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Saturday, June 10, 2023

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क्या पारम्परिक परिधान रूढ़ीवाद व पिछड़ेपन की निशानी है ?

पिछले दिनों फेसबुक पर अपने आपको एक पढ़ी-लिखी, आत्म निर्भर, नौकरी करने, अकेले रहने, आजाद, बिंदास व स्वछंद जिंदगी जीने वाली लड़की होने का दावा करने वाली एक लड़की ने लिखा- “पढाई के दिनों उसकी एक मुस्लिम लड़की सहपाठी थी वो पढने लिखने में होशियार, समझदार, आधुनिक विचारों वाली थी पर जब बुर्के की बात आती तो वह एकदम रुढ़िवादी हो जाती और बुर्के का कट्टरपन तक जाकर समर्थन करती|”

मुझे समझ नहीं आ रहा कि यदि वह शिक्षित मुस्लिम बालिका यदि बुर्के को अपना कर अपनी सांस्कृतिक पहचान बचाए रखना चाहती है तो इसमें किसी और को क्या और क्यों दिक्कत ? हाँ यदि कोई महिला अपनी पारम्परिक पौशाक अपनाना नहीं चाहती और उसे यदि कोई अपनाने के लिए कोई मजबूर करे तब उसका विरोध जायज है और करना भी चाहिये पर अपनी मर्जी से कोई अपनी सांस्कृतिक पहचान बचाने हेतु पारम्परिक परिधान धारण करना चाहे तो उसका विरोध क्यों ?

एक शिक्षित महिला चाहे वह किसी भी धर्म जाति की हो पारम्परिक पहनावा अपनाती है तो कुछ तो खास होगा उसके उस पारम्परिक पहनावे में| यदि उसमें कुछ खास ना भी हो और किसी को वह पहनावा अच्छा लगता हो तो यह उस महिला का व्यक्तिगत मामला है कि वह क्या अपनाना चाहती है ?

राजस्थान के राजपूत व राजपुरोहित समाज में आज भी महिलाएं अपनी सदियों से चली आ रही पारम्परिक पौशाक को बड़े चाव से पहनती है| यही नहीं राजस्थान की अन्य जातियों की शिक्षित महिलाएं भी इस पारम्परिक ड्रेस को बड़े चाव से अपना रही है और यह पारम्परिक ड्रेस आज बाजार में आधुनिक फैशन पर भारी पड़ती है|

तो क्या ये शिक्षित महिलाएं रुढ़िवादी है ? शिक्षित होने के बावजूद पारम्परिक पौशाक अपनाने के चलते है पिछड़ी है ?
आप की या मेरी नजर में कदापि नहीं पर हाँ उपरोक्त कथित पढ़ी-लिखी, आत्मानिर्भर, नौकरी करने, अकेले रहने, आजाद, बिंदास स्वछन्द जिंदगी जीने वाली लड़की होने का दावा करने वाली लड़कियों की नजर में ये रुढ़िवादी या पिछड़ी हुई ही है!!

क्योंकि इनकी नजर में शायद पाश्चात्य परिधान अपनाते हुए अधनंगा बदन दिखाते हुए घूमना आधुनिकता की निशानी है, शरीर पर छोटे छोटे परिधान पहन देह प्रदर्शन करते हुए सार्वजनिक स्थानों पर अपने पुरुष मित्रों के साथ अश्लील हरकतें करना ही आधुनिकता का पैमाना है और शिक्षित होने बावजूद अपनी संस्कृति को बचाए रखने, अपनी अच्छी परम्पराओं को बचाये रखने वाली लड़कियां व महिलाएं रुढ़िवादी है, पिछड़ी हुई है|

काश अपने आपको आधुनिक कहने वाले कथित लोग लोगों के परिधान देखकर उनके प्रति कोई धारणा बनाये जाने की जगह व्यक्ति की सोच, समझ, ज्ञान देख समझकर अपनी धारणा बनाये| मुझे अपनी पारम्परिक पौशाक धोती कुर्ता व पगड़ी पसंद है और कई मौकों पर मैं इसे अपनाता भी हूँ तो क्या उस दिन इन्हें पहनने के बाद मेरा अब तक अर्जित ज्ञान कम या ख़त्म हो जायेगा ? क्या उस दिन मेरी सोच बदल कर रुढ़िवादी हो जायेगी ?

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19 COMMENTS

  1. परिधान भी व्यक्तित्व का आईना होते है ।पारंपरिक पोशाकों को मौके- बेमौके जब भी अपनाते है तो पिछड़ापन नहीं गौरव का अनुभव होता है ।

  2. पारंपरिक परिधान तो हमारी संस्कृति और इतिहास का अमूल्य अंग है। ये कैसे पिछड़ेपन की निशानी हो सकती है?

  3. आज की पढ़ी लिखी युवा पीढ़ी धोती कुर्ता ओर पारंपरिक परिधानों को पहने लोगो को गाँव के गवार समझती है सा इनकी सोच का तो राम ही जाने सा

  4. अपने मानसिक स्तर को बेढंगे परिधानों द्वारा उच्च दिखाने की कोशिश ही असल में बेवक़ूफ़ होने की निशानी है. हर शख्स स्वयं को भीतर से भली भाँती जानता है .जब वह कहीं से भी खुद को कम पाता है तो तो उस तथाकथित कमी को लिबास के द्वारा भ्रमित करने का प्रयास करता है. आप देखें की जिसे हम पश्चिमी देशों का फैशन समझते हैं वो असल में अपने वस्त्रों के प्रति उनकी लापरवाही होती है. क्योंकि वो कहीं से भी खुद को किसी से कम नहीं आंकते .गांधी जी ,विवेकानंद जी ,कबीर जी ,आज के समय में बाजपेयी जी ,राहुल गांधी जी ,शीला दीक्षित जी ,राम देव जी व कई अन्य नाम हैं जिन्हें गिनाया जा सकता है ,ये सब ज्ञान के उस स्तर पर खुद को महसूस करते होंगे की इन्हें किसी प्रकार के ऐसे पहनावे की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती होगी जो इनके चरित्र से ,इनकी सभ्यता से मेल न खाता हो. हम तो एक बात जान पाए हैं साहब,(शायद अन्य लोग सहमत न हों ) जो खुद को भीतर से जितना मजबूत पाता है वो अपने पारंपरिक परिधान के उतना ही निकट होता है. मुस्लिम बहनों को बुर्के में रूडीवादी समझने वाले लोग यदि खुद के नंगेपन को आधुनिक और ज्ञानी होने का लक्षण मानते हैं तो उनकी समझ के ऊपर प्रश्नचिन्ह लग जाता है .

  5. पारंपरिक परिधान गौरव बढाते हैं ..हाँ आजकल के युवा अवश्य इस में श्रम महसूस करते हैं.जबकि यह गलत है क्योंकि अपना पारम्परिक परिधान कभी त्यागना नहीं चाहिए.मैं यहाँ अरब देशों के लोगों को देखती हूँ कि वे कितना भी पढ़ लिख जाएँ…कहीं भी रहें ..कितने भी पैसे वाले हो परन्तु अपना पारम्परिक परिधान ही पहनते हैं ..अपनी भाषा में हीआपस में बोलते हैं[अंग्रेजी में नहीं] .यहाँ तक की श्री लंका के निवासी भी अपने ही परिधान में नज़र आतेहैं …मुझे लगता है ,,हम भारतीय ही हैं जो अपने 'भारतीय ' परिधानों में कम नज़र आते हैं ..पश्चिमी पहनावा …जींस /शोर्ट्स पहनना शान समझते हैं ..जबकि पश्चिमी देश के लोग भी अपने ही देश के परिधानों में नज़र आते हैं,,,मेरे विचार में अपने पारम्परिक परिधानों को कमतर आंकना अपनी संस्कृति को अपमानित करना है.बाकी येही है कि जिस में आप को सुविधा हो वही पहनें..इसे ज्ञान से जोड़ना ठीक नहीं.
    ———

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