हजारो वर्ष पुराने इतिहास की गाथा हैं औरत
जिस पर खड़े है हम ,वो धरती माता हैं औरत
अबला कहा जाता हैं ,वही चंडिका हैं औरत
इस जग में दुखिया का नाम है औरत
चारो धामो का धाम है औरत
भारत के हर त्यौहार का नाम है औरत
ममता का सागर है औरत
बदले की आग का आसमाँ है औरत
मोहब्बत का दरिया है औरत
नफरत का सुलगता सरिया है औरत
प्यार का घुमड़ता बादल है औरत
क्षमा सा बरसता पानी है औरत
मगर हमने इसकी कीमत ना जानी
अजीब दास्ताँ है अजब कहानी
फिर भी भगवान की महान रचना है औरत
केसर क्यारी..उषा राठौड़
bahut hi sunder chitran kiya hai aapne.
औरत की जय हो ।
उषाजी कुछ पंक्तियाँ तो इतनी कमाल लिखी हैं की प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं…..
हर त्योंहार का नाम है औरत…. और जिस पर हम खड़े हैं वो धरती माता है औरत ….. बहुत खूब
वाह ! बहुत बढ़िया चित्रण किया है आपने !
पिछली बार की तरह आज भी शानदार रचना !
औरत के चरित्र का चित्रण करती एक बेहतरीन रचना
वाह ! बहुत बढ़िया !!
बहुत उम्दा, रतन भाई.
सहमत।
सत्य बचन !
umda rachna hai USHA JI
बहुत खूब !!
1.5/10
अति सामान्य रचना
वाह ! बहुत बढ़िया !!
औरत एक रूप अनेक. सुन्दर रचना.
बहुत ही खूबसूरत रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
नारी ही नारायण है |
महिलाओं का सम्मान करना सीखना चाहिये, सभी को..
वाह उषाजी हर बार की तरह बहुत खूब लिखा है.
बोये जाते है बेटे और उग आती है बेटिया
खाद-पानी बेटो मे और लहलहाती है बेटिया
एवरेस्ट की ऊचाइयो तक ठेले जाते है बेटे
और चढ जाती है बेटिया
रुलाते है बेटे और रोती है बेटिया
कई तरह गिरते है बेटे और सम्भाल लेती है बेटिया
सुख के सपने दिखाते है बेटे, जीवन का यथार्थ बेटिया
जीवन तो बेटो का है, और मारी जाती है बेटिया
वाह उषाजी हर बार की तरह बहुत खूब लिखा है.
बोये जाते है बेटे और उग आती है बेटिया
खाद-पानी बेटो मे और लहलहाती है बेटिया
एवरेस्ट की ऊचाइयो तक ठेले जाते है बेटे
और चढ जाती है बेटिया
रुलाते है बेटे और रोती है बेटिया
कई तरह गिरते है बेटे और सम्भाल लेती है बेटिया
सुख के सपने दिखाते है बेटे, जीवन का यथार्थ बेटिया
जीवन तो बेटो का है, और मारी जाती है बेटिया