Home Editorials कोई कम ना समझे प्याज को

कोई कम ना समझे प्याज को

11

2007 के फरवरी माह की बात है मैं अपनी कम्पनी के लिए किसी अत्यंत जरुरी काम से जोधपुर महेश जी खत्री के कपड़ा छपाई कारखाने में गया हुआ था| मुझे जो कपड़ा वहां तैयार करवाना था एक तो वह बहुत जरुरी था फिर मुझे भी जल्द काम खत्म कर ससुराल में एक शादी में शामिल होने जाना था| महेश जी को गांव की शादी व शादी में गांव वालों द्वारा किये जाने इंतजाम देखने का बड़ा शौक था सो उन्होंने भी इच्छा जता दी थी कि वे भी मेरे साथ शादी में चलेंगे सो हम काम जल्द खत्म कर 19 फरवरी 2007को दोपहर बाद जोधपुर से डीडवाना के पास स्थित निम्बी गांव के लिए निकले और शाम को गांव पहुँच गये| बारात आ चुकी थी बारातियों का स्वागत आदि करने के बाद शादी के दूसरे रस्मों रिवाज निभाए जा रहे थे तो बाराती भोजन का आनंन्द ले रहे थे|

चूँकि महेश जी को खाने से पहले पीने का शौक था सो मेरे साले जी उनके लिए उनका पसंदीदा ब्रांड ले आये| हालाँकि मेरे ससुराल वाले पीने से दूर रहते है इसलिए बारात के लिए ऐसी व्यवस्था नहीं थी सो महेश जी को उनकी स्कोर्पियो गाड़ी में ही बैठाकर पीने की व्यवस्था कर दी गई| शादी में ही जोधपुर से एक इंजीनियर भी आये थे वे भी पीने के शौक़ीन थे सो मैंने उन्हें बुला लिया ताकि वे महेश जी का साथ दे सके|

इंजीनियर साहब ने गाड़ी में बैठते ही वहां रखी नमकीन व सलाद आदि को देखकर मेरे साले से बोला-
“ये कचरा उठा लीजिये यहाँ से ! और सुनये एक प्लेट में प्याज काटकर भिजवा दीजिये| आज खत्री साहब को प्याज के साथ पिलायेंगे|”

“प्याज के साथ ?” महेश जी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा और वहां से हटाई जा रही नमकीन आदि की एक प्लेट से थोड़ा नमकीन रख ही लिया|

थोड़ी देर में गाड़ी में राजस्थान के भूरे रंग के देशी प्याज की काटी हुई सलाद की प्लेट आ चुकी थी महेश जी ने व्हिस्की का एक शिप लेने के बाद जैसे ही एक प्याज का टुकड़ा मुंह में लिए तो अनायास मुंह निकला-
“वाह ! आज पहली बार देशी प्याज का स्वाद चखा, हमें तो पता ही नहीं था कि प्याज का स्वाद इतना बढ़िया होता है|”
और कहते हुए महेश जी ने प्याज ऐसे खाने शुरू किये जैसे वे सेव खा रहें हो| राजस्थान में पैदा होने वाले देशी प्याज में कड़वापन बिल्कुल नहीं होता और प्याज का आकार (Size) भी बड़ा होता है, ऊपर का सुखा छिलका उतारकर बच्चे भी कोरे प्याज को ऐसे खा जाते है जैसे सेव खा रहें हों| बचपन में भरी गर्मियों में हम खेलने के लिए जब भी घर से बाहर निकलते थे तब निक्कर की जेबों में दो चार प्याज जरुर होते थे| पीपल के पेड़ पर झुरनी डंडा खेल के बाद पेड़ पर बैठ प्याज खाने का मजा ही कुछ और था|

