाकुर स्वरूपसिंहजी द्वारा स्थापित यह ठिकाना आगे चलकर दो भाइयों में बंट गया, यानि इस ठिकाने में दो पाने हो गए | वर्तमान में एक पाने के उतराधिकारी ठाकुर मानसिंहजी है और दूसरे पाने के उत्तराधिकारी है- ठाकुर रघुवीरसिंह जी व ठाकुर तेजपालसिंहजी | गढ़ के एक हिस्से में ठाकुर रघुवीरसिंह जी व ठाकुर तेजपालसिंहजी रहते हैं और दूसरे हिस्से में ठाकुर मानसिंहजी का परिवार निवास करता है |
गढ़ के तात्कालिक मुख्य द्वार पर सीकर सेना द्वारा दागे तोप के गोलों के निशान आज भी यथावत है | सीकर की तोपों से चले गोले गढ़ का कुछ भी नुकसान नहीं कर पाए | इसके पीछे भी गाड़ोदा के शिवमठ में रहने वाले बाबाजी के चमत्कार की एक रोचक कहानी प्रचलित है | जनश्रुति के अनुसार गाड़ोदा के शिवमठ में रहने वाले एक साधू महाराज को जब गढ़ पर आक्रमण के बारे में पता चला तो उन्होंने कह दिया था कि तोपों के गोले गढ़ का कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे | और कहा जाता है कि सीकर की तोपों के गोले गढ़ का कुछ भी नुकसान नहीं कर पाये | जब तोपची मर गए और गढ़ की रक्षा के लिए पांच सौ बिदावत राठौड़ आ गए तो सीकर राजाजी को समझौते के लिए बाध्य होना पड़ा, और अपनी लाज बचाने के लिए गढ़ पर गोलों के निशान के लिए बाबाजी की शरण में जाना पड़ा |
ठाकुर रघुवीर सिंहजी ने इस प्रकरण पर चर्चा करते हुए बताया कि आखिर सीकर राजा साधू महाराज के पास गए और समझौता की बात की, पर साथ ही उन्होंने कहा कि इस तरह जाना सीकर राज्य की प्रतिष्ठा कम करेगा अत: कम से कम गढ़ पर गोलों के निशान तो लगने दीजिये, तब साधु महात्मा ने बात मान ली और सीकर की सेना ने गढ़ पर दो गोले मारे, जिनसे गढ़ क्षतिग्रस्त तो नहीं हुआ पर उसके निशान आज भी कायम है |
इस गढ़ में सिर कटने के बाद भी लड़ने वाले एक योद्धा का पवित्र स्थान बना है, जो आज भी स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र है |