कुछ जरुरी काम हैं , बहुत जरुरी काम हैं
ना जाने कितने समारोह छोड़ दिए थे मैंने
यही कह कहकर कि काम है
बहनों की शादी हो या भाइयो की सगाई
बस एक दिन पहले ही पहुंच पाती हूँ
कैसे पहुँचती काम ही जो इतना होता हैं
कई बार मन करता हैं , सखियों से घंटो बतियाऊ
पर नहीं हो पाता …मन मारना पड़ता है
क्योंकि काम बहुत होता हैं
याद भी नहीं न जाने कितनी गर्मियां निकल गई
और न जाने कितने इतवार पर मुझे छुट्टी नहीं मिली
कैसे मिलती ? काम ही जो इतना होता हैं
अब कैसे समझाऊ की कितना काम होता हैं
काम ही कर रही थी ना मैं
जब उस घनघनाती घंटी ने बताया कि
एक दुर्घटना ने मुझ से सुहागन होने का हक छीन लिया हैं
सफ़ेद चादर में लिपटे अपने पिता को देख सहम ना जाये
बच्चो को खुद से लिपेटे खड़ी थी मैं
जाने अनजाने कुछ चहेरो की भीड़ में से तभी
किसी ने फुसफुसाया
क्या करेगी बेचारी अब ,कैसे चलेगा इसका संसार
”कुछ काम भी तो नहीं करती !”
केसर क्यारी….उषा राठौड़

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