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खुदाय बावळी : कहानी

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बहुत पुरानी बात है एक नगर में एक मुल्ला जी रहते थे और उसी नगर के दुसरे मोहल्ले में एक सिपाही अल्लेदाद रहता था| दोनों ही बेरोजगार थे कमाई का कोई साधन नहीं, दोनों के ही घर में घोर गरीबी| एक दिन मुल्लाजी कमाई करने अपने नगर से दुसरे नगर के लिए निकले उधर अल्लेदाद भी नौकरी की तलाश में निकला| रास्ते में शाम को दोनों ही एक कस्बे में पहुंचे,वहीँ दोनों की आपस में मुलाकात हुई,बात बात में दोनों को पता चला कि दोनों एक ही नगर के रहने वाले है सो दोनों में दोस्ती हो गयी| उस कस्बे में रात काटकर सुबह दोनों दैनिक कार्यों से निवृत हो चलने लगे तो मुल्लाजी बोले-
“रात को भी भूखे सोये थे और अब नौकरी की तलाश में आगे भी भूखे ही चल रहे है, दोस्त अल्लेदाद जब यहाँ से ही भूखे चल रहे है तो नौकरी भला कहाँ मिलेगी?”
अल्लेदाद बोला- ” मुल्ला जी मेरे पास एक धेला है,उसके भूंगड़े ले आते है दोनों आधा आधा बाँट कर खा लेंगे, आप अपना हिस्से का अधेला (आधा धेला) जब कमायें तब दे देना|”

दोनों ने दुकान से भूंगड़े खरीदकर खाए,ऊपर से पानी पीया और चलने की सोच ही रहे थे कि इतने में एक आदमी दुकान पर आया और बणिये से कहने लगा – ” जरा सौदा जल्दी दे दे, देर मत लगा आज मेरी बेटी का निकाह है और मुझे अपना सामान घर में रख कहीं से कोई मुल्लाजी लेकर आने है|
इतना सुनते ही मुल्लाजी बोल पड़े -” अरे भाई मुल्ला तो मैं भी हूँ, कहीं और क्यों जाता है, तेरी बेटी का निकाह तो मैं करवा दूंगा|”
मुल्लाजी की बात सुनते ही वह व्यक्ति बड़ा खुश हुआ और मुल्लाजी को अपने साथ चलने का आग्रह किया| तभी उधर से एक जागीरदार गुजरा,उसे भी नई नई जागीर मिली थी सो वह भी अपनी जागीर के इंतजाम के लिए सिपाही भर्ती कर रहा था, अल्लेदाद को देखा तो उसे मासिक वेतन पर उस जागीरदार में नौकरी पर रख लिया| दोनों को काम मिल गया जैसे दोनों मित्र जाने लगे तो अल्लेदाद ने मुल्लाजी से कहा –
” मियांजी मेरा अधेला आपमें बाकी है जो मेरे घर दे देना|”

और दोनों अपने अपने गंतव्य की और रवाना हुए,जागीरदार को जागीर नई ही मिली थी एक दिन एक गांव के किसी जागीरदार से उसका झगड़ा हो गया और वह जागीरदार उस झगड़े में काम आया| अल्लेदाद की छ: महीने की तनख्वाह बाकी थी सो डूब गयी और वह अपने घर वापस आ गया| उधर मुल्लाजी को भी निकाह में कुल आठ टके मिले थे, इधर उधर घुमने के बाद भी कोई दूसरा काम नहीं मिला तो मुल्लाजी भी छ:महीने खराब कर वापस अपने घर आ गए| एक दिन अल्लेदाद के घर में ज्यादा ही कड़की हो गयी तो उसे मुल्लाजी से अपना अधेला माँगना याद आया| अल्लेदाद मुल्लाजी के घर गया| दोनों मित्र आपस में मिले,इधर उधर की ढेरों बातें की,जब अल्लेदाद चलने को हुआ तो उसने अपना अधेला माँगा| मुल्लाजी भी कड़की में थे,अधेला कहाँ से दे, सो तीन दिन बाद इंतजाम कर देने का वायदा कर अल्लेदाद को विदा किया|