प्याज से जुड़ी बचपन की यादें ताजा करते हुए तीनों में प्याज को लेकर ही चर्चा छिड़ गई| प्याज की किस्मों, कीमतों, खेती करने के समय व तरीकों तक पर चर्चा हुई और इसी दरमियान हमने महेश जी से मजाक की कि-
“आप प्याज को यूँ समझ रहे है पर आपको पता है प्याज यूँ नहीं है यह बहुत ताकतवर है रेतीले रेगिस्तान में जब लुएँ चलती है, सूर्य रेत के टीलों को ऊपर से अंगारे बरसा कर गर्म कर देता है| नीचे धरती आग का गोला बन घर से बाहर निकलने पर रोक लगा देती है और आसमान ऊपर आग बरसा कर झुलसा रहा होता है तब राजस्थान के वासियों को लू व गर्मी से यही प्याज बचाता है| इस प्याज के होते गर्मी व लू से होने वाली बीमारियाँ राजस्थान वासियों के पास तक नहीं पटकती|

और तो और पहले तो सिर्फ आँखों में जलन के चलते आम आदमी इससे डरता था पर अब तो प्याज से राजनैतिक पार्टियां और सरकारें तक डरने लगी है डरे भी क्यों नहीं आखिर प्याज की वजह से एक बार दिल्ली में भाजपा चुनाव हार चुकी है| भाजपा के शासन में प्याज की बढ़ी कीमतों ने उसे ऐसा सत्ता से बाहर किया कि आजतक दिल्ली विधानसभा की सत्ता में भाजपा वापसी नहीं कर सकी और तो और प्याज की मेहरबानी से सत्ता में आई कांग्रेस सरकार भी अभी हाल में प्याज की बढ़ी कीमतों के चलते दहशत में है कि कहीं इतिहास ना दोहरा जाय|

वर्तमान हालात पर ही क्यों जाय ? आजादी से पहले ही भी प्याज सत्ता खोने का कारण बन चुका है| कहते है चुरू के तत्कालीन बिदावत ठाकुर बहुत सीधे सादे और भोले थे सो उनके नौकर चाकर दूध घी आदि पोष्टिक खाद्य सामग्री तो खुद खा जाते और ठाकुर साहब को प्याज रोटी खिलाते| किसी वजह से बीकानेर के राजा ने चुरू पर आक्रमण हेतु सेना भेजी और बीकानेर की सेना ने बड़ी आसानी से चुरू को जीत लिया| चुरू ठाकुर साहब बीकानेर सेना का प्रतिरोध ही नहीं कर पाये| तब उनकी उस हार पर एक बेबाक चारण कवि ने ये दोहा कहा-

कांदा खाया कमधजां जी, घी खायो गोला|
चुरू चाली ठाकरां, बाजन्ते ढोलां ||
(कांदा = प्याज, कमधज = राठौड़, गोला = दास, ठाकरां = ठाकुर साहब)

इस घटना से जाहिर है राजस्थान वासियों का प्रिय प्याज पहले भी सिर्फ रसोई में ही नहीं सत्ता के गलियारों में भी ठीक वैसे ही चर्चित रहा है जैसे आजकल चुनावों में प्याज की बढ़ी कीमतें चुनावी मुद्दा बन चर्चित होती है|

प्याज की कीमतें बढ़ने पर जहाँ राजनैतिक दलों व गरीब की आँखों में आंसू व डर के भाव नजर आते है वही कभी कभार प्याज की बम्पर खेती से प्याज की कीमतें इतनी घट जाती है कि किसान की लागत भी नहीं निकलती तब खेत में प्याज की उपज का ढेर देखकर किसान की आँखों में भी आंसू निकलते देखे जा सकते है|

11 COMMENTS

  1. कुचामन को देशी कांदो बहुत मिठो हुव है सा पण आजकल किसान भाई विलायती कांदा की खेती करबो चाव है सा
    रतन सिंह जी आपका ससुराल निम्बी जोधा है क्या ? जो लाडनू तहसील मे है या फिर निम्बी कला तो डीडवाना तहसील मे है!

  2. आपण राजस्थान में जद जेठ को बायरो चाल,जण प्याज सरीर का तापमान को संतुलन बणा बा में भी बहुत सहायक है । छाछ -राबड़ी अर रात की ठंडी मेस्सी रोटी व् प्याज इसुं बढ़िया कोई नाश्तो कोनी सा ।

  3. प्याज़ के बारे में उपयोगी पोस्ट।

    मेरी नई पोस्ट "जन्म दिवस : डॉ. जाकिर हुसैन" को भी पढ़े। धन्यवाद।
    ब्लॉग पता :- gyaan-sansaar.blogspot.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Exit mobile version