28.6 C
Rajasthan
Wednesday, September 27, 2023

Buy now

spot_img

क्या महाराणा प्रताप को खानी पड़ी थी घास की रोटियां ?

अकबर के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान महाराणा प्रताप ने महल त्याग कर पहाड़ों में रहकर अकबर की शाही सेना के खिलाफ निरंतर संघर्ष जारी रखा| इस संघर्ष पर अपनी कलम चलाते हुए कई लेखकों, रचनाकारों ने कविताएं लिखी, जिनमें राणा के संघर्ष की कठिनाईयों को घास की रोटियां खाने की उपमाएं दी गई| इसी तरह के काव्य और सुनी सुनाई बातों के आधार पर कर्नल टॉड ने अपनी इतिहास पुस्तक में कई कहानियां जोड़कर भ्रांतियां पैदा की, हालाँकि मैं मानता हूँ कि इस तरह की भ्रांतियां फ़ैलाने के मामले में कर्नल टॉड का कोई षड्यंत्र नहीं था, पर उसने बिना शोध किये कई बातें लिख दी, जिस वजह से इतिहास में कई भ्रांतियां फैली| उसी कड़ी में टॉड ने राणा व उनके परिजनों द्वारा घास की रोटियां खाने व कुंवर अमरसिंह की बच्ची के हाथ से जंगली बिल्ली द्वारा रोटी छिनकर ले जाने की कपोल कल्पित घटना जोड़ दी| उसकी इसी कहानी को आगे बढाते हुए राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य कवि, साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया ने भी “अरे घास री रोटी ही, जद बन बिलावडो ले भाग्यो” लिखी| इस रचना में कवि ने आगे बढ़ते हुए राणा द्वारा विचलित होकर महाराणा को अधीनता स्वीकार करने का पत्र तक लिख देने की बात लिख दी गई| हालाँकि सेठिया से पहले भी इस तरह की रचनाएँ मौजूद थी| जिनमें बीकानेर के राजकुमार पृथ्वीराज और महाराणा के बीच पत्र संवाद की चर्चाएँ है|

इन रचनाओं में भले ही कवियों, रचनाकारों का मंतव्य महाराणा के संघर्ष को उकेरने के लिए उपमा स्वरूप घास रोटियां खाना आदि लिखा हो पर इस तरह के काव्य ने आम जनता के मानस पटल पर छा कर ऐतिहासिक भ्रान्ति ही फैलाई है, जिसका जिम्मेदार कर्नल टॉड है|

कर्नल टॉड महाराणा के पहाड़ियों में महाराणा के संघर्षपूर्ण जीवन का वर्णन करते हुए लिखता है-“कुछ ऐसे अवसर आये कि अपनी अपेक्षा भी अधिक प्रिय व्यक्तियों की जरूरतों ने उसे कुछ विचलित कर दिया| उसकी महाराणी पहाड़ों की चट्टानों या गुफाओं में भी सुरक्षित नहीं थी और ऐशोआराम में पलने योग्य उसके बच्चे भोजन के लिए उसके चारों तरफ रोते रहते थे, क्योंकि अत्याचारी मुग़ल उनका इतना पीछा करते थे कि राणा को बना बनाया भोजन पांच बार छोड़ना पड़ा| एक समय उसकी राणी तथा कुंवर (अमरसिंह) की स्त्री ने जंगली अन्न के आटे की रोटियां बनाई और प्रत्येक के भाग में एक एक रोटी आई| आधी रोटी उस समय के लिए और आधी दूसरे समय के लिए| प्रताप उस समय अपने दुर्भाग्य पर विचार करने में डूबा हुआ था कि उसकी लड़की की हृदय बेधी चीत्कार ने उसे चौंका दिया| बात यह हुई कि एक जंगली बिल्ली उसकी लड़की की रक्खी हुई रोटी उठा ले गई, जिससे मारे भूख के वह चिल्लाने लगी|” (टॉड; राजस्थान; पृष्ठ.398)

