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Wednesday, June 7, 2023

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काव्य कथा ने बना दिया इस देशभक्त राजा को देशद्रोही : फ़िल्में कितना इतिहास बिगड़ेगी सोचो

ज्ञान दर्पण पर पिछली पोस्ट में भी आपने पढ़ा कि पत्रकार, साहित्यकार डा. आनन्द शर्मा ने कैसे जयचंद पर शोध किया और उन्हें जयचंद के खिलाफ इतिहास में ऐसे कोई सबूत नहीं मिले कि जिनके आधार पर जयचंद को गद्दार ठहराया जा सके| डा. आनंद शर्मा अपने ऐतिहासिक उपन्यास “अमृत पुत्र” के पृष्ठ 48 पर राजस्थान के राठौड़ राजवंश का परिचय देते हुए लिखते है – “राठौड़ राजवंश की गहड़वाल (गहरवार) शाखा के चन्द्रदेव ने सन 1080 के आ-पास कन्नौज विजय के द्वारा राठौड़ राज्य की स्थापना की पुन:प्रतिष्ठा की| इसके वंशज जयचंद्र ने सन 1170 में कन्नौज का राज्य संभाला| उत्तर भारत के प्रमुख चार राजवंशों में से एक, दिल्ली और अजमेर के अजमेर के चौहान शासक पृथ्वीराज के साथ जयचंद्र का शत्रु भाव था| इसी कारण गजनी के महत्वाकांक्षी और शक्तिशाली सुल्तान शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी के भारत आक्रमण पर पृथ्वीराज के साथ हुए “तराइन” के प्रथम युद्ध में उसने पृथ्वीराज की सहायता नहीं की| वस्तुत: पृथ्वीराज ने जयचंद्र जैसे शक्तिशाली राजा की उपेक्षा करते हुए अन्य राजाओं की तरह उसे युद्ध सहायता के लिय निमंत्रित ही नहीं किया| इस युद्ध में पृथ्वीराज विजयी हुआ और शहाबुद्दीन गोरी किसी तरह प्राण बचा कर भाग निकलने में सफल हो गया| किन्तु अगले वर्ष सन 1192 में शहाबुद्दीन गोरी फिर चढ़ आया| “तराइन” के इस दुसरे युद्ध में उसने पृथ्वीराज को बंदी बनाकर मार डाला| युद्ध निमंत्रण न मिलने के कारण जयचंद्र इस बार भी युद्ध से तटस्थ रहने के लिए विवश था|

अपने विश्वस्त गुलाम कुतुबुद्दीन को दिल्ली का सूबेदार बना कर गोरी गजनी लौट गया| इसी के साथ भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना हो गई| तराइन के युद्धों में उत्तर भारत के अधिकांश राजाओं द्वारा पृथ्वीराज की सहायता करने के विपरीत कन्नौज नरेश का न आना, कालांतर में अनेक प्रवादों को जन्म दे गया| विदेशी आक्रान्ताओं को आमंत्रित कर सहायता करने का आरोप लगाकर जयचंद को देशद्रोही हिन्दू राजा के रूप में बदनाम तक कर दिया गया| जबकि जयचंद्र ने शहाबुद्दीन को भारत पर आक्रमण करने के लिए न कभी निमंत्रित किया और न ही किसी प्रकार की सहायता ही की थी| आपसी मनोमालिन्य के बावजूद तराइन के दोनों युद्धों में पृथ्वीराज का साथ न देने के पीछे भी पृथ्वीराज द्वारा सहायता के लिए निमन्त्रण न मिलना ही एकमात्र कारण था| किन्तु पृथ्वीराज के आश्रित कवि चन्दबरदाई ने अपने प्रशस्ति काव्य पृथ्वीराज रासो में जयचंद्र की पुत्री संयोगिता का पृथ्वीराज द्वारा हरण की काल्पनिक कथा जोड़कर इसे इन दो तेजस्वी राजाओं के मध्य शत्रुता का कारण बता दिया| इतिहास धरा रह गया और चारणी कल्पना से उत्पन्न प्रवाद कालांतर में धार्मिक जयचंद्र को देशद्रोही का स्थायी कलंक दे गया, जबकि जयचंद्र के न तो कोई संयोगिता नामक पुत्री थी और न ही पृथ्वीराज की इस नाम से कोई राणी थी|”

अपनी पुस्तक के इसी पृष्ठ पर डा.आनंद शर्मा आगे लिखते है “ अपने स्वामी की वंदना और उसके विरोधी की निंदा ही चारणों का कार्य रहा है| किन्तु इससे पूर्व इन वंदना स्वरों ने किसी निर्दोष को देशद्रोही घोषित कर देने जैसा पाप नहीं किया था| पृथ्वीराज रासो की अप्रमाणिकता का अनुमान इससे ही हो जाता है कि चंदरबरदाई ने तराइन युद्ध में पृथ्वीराज को बंदी बनाकर गजनी ले जाने और अँधा करके आँखों में नींबू-मिर्च डाल कर यातनाएं देने के बाद, अंधे पृथ्वीराज द्वारा शहाबुद्दीन का शब्द भेदी बाण द्वारा वध करने का उल्लेख तक कर डाला था| यह समस्त प्रकरण घोर काल्पनिक है| पृथ्वीराज को तो तराइन युद्ध में ही बंदी बनाकर मारा जा चूका था| यही इतिहास प्रमाणित सत्य है| किसी भी इतिहासकार ने पृथ्वीराज रासो में वर्णित घटनाओं को सत्य नहीं माना| लेकिन एक चारण की काव्य कथा ने धर्मपरायण महाराजा को कालांतर में देशद्रोही सिद्ध कर दिया था|

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7 COMMENTS

  1. Ye bhi research karna chahiye ki fir Gauri ki death kab and kese hui…and uski kabra ke pas shaitan ki samadhi kiski h jaha se today's real Rajput Hero Sher Singh Rana kuch lekar India aaya h?

  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (03-11-2014) को "अपनी मूर्खता पर भी होता है फख्र" (चर्चा मंच-1786) पर भी होगी।

    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर…!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

  3. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर एक धर्म विशेष को निशाना बनाया जा रहा है हमें अब भी सावधान हो जाना चाहिए नहीं तो आने वाली पीढ़ीया हमें माफ नहीं करेगी। डिस्क्लेमर ( यह सत्य घटना पर आधारित नहीं है सभी पात्र काल्पनिक है) चस्पा कर ऐसे ही इतिहास की ऐसी तैसी करेंगे।

  4. पृथ्वीराज रासो एक पूर्णतया काल्पनिक ग्रन्थ है। इसका ऐतिहासिकता से कोई लेना देना नहीं हे। विभिन्न ऐतिहासिक चरित्रों के संबंध मे जनमानस में अक्सर किवदंतियां प्रचलित होती हे। समय बीतने के साथ उनमे काल्पनिक बातें जुड़ती जाती हे। जयचंद, पृथ्वीराज व गौरी तीनों ही ऐतिहासिक चरित्र है। इनके कल से कई सौ वर्ष बाद किसी कवि ने इनके संबंध में प्रचलित किवदंतियों को आपस में जोड़ कर, उसमे रोचकता बढ़ाने के लिए कुछ अन्य काल्पनिक घटनाएं जोड़कर इस ग्रन्थ की रचना की हैं।

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