अब अल्लेदाद नियत समय पर अपना अधेला मांगने आ जाय और मुल्लाजी से इंतजाम ना हो,हालांकि अल्लेदाद बहुत ही शर्म वाला व्यक्ति था पर बेचारा इतनी कड़की में था कि अपने दोस्त मुल्लाजी से अधेला मांगे बिना भी नहीं रह सकता था| उधर तंगी के चलते मुल्लाजी से कोई व्यवस्था नहीं हो पा रही थी, उन्हें भी बड़ी शर्म आ रही थी कि अपने मित्र का अधेला तक नहीं दे पा रहे है| एक दिन तंग आकर मुल्लाजी ने अपनी पत्नी से कहा –
” अल्लेदाद हमेशा अधेला मांगने आ जाता है और अधेला का कहीं से जुगाड़ नहीं हो पा रहा और जब तक कोई जुगाड़ नहीं होगा ये पीछा नहीं छोड़ेगा| सो मैं जैसे कहूँ वैसे करना ताकि इससे पीछा छूटे|”
” इससे से पीछा छुड़ाने के लिए तो आप जो कहेंगे मैं वैसे ही करुँगी|” मुल्लाजी की बीबी बोली|
” आज अल्लेदाद जैसे ही आये मेरे ऊपर चादर डाल देना और रोना शुरू कर देना कि मुल्लाजी का तो इंतकाल हो गया|”
” बात तो आपकी ठीक है पर वो कह देगा कि मैं दफ़नाने के लिए जनाजे के साथ जवुंगा,तब क्या करेंगे?” बीबी ने आशंका जताई|
“तो क्या अपने कब्र में पर्दा होता है और उसके पीछे रख कर दफनाते है कोई खतरा नहीं|” मिंयाँजी ने बीबी को तसल्ली दी|
ये कह मुल्लाजी चारपाई पर चादर ओढ़ कर सो गए जैसे अल्लेदाद आया मुल्लाजी की बीबी ने रोना शुरू कर दिया और अल्लेदाद को बताया मुल्लाजी चल बसे|”

रोना धोना सुन आस पास के लोग इकठ्ठा हो गए,मुल्लाजी के जनाजे की तैयारी कर ले जाने लगे तो अल्लेदाद भी अपने दोस्त के जनाजे के साथ चल दिया| कब्र खोदी,पर्दा लगाया और उसके पीछे मुल्लाजी को रख ऊपर से मिटटी डाल मुल्लाजी को दफना दिया गया| सभी लोग अपने अपने घर को रवाना हुए पर अल्लेदाद ने सोचा -“मुल्लाजी अपने दोस्त थे,चार दिन साथ रहे,साथ खाया पीया भी सो आज की रात यहीं कब्रिस्तान में मुल्लाजी के साथ रहूँगा|’

सब के चले जाने के बाद भी अल्लेदाद कब्रिस्तान में बैठा रहा,रात हुई तो पास में बने मकबरे में जाकर अपनी ढाल तलवार पास में रखकर बैठ गया| और मुल्लाजी के साथ बिताये दिन याद करने लगा| आधी रात गए चार चोर उधर से चोरी करने के लिए गुजरे वे रोज कब्रिस्तान के पास से ही गुजरते थे| चोरों की नजर मुल्लाजी की नई बनी कब्र पर पड़ी तो उनमे से एक बोला-
” यारो नई कब्र दिख रही है लगता है कोई नया पीर हुआ है| हे नए पीर आज मेरे हाथ माल लगे तो पांच रूपये तुम्हारी कब्र पर चढाऊं|”
दुसरे चोर ने भी कब्र की और सलाम कर कहा- ” हे नए पीर ! मेरे हाथ भी आज माल लगे तो मैं भी तुझ पर चादर चढ़ाऊंगा|”
तीसरे चोर ने भी मन्नत मांगी -” हे नए पीर ! मेरे हाथ भी आज माल लगा तो मैं भी पांच रूपये चढ़ाऊंगा|”
चौथा चोर बोला- ” हे नए पीर ! यदि आज मेरे हाथ बढ़िया माल लगा तो मैं तेरे ही नाक कान काटकर चढ़ाऊंगा|”