कर्नल टॉड द्वारा उक्त घटना लिखकर जो भ्रांति फैलाई गई, उसे राजस्थान के कई मूर्धन्य इतिहासकार अतिशयोक्तिपूर्ण मानते हुए इस तरह की घटना को कपोलकल्पना मानते है, क्योंकि इतिहासकारों के अनुसार महाराणा के लिए उस वक्त अन्न-धन किसी भी प्रकार की कमी नहीं थी| अकबर की सेना चितौड़, उदयपुर सहित मेवाड़ का कुछ हिस्सा ही महाराणा से छीन पाई थी और महाराणा के पास मेवाड़ राज्य का विस्तृत हिस्सा कब्जे में था, जो धन धान्य, फलों आदि से भरपूर था| जहाँ महाराणा व उनके परिवार के लिए खाने-पीने की वस्तुओं की कोई कमी नहीं थी| महाराणा की उस समय की परिस्थितियों व कर्नल टॉड की इस कपोलकल्पित घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते मेवाड़ के इतिहास पर शोध कर लिखी गई पुस्तक “उदयपुर राज्य का इतिहास; भाग-2 के पृष्ठ 394 पर सुप्रसिद्ध इतिहासकार राय बहादुर गौरीशंकर हीराचंद ओझा लिखते है –“यह सम्पूर्ण कथन अतिशयोक्तिपूर्ण व कपोलकल्पना मात्र है, क्योंकि महाराणा को कभी ऐसी कोई आपत्ति सहनी नहीं पड़ी थी| उत्तर में कुम्भलगढ़ से लगाकर दक्षिण से ऋषभदेव से परे तक अनुमान 90 मील लम्बा और पूर्व में देबारी से लगाकर पश्चिम में सिरोही की सीमा तक करीब 70 मील चौड़ा पहाड़ी प्रदेश, जो एक के पीछे एक पर्वतश्रेणियों से भरा हुआ है, महाराणा के अधिकार में था| महाराणा तथा सरदारों के जनाने व बालबच्चे आदि इसी सुरक्षित प्रदेश में रहते थे| आवश्यकता पड़ने पर अन्न आदि लाने को गोड़वाड़, सिरोही, ईडर और मालवे की तरह के मार्ग खुले हुए थे| उक्त पहाड़ी प्रदेश में जल तथा फल वाले वृक्षों की बहुतायत होने के अतिरिक्त बीच बीच में कई जगह समान भूमि आ गई है और वहां सैंकड़ों गांव आबाद है| ऐसे ही वहां कई पहाड़ी किले तथा गढ़ बने हुए है और पहाड़ियों पर हजारों भील बसते है| वहां मक्का, चना, चावल आदि अन्न अधिकता से उत्पन्न होते है और गायें, भैंसे जानवरों की बहुतायत के कारण घी, दूध आदि पदार्थ आसानी से पर्याप्त मिल सकते थे| ऐसे ही छप्पन तथा बानसी से लगाकर धर्यावाद के परे तक सारा पहाड़ी प्रदेश महाराणा प्रताप के अधिकार में था| शाही सेना से केवल मेवाड़ का उत्तर पूर्वी प्रदेश ही घिरा हुआ था|”

ओझा जी के उक्त कथन के बाद पाठक खुद महाराणा की स्थिति का अनुमान लगा सकते है कि महाराणा प्रताप का संघर्ष बेशक कठिनाईयों से भरपूर था, उनके परिजनों के लिए खाने पीने, रहने आदि के लिए महलों जैसी सुविधाएँ नहीं थी, लेकिन परिस्थियाँ इतनी प्रतिकूल भी नहीं थी और अकबर की सेना उन पर इतना दबाव भी नहीं बना पाई थी कि महाराणा को घास की रोटियां पड़ती और उनकी परिवार की कोई बच्ची घास की रोटी किसी बिल्ली द्वारा ले जाने पर भूख के मारे बिलखती| यह सब महाराणा के संघर्ष को उपमाएं देने के लिए रचनाकारों, कवियों द्वारा गढ़े गये दोहों आदि व उनके आधार पर कर्नल टॉड जैसे इतिहासकार द्वारा सुनी सुनाई बातों के आधार पर लिखने से भ्रांतियां फैली है|

maharana pratap or ghas ki rotiyan, maharana pratap ki kahani hindi me, maharana song free download, महाराणा प्रताप

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Stay Connected

0FansLike
3,873FollowersFollow
21,200SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles