ऑरकुट पर भी इंटरनेट दोस्तों से तरह-तरह के और बड़े मजेदार स्क्रब मिलते रहते है इसी कड़ी में बाड़मेर से थान सिंह राठौड़ ने यह कविता स्क्रब की जो यहाँ प्रस्तुत है |
आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो
बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो
क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना
और दिमाग को पुराने पल याद हो ना होआज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ
आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ
क्या पता कल ये बाते
और ये यादें हो ना होआज एक बार मन्दिर हो आओ
पुजा कर के प्रसाद भी चढाओ
क्या पता कल के कलयुग मे
भगवान पर लोगों की श्रद्धा हो ना होबारीश मे आज खुब भीगो
झुम झुम के बचपन की तरह नाचो
क्या पता बीते हुये बचपन की तरह
कल ये बारीश भी हो ना होआज हर काम खूब दिल लगा कर करो
उसे तय समय से पहले पुरा करो
क्या पता आज की तरह
कल बाजुओं मे ताकत हो ना होआज एक बार चैन की नीन्द सो जाओ
आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो
क्या पता कल जिन्दगी मे चैन
और आखों मे कोई सपना हो ना होक्या पता
कल हो ना हो
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एक और इन्टरनेट मित्र ने सीकर से यह कविता स्क्रब की
अरे हमें तो अपनों ने लूटा,
गैरों में कहाँ दम था.
मेरी हड्डी वहाँ टूटी,
जहाँ हॉस्पिटल बन्द था.मुझे जिस एम्बुलेन्स में डाला,
उसका पेट्रोल ख़त्म था.
मुझे रिक्शे में इसलिए बैठाया,
क्योंकि उसका किराया कम था.मुझे डॉक्टरों ने उठाया,
नर्सों में कहाँ दम था.
मुझे जिस बेड पर लेटाया,
उसके नीचे बम था.मुझे तो बम से उड़ाया,
गोली में कहाँ दम था.
और मुझे सड़क में दफनाया,
क्योंकि कब्रिस्तान में फंक्शन था
दोनों कवितायें अच्छी लगीं. स्क्रैप बुक में कभी कभी मजेदार entries आती हैं. आभार.
वाह बहूत बढीया मजा आ गया कब्रीस्तान मे फंस्न था 🙂
कल हो ना हो वाला भी बहूत अच्छा है कापी कर के कंप्यूटर मे रख लेता हूं क्या पता ईन्टरनेट कल हो ना हो
उपर वाली कविता वर्तमान मे सही साबित हो रही है क्यों कि ना तो पहले जितनी बारिश होती है और ना उसमे कोइ भीगना चाहता है । ओर्कुट पर बहुत सी अच्छी कविताओ चुटकुलओं का संग्रह स्क्रेप के रूप मे है ।
हमें तो कविता ने लुटा , गद्य में कहा दम था .
बहुत बढ़िया आप ने लिखा , औरों में कहा दम था .
……………बहुत सुंदर रचनाये हैं ……..
बहुत लाजवाब जी.
रामराम.
बहुत ही उम्दा कविता …लाजवाब
दोनों ही कविताएं अच्छी हैं। हकीकत तो दोनों में है लेकिन पहली मे संजीदगी से और दूसरी में व्यंग्य में।