अलाउद्दीन खिलजी की शाहजादी फिरोजा ने एक राजपूत राजकुमार से प्यार किया था| पर इस बात को ज्यादातर वामपंथी इतिहासकार नहीं लिखते| लेकिन यह ऐतिहासिक सत्य है कि शाहजादी फिरोजा ने जालौर के कुंवर वीरमदेव से बेपनाह प्यार किया था और वीरमदेव द्वारा शादी का प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद अल्लाउद्दीन ने जालौर पर चढ़ाई की और कई वर्षों के संघर्ष व घेरे के बाद जालौर के राजा कान्हड़देव, कुंवर वीरमदेव द्वारा जौहर-शाका करने के बाद किला फहत किया गया और वीरमदेव का सिर काटकर दिल्ली ले जाकर फिरोजा को दिया गया| फिरोजा ने सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार किया और अपनी माता से आज्ञा लेकर यमुना में कूद आत्महत्या कर ली|
अब प्रश्न उठता है कि आखिर फिरोजा को वीरमदेव से प्यार क्यों और कैसे हुआ? वो कौनसे कारण थे जो फिरोजा वीरमदेव से प्रभावित होकर उसे दिल दे बैठी| राजस्थान के प्रथम इतिहासकार मुंहता नैणसी ने अपनी ख्यात में इस प्रेम के बारे में बड़ा रोचक प्रसंग लिखा है| नैणसी के अनुसार अलाउद्दीन की सेवा में पन्जू नाम का एक पायक (इक्का) रहता था| वह बिन्नौट युद्ध कला में माहिर था, जो बहुत कम लोग जानते थे| पन्जू ने बादशाह के सभी पायकों को प्रतिस्पर्धा में हरा दिया था| तब बादशाह खिलजी ने उसकी प्रशंसा की कि वह दुनिया का सबसे बड़ा योद्धा है, तब पन्जू ने खिलजी को बताया कि जालौर का कुंवर वीरमदेव उसके मुकाबले का योद्धा है| तब खिलजी ने कान्हड़देव को पत्र लिखकर वीरमदेव को भेजने का फरमान जारी किया| कान्हड़देव इससे पहले खिलजी का काफी बिगाड़ कर चुका था, अत: सलाहकारों ने रिश्ते सुधारने के लिए वीरमदेव को दिल्ली भेजने की सलाह दी| वीरमदेव दिल्ली आ गए| कुछ दिन बाद खिलजी ने उसे पन्जू के साथ युद्ध का खेल दिखाने का कहा|
वीरमदेव ने विन्रमता से खिलजी को कहा कि यह उसका काम नहीं, फिर भी वे चाहते है तो एकांत में खेल दिखा दिया जायेगा| इस तरह एक खास जगह यह प्रतिस्पर्धा शुरू हुई| हरम की बेगमें भी चिकों की ओट में खेल देखने आई| पन्जू व वीरमदेव दो बार बराबर रहे| तीसरी बार में वीरमदेव ने कलाबाजी खाते हुए पन्जू के ललाट पर उस्तरे की हल्की सी चोट की और जीत गया| दरअसल यह कलाबाजी जिसमें पांव के अंगूठे से उस्तरा बांधकर उल्टी गुलांच खाना और उस्तरे की चोट दूसरे खिलाड़ी की ललाट पर मारने की कला पन्जू को नहीं आती थी| यह कलाबाजी वीरमदेव ने बिन्नौट कला पन्जू से ही सीखने के बाद कर्नाटक के किसी पायक से सीखी थी| इसी कला की कलाबाजी प्रयोग कर वीरमदेव ने पन्जू पर जीत दर्ज की|
यह खेल देख जहाँ बादशाह खिलजी अतिप्रसन्न हुआ वहीं उसकी बेगमें भी बहुत खुश हुई और बादशाह की एक शाहजादी फिरोजा तो वीरमदेव पर इतनी रीझ गई कि उसकी आशिक ही हो गई| तीन दिन तक शाहजादी ने अन्न नहीं खाया, पूछने पर कहने लगी वीरम से ब्याह हो तभी अन्न खायेगी| शाहजादी को पहले उसकी माँ ने फिर खिलजी ने खुद समझाया कि वह हिन्दू है ब्याह नहीं हो सकता, पर शाहजादी नहीं मानी| आखिर खिलजी ने वीरमदेव के आगे शादी का प्रस्ताव रखा| वीरमदेव तुर्क के साथ ब्याह नहीं करना चाहता था और दिल्ली में रहते मना करना भी सुरक्षित नहीं था| अत: उसने बारात लाने का बहाना बनाया और जालौर आकर खिलजी का प्रस्ताव ठुकरा दिया|
Bhansali Ko bolo ab Bana film is par