खरवा का बीरबल कविया चण्डीदान | स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा क्रांतिकारी गोपालसिंह खरवा के पास हरदम रहने वाले सभासदों में कुछ व्यक्ति अद्भुत प्रतिभा सम्पन्न थे। उनका यहाँ उल्लेख न करना उस समय के खरवा इतिहास के चमकते नगों को विस्मृति की परतों के नीचे दबा देने तुल्य होगा। वे लोग किसी महाविद्यालय या शिक्षण संस्थान के स्नातक नहीं थे। किसी बड़े महाराजा के राज दरबार में रहकर वहाँ के उच्चस्तरीय वातावरण में पालित-पोषित नहीं हुए थे। जिनका यहाँ उल्लेख किया जा रहा है | उनमें से कुछ तो शायद हस्ताक्षर करना भी नहीं जानते थे। परन्तु वे सभाचतुर, नीति निपुण, श्रेष्ठ वक्ता, कार्यसाधक, जोड़-तोड़ बैठाने में दक्ष और अनेक अन्य गुणों से अलंकृत थे।
उनमें थे एक उस युग का खरवा राजदरबार का बीरबल। वे खरवा क्षेत्र के गाँव सारणियां के जागीरदार के पुत्र कविया चण्डीदान थे। चारणों की कविया शाखा में उत्पन्न चण्डीदान अपनी वाक् चातुरी, हाजिर जवाबी, मस्खरापन और प्रत्युत्पन्न मति के लिए अजमेरा के इस्तमरारी ठिकानों में खूब जाने माने व्यक्ति थे । मसूदा के राव बहादुर बहादुरसिंह तो उसे खरवा का बीरबल कह कर ही सम्बोधित करते थे। वन भ्रमण व शिकार के अवसर पर जब खरवा व मसूदा के राव एकत्रित होते तब चण्डीदान के हास्य चुटकलों को सुनकर बड़े प्रसन्न होते थे, साथ ही वे उसकी वाक् चातुरी से सतर्क भी रहते थे कि वह कहीं उनकी किसी अटपटी बात पर हास्यपूर्ण व्यंग प्रहार न कर बैठे। उस समय में वहाँ के ठिकानों में उसकी जोड़ का हाजिर जवाबी और प्रत्युत्पन्न मति कोई अन्य व्यक्ति नहीं था। उसके पिता का नाम बांकीदान और दादा का नाम रामदान था।
खरवा का बीरबल कविया चण्डीदान के सन्तान नहीं थी, किन्तु सारणियां ग्राम वि. सं. 1981 तक उसके भाईयों के अधिकार में बना रहा। तदोपरान्त अल्पकाल में ही वे सब निःसन्तान ही चल बसे। सारणियां में सन् 1960 ई. तक कवियों की हवेली और कोटड़ी जन-शून्य, जीर्ण-शीर्ण अवस्था में उनकी स्मृति को अपनी गोद में समेटे खड़ी थी। मुगल सम्राट अकबर के दरबारी बीरबल के चुटकुलों की भाति चण्डीदान के चुटकुलें आज भी खरवा के वृद्धजनों के मुख से सुने जा सकते हैं | वे भाग्यशाली उन्हें सुनाकर उन बीते सुनहले दिनों की याद किया करते हैं | बीरबल की भांति खरवा का वह बीरबल भी आज नहीं है | किन्तु उसकी स्मृति काल की परतों के नीचे दबकर भी आज विद्यमान है | शूरमा व कवि दोनों ही कालजयी होते हैं |
ठाकुर सुरजनसिंह शेखावत, झाझड़ द्वारा लिखित पुस्तक “राव गोपालसिंह खरवा” से साभार