गजसिंहपुरा फोर्ट : गजसिंहपुरा फोर्ट में रहने वाले ठाकुर सुमेरसिंह कूंपावत के अनुसार गजसिंहपुरा जोधपुर के महाराजा गजसिंह जी प्रथम ने बसाया था | सुमेरसिंहजी के अनुसार उस वक्त इस क्षेत्र के जंगल में पानी व चारे की अच्छी उपलब्धता थी | यहाँ कहीं से भटक कर आये घोड़े घोड़ियों पानी व घास के जंगल होने के कारण रहने लगे | धीरे धीरे इन लावारिश घोड़े घोड़ियों की संख्या बढती गई | जब किसी ग्रामीण ने इन्हें देखा तो जोधपुर महाराजा को सूचना दी गई | चूँकि उस काल में घोड़े घोड़ियों की सेना में जरुरत हुआ करती थी, अत: बड़ी संख्या में तंदुरुस्त घोड़े घोड़ियों के मिलने की खबर पर खुद महाराजा इस क्षेत्र में आये |
महाराजा ने उन घोड़ों को प्रशिक्षित करने के लिए जंगल में ही एक परकोटा बनाया और अपने नाम से गजसिंहपुरा गांव बसाया | बाद में यह गांव आसोप के कुंवर भाखरसिंहजी को जागीर में मिला | महाराजा गजसिंहजी प्रथम ने यहाँ अस्तबल के लिए परकोटा, दरवाजा व कर्मचारियों के रहने के लिए आवास निर्मित कराये थे, पर बाद में ठाकुर भाखरसिंहजी के वंशजों ने समय समय पर इसमें निर्माण कराया | गढ़ के प्रवेश द्वार में घुसते ही एक शानदार दरीखाना बना है जिसका निर्माण ठाकुर अचलसिंहजी ने कराया था |
गजसिंहपुरा की जगीर कई बार जब्त हुई, फिर बहाल हुई, इस कारण यहाँ के ठाकुर इस गढ़ का उस ढंग से विकास नहीं करा पाये जितना अन्य ठिकानों का हुआ | देश में सत्ता परिवर्तन के समय यहाँ के आखिरी जागीरदार ठाकुर रामसिंहजी कूंपावत थे | ठाकुर रामसिंहजी गजसिंहपुरा के प्रथम सरपंच भी रहे | ठाकुर रामसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र ठाकुर रणबीरसिंहजी वर्तमान में इस गढ़ के ठाकुर है |
आसोप से यहाँ आने वाले ठाकुर भाखरसिंहजी की गांव के तालाब के किनारे स्मारक रूप में छतरी बनी है और स्थानीय लोग उन्हें लोकदेवता के रूप में पूजते हैं |