इसे विडम्बना ही कहेंगे कि सदियों तक शासन कर देश का नेतृत्व करने वाला क्षत्रिय समाज आज हर राजनैतिक दल में दोयम दर्जे पर है| आप किसी भी राजनैतिक दल के दूसरे महत्त्वपूर्ण बड़े पद पर राजपूत नेता के होने, कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री, मंत्री होने की संख्या को लेकर इतरा सकते हैं, लेकिन इन पदों पर आसीन कोई भी राजपूत नेता अपनी जाति के पक्ष में खुलकर नहीं बोल सकता, ना जातीय हितों की रक्षा कर सकता है| जो साबित करता है कि नेता रीढ़-विहीन है और इन पदों पर राजपूत मतों का दोहन करने या बुराई का ठीकरा इनके माथे पर फोड़ने के लिए राजनैतिक दलों ने इन्हें मुखौटे के रूप में बैठा रखा है|
लेकिन प्रश्न उठता है कि आज राजपