अक्सर लोग पूछते है मुझसे , ऐ बावरी, अपनी मुहब्बत का क्या नाम रखा है।
गज़ब ! कैसे जान गया जमाना , तेरे नाम को मैंने अपनी नज्मो में छिपा रखा है।
अजीब ! एक तुम थे जिसने गुनगुनायी थी मेरे संग संग राहो में दिलकश ग़ज़ल।
दे गयी थी राहत मेरे सोजे दिल को कितने सुहाने थे तेरे साथ जो बीते वोह मंज़र।
तेरे शहर की मस्त बहती नदियां मुझे आज भी तेरे अहसास की गहराईया दे जाती है।
कच्चे धागों का यह बन्धन , मेरी रूहे जान भी तेरी गली की हवा में मदहोश रहती है।
लेखिका: कमलेश चौहान (गौरी) : Copy Right at ( Saat Janam Ke Baad)
Nice.. tumhe q bataye.. hame apne baware ka kya nam rakha h…
भावनाए बोलती हैं …
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अक्सर लोग पूछते है मुझसे , ऐ बावरी, अपनी मुहब्बत का क्या नाम रखा है।
गज़ब ! कैसे जान गया जमाना , तेरे नाम को मैंने अपनी नज्मो में छिपा रखा है।
वाह!!!!
सुंदर एवम् भावपूर्ण रचना…
मैं ऐसा गीत बनाना चाहता हूं…
सुन्दर रचना।
मोबाइल के लिए एक बेहतरीन वेबसाइट!!
वाह लाजवाब.
रचना.
बहुत सुंदर लाजबाब रचना साझा करने के लिए आभार,,,
RECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
सशक्त अभिव्यक्ति..
कौन देता है मुहब्बए को भला कोई नाम,कतरा ए दिल से जो कतरा मिल जाये वो ही तो मुहब्बत है.
बेहद सुन्दर प्रस्तुति