भाग. 2 से आगे….
इसी सन्दर्भ में एक दूसरा तथ्य मिलता है जिसमें कछवाहा राजपूतों का निकास पश्चिमोत्तर भारत से होना प्रतीत होता है। जिस समय सिकन्दर ने पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया था उस समय पहले तो इन लोगों ने उसका डटकर मुकाबला किया किन्तु बाद में इन्हें वहाँ से पलायन कर ‘कच्छ’ नामक स्थान में शरण लेनी पड़ी थी। कच्छ में व्यवस्थित हो जाने के बाद इनमें से कुछ लोग मालवा प्रदेश की तरफ चले गये तो कुछ लोगों ने राजस्थान की राह पकड़ी। इन स्थानों पर आबाद हो जाने के बाद इन्होंने स्वयं को कच्छ निवासी घोषित किया और इसी कारण से यह लोग कालान्तर में कच्छ से कछवाहे कहलाने लगे। जैसे भटनेर को जीतने के बाद यदुवंशियों ने स्वयं को भाटी राजपूत कहलवाया था, उसी प्रकार इन लोगों को भी कच्छ निवासी होने से कछवाहे कहा गया।1
देवींसिंह जी मंडावा की मान्यता भी कुछ-कुछ भाट परम्पराओं के अनुरूप ही है। उनका मानना है कि भारत के 36 राजकुलों में से कछवाहों का भी एक प्रसिद्ध कुल था, जो अयोध्यापति श्रीरामचन्द्र जी के सूर्यकुल की एक शाखा है। जिसका आरम्भ श्रीरामचन्द्र जी के पुत्र कुश से होता है। मंडावाजी आगे लिखते हैं कि सूर्यवंश में अयोध्या का अन्तिम राजा सुमित्र हुआ, जिसे मगध देश के शासक अज्ञातशत्रु ने करीब 470 ई.पू. परास्त कर अयोध्या पर अधिकार कर लिया था। इस पराजय के बाद सुमित्र के वंशज पंजाब की तरफ चले गये, जहाँ पर सुमित्र के दस पीढ़ी बाद रविसेन नामक व्यक्ति प्रभावशाली शासक बना, जिसने बाद में पंजाब से निकलकर मारवाड़, ढूँढ़ाड़ तथा ग्वालियर तक अपना अधिकार कर लिया था।2
ग्वालियर और नरवर के कछवाहा राजाओं के मिले कुछ संस्कृत शिलालेखों में उन्हें कच्छपघात या कच्दपारि लिखा है। जनरल कनिंघम ने लिखा है कि कच्छपघात और कच्छपारि का अर्थ एक ही है। अतः प्राकृत में कछपारि और फिर सामान्य बोलचाल में कछवाहा हो गया।3 बेडन पावल ने लिखा है कि कछवाहे वास्तव में विंध्याचल के पहाड़ी भाग से आये थे और इनका कुश के साथ कोई सम्बन्ध नहीं था। पं. राधाकृष्ण मिश्र इन्हें मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के वंशज होने से, पहले ऐक्ष्वाक कहलाना और बाद में बिगड़कर कछवाक और कछवाहा हो जाना बतलाते हैं। अतः मिश्र कछवाहों को इक्ष्वाकु के वंशज मानते हैं। अतः कछवाहों की कुलदेवी कछवाही (कच्छवाहिनी) थी, अतः इस कारण भी इनका नाम कछवाहा हो जाना सम्भव है। महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण का मत है कि कुश के एक वंशज कत्सवाध नामक राजा के पीछे इनका नाम कछवाहा पड़ा। कत्सवाध राजा के पिता का नाम कुर्म था जिससे कछवाहे कुर्मा व कुर्म भी कहलाते हैं।4
लेखक : भारत आर्य , शोधार्थी, इतिहास एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
सन्दर्भ : 1. दामोदर लाल गर्ग, जयपुर राज्य का इतिहास, पृ. 14-15, 2. कुं. देवीसिंह मंडावा, कछवाहों का इतिहास, पृ. 1-3, 3. कनिंघम, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, जिल्द 2, पृ. 319, 4. महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण, वंश भास्कर, भाग – द्वितीय, पृ. 1013-1014
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