आमेर के राजाओं के कुछ शिलालेखों – मिर्जा राजा मानसिंह का वि.स. 1658 का सांगानेर से मिला शिलालेख, राजा रायसल दरबारी का रेवास (शेखावाटी) के आदिनाथ मन्दिर का वि.स. 1661 का शिलालेख, लीली (अलवर राज्य) के वि.स. 1803 एवं वि.स. 1814 के शिलालेखों में अपने को कुर्मवंशी लिखा है। पृथ्वीराज रासों में भी आमेर के राजा पुंजवन (पंजवन) को कुर्म ही लिखा है। अतः कुर्म व कछवाहा एक ही जाति के बोधक हैं। जबकि पं. हरप्रसाद शास्त्री का मत है कि कछवाहा अपने को कुश के वंशज नरवर का बतलाते हैं। नरवर निषादों, अछूतों का देश था। वहाँ कच्छपघात जाति रहती थी। इनके द्वारा इसी कच्छपघात जाति का दमन करने के कारण कछवाहा कहा गया।1
अतः उपरोक्त सभी तथ्यों के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कछवाहा वंश की असली शाखा राजा नल से आरम्भ होती है जिसने अपने पैतृक राज्य रोहतासगढ़ को छोड़कर नरवर क्षेत्र में अपना नवीन राज्य कायम किया था। जिस समय राजा नल इस क्षेत्र में आया उस समय यह क्षेत्र निषेध देश कहलाता था जिसमें नागवंशीय कच्छप जाति का वर्चस्व कायम था और पदमावती इनकी राजधानी थी। राजा नल ने नागवंशीय कच्छप जाति को परास्त कर उनकी राजधानी पर कब्जा कर लिया। बाद में इसका नाम बदलकर अपने नाम पर नलपुर रखा जो कालान्तर में नरवर रियासत्त के नाम से प्रसिद्ध हुई। इतिहासकारों के अनुसार राजा नल यहाँ लगभग नौंवी सदी में आया था।2 अतः नागवंशी कच्छप जाति को पराजित कर उनके क्षेत्र कच्छवाहघार पर कब्जा करने के कारण ही ये कच्छपारि, कच्छपघात, कच्छपहन या कच्छपहा कहलाये जाने लगे तथा बाद में यही शब्द बिगड़कर कछवाहा हो गया।3
लेखक : भारत आर्य, शोधार्थी, इतिहास एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
सन्दर्भ : 1. पं. हरप्रसाद शास्त्री, बंगाल ऐशियाटिक रिपोर्ट, 1913, पृ. 24, 2. दामोदर लाल गर्ग, जयपुर राज्य का इतिहास, पृ. 15-16, 3. जगदीश सिंह गहलोत, कछवाहों का इतिहास, पृ. 75