इस तरह चारों चोर नए पीर से मन्नत मांग चोरी करने आगे बढे| उसी रात पूरब से बादशाह का खजाना गाड़ियों में भर कर आ रहा था, चोरों ने मौका देख उसी खजाने की गाड़ियों से रुपयों व मोहरों से भरी दस थेलियां चुरा ली| उन थेलियों को एक कपड़े की गाँठ में बाँध चोर मिठाई की एक टोकरी लेकर सीधे कब्र पर आये| मिठाई चढ़ाई, दो ने पांच पांच रूपये कब्र पर चढ़ाये,तीसरे ने चादर चढ़ाई, चौथे चोर ने कब्र खोदना शुरू की, उसे बाकी तीनों ने समझाया कि पीर की कब्र मत खोद| पर वह नहीं माना कहने लगा- ” हो सकता है मेरे बोले चढ़ावे से ही पीर खुश हुआ हो और मेरी मन्नत कबूल कर ही आज ओलिया ने अपने ऊपर मेहरबानी की हो|”

चौथे चोर ने कब्र खोदकर परदे में हाथ डाल जैसे मुल्लाजी का नाक पकड़ा तो मुल्लाजी ने जोर से उसे हड़काया, तभी मुल्लाजी की आवाज सुनकर अल्लेदाद अपनी ढाल तलवार ले मकबरे से हाक करते हुए खुद कर चोरों पर झपटा| चोर तो अपना पूरा माल वहीँ छोड़ अपनी जान बचाकर भागे| मुल्लाजी कब्र से बाहर निकले देखा तो रुपयों व स्वर्ण मुद्राओं से भरी गाँठ पड़ी| बोले-
“अल्लेदाद अल्ला की बातें ही निराली होती है कभी क्या कर दे, कभी क्या न कर दे|”
अल्लेदाद बोला- ” हाँ मुल्लाजी ऐसा ही है |”
देखे क्या मियां अब्दुल्ला,लेणा होय सो लेव,
ऐसी खुदाय बावळी,किसी का उठाया किसी को देय|

दोनों ने माल की गठरी उठाई और मकबरे में जाकर आधा आधा बाँट लिया| माल आधा आधा बांटने के बाद अल्लेदाद ने मुल्लाजी से अपना अधेला माँगा| अब उस धन में अधेला था नहीं और पूरा धेला मुल्लाजी से दिया ना जाए, मुल्लाजी ने अल्लेदाद को बाद में आकर अधेला ले जाने को कहा पर वह नहीं माना और इसी बात पर दोनों में बहस होने लगी|

उधर चोरों को बड़ा पछतावा हुआ| इतना माल हाथ लगने के बावजूद भी खाली रह गए वे उस एक साथी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराने लगे जिसने कब्र खोदी| फिर भी चोरों ने सलाह की कि -मकबरे की तरफ जाकर देखें कि वहां क्या हो रहा है| एक चोर हिम्मत कर उधर आया,मकबरे की और से दोनों के झगड़ने की आवाजें आई,चोर ने एक मकबरे की एक खिड़की में देखने के लिए अपना सिर घुसाया ही था कि उसी समय मुल्लाजी को उबासी आई,मुल्लाजी ने अपना शरीर थोड़ा मोड़ हाथ ऊँचे किये तो चोर का सिर मुल्लाजी के हाथ में आ गया,चोर ने अपना सिर तो निकाल लिया पर उसकी पगड़ी मुल्लाजी के हाथ में रह गयी| मुल्लाजी ने तो पगड़ी अल्लेदाद की गोद में फेंकी और बोले-
” ये ले तेरे अधेले के बदले|’

चोर ने भी ये सुना और वो भाग कर अपने साथियों के पास गया और बोला-” भागो यहाँ से| वहां तो इतने पीर इकट्ठे हुए है कि सारा धन अधेला अधेला में बंट गया है एक पीर के हिस्से में अधेला नहीं आया तो मेरी पगड़ी छिनकर उसे उसके हिस्से में दे दी| जल्दी भागों यहाँ से,मैं तो बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर आया हूँ|”

चोर भाग गए और मुल्लाजी और अल्लेदाद अपने अपने हिस्से के धन की गठरी ले अपने घर आ गए|

नोट – यह सिर्फ एक कहानी है कृपया इसमें कहीं भी वास्तविकता ना तलाशें|

15 COMMENTS

  1. कहानी बहुत बढ़िया रही
    पढ़कर आनंद आ गया , साथ ही बचपन की कितनी ही यादें ताजा हो गयीं, जब ऐसे किस्सों को सांस रोककर सुना करते थे !

  2. बहुत ही मजेदार कहानी है . मैंने अपने २ मित्रों को इसे पढने के लिए कहा.

    Subhash
    microwebs.co.in

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