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कन्वोकेशन गाउन मसले पर ईसाई समूह का बेमतलब प्रलाप

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पिछले शुक्रवार को केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा एक दीक्षांत समारोह में कन्वोकेशन गाउन उतार देने के बाद देश में पहली बार छत्तीसगढ़ के घासीदास सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी ने २६ अप्रेल को होने वाले दीक्षांत समारोह में गाउन की जगह खादी का कुर्ता-पायजामा व बांस की टोपी पहनने का फैसला किया है जो एक स्वागत योग्य कदम है |
वही दूसरी और उच्च शिक्षण संस्थानों में दीक्षांत समारोहों के दौरान गाउन पहनने की परम्परा को उपनिवेशवाद का बर्बर स्मृति चिन्ह बताने पर उड़ीसा के एक ईसाई समूह ने केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश से माफ़ी मांगने की मांग की है | इस समूह को रमेश का बयान पोप और विश्वभर के ईसाईयों के खिलाफ लगता है और यह समूह मानता है कि केन्द्रीय मंत्री द्वारा यह कहना – ” कन्वोकेशन गाउन औपनिवेशिक परिपाटी है और आजादी के ६० बाद भी हम इसके क्यों चिपके है | मध्य युगीन पादरियों और पोप की तरह के परिधानों के बजाय हम साधारण कपडे पहनकर दीक्षांत समारोह में शामिल क्यों नहीं हो सकते | ” उनकी धार्मिक भावनाओं पर आघात है |
अब बताईये केन्द्रीय मंत्री द्वारा सिर्फ यह कहना कि -” मध्य युगीन पादरियों और पोप की तरह के परिधानों के बजाय हम साधारण कपडे पहनकर दीक्षांत समारोह में शामिल क्यों नहीं हो सकते | ” में कौनसी ऐसी बात नजर आती है जिसमे उन्होंने पोप और इसाईयों का अपमान किया हो ? यह तो कोई भी व्यक्ति कह सकता है कि -वो पोप , किसी धर्माचार्य या किसी शंकराचार्य जैसे कपडे क्यों पहने ? इसमें किसी का कैसा अपमान ?
पर हमारे यहाँ छोटी -छोटी बातों में भी में अल्प संख्यक कोई न कोई बात अपनी धार्मिक भावनाओं से जोड़कर फालतू का बखेड़ा कर देते है कि उनकी धार्मिक भावनाएं आहात हो गई |
इस तरह की ये कुछ छोटी छोटी बातें ही इन अल्पसंख्यकों की असली मानसिकता उजागर कर देती है कि ये अब भी ये किसी न किसी तरह बहुसंख्यकों पर अपनी परम्पराएं व अपना एजेंडा लादने के चक्कर में रहते है | इन्ही छोटी छोटी बातों की प्रतिक्रिया में अनावश्यक आपसी तनाव बढ़ता है | आज आजादी के साठ वर्ष बाद अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई किसी परम्परा को हम मानने से इंकार करते है तो ईसाई समुदाय को क्यों आपत्ति होनी चाहिए ? इन्हें भी भी हमारी भावनाएं समझनी चाहिए थी और केन्द्रीय मंत्री के खिलाफ कोई भी व्यक्तव्य देने से बचना चाहिए था | इस ईसाई समूह द्वारा मंत्री से माफ़ी मांगने की मांग करने वाला वक्तव्य देना इस समूह की संकुचित व् घटिया मानसिकता का धोतक व बचकाना नहीं तो ओर क्या हो सकता है ?

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9 COMMENTS

  1. हमारे यहां भी गुरुकुलों में नवस्नातकों को उपाधि वितरण होता है,
    वहां तो इन लबादों की आवश्यकता नही पड़ती। जयराम रमेश जी मुलाकात हुई है एक बार फ़्लाईट में अच्छे इंसान है जो उन्होने
    लबादा उतार फ़ेंका।
    अच्छी पोस्ट
    राम राम

  2. अल्पसंख्यकों के बारे में कुछ भी कहो तो उन्हें मिर्ची लग जाती है और वो इतना उत्पात मचाते ही फिर भी हम खामोश रहते है
    हमें जयराम रमेश जी का समर्थन करना चाहिए

  3. जयराम रमेश की हिम्‍मत की दाद देनी चाहिए। लेकिन इस देश की कठिनाई यह है कि हमने राजनैतिक खांचे बना लिए हैं, जब यही बात जयराम रमेश ने कही तो सभी ने स्‍वीकार किया केवल कुछ ईसाई चिल्‍लाए। लेकिन यदि यही बात भाजपा का कोई व्‍यक्ति कर देता तब भी क्‍या कांग्रेस उसे मौन स्‍वीकृति देती?

  4. श्री जयराम रमेश जी का यह कदम स्वागत योग्य है! हमें अपनी परंपरा और धरोहर का भी ख्याल रखना चाहिए! गाउन पहनना पच्छिम की सभ्यता हो सकती है; लेकिन यहाँ की नहीं! हमें हर जगह हमारी विरासत और परंपरा का ध्यान रखना होगा! किसी समूह से माफ़ी मांगने की बात इस देश के सन्माननीय मंत्री महोदय का अपमान साबित हो सकता है…..मंत्री का अपमान देश का अपमान जानकर शासन को उचित कदम उठाने चाहिए!

  5. सब कुछ तो आपने कह दिया है अब हम इसमें अलग क्या कहने वाले है | सच्चाई काफी कड़वी होती जो इन लोगो से हजम नहीं हो रही है |

  6. पिछले शुक्रवार को केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा एक दीक्षांत समारोह में कन्वोकेशन गाउन उतार देने जैसी कई विदेशी परम्पराओ को हम भारतियों को ठीक करना है, फालतू का बखेड़ा करने वाले अपना काम तो करेंगे ही सोचना हमें है . जयराम रमेश को अभिनन्दन…….
    रामपाल गाडोदिया सूरत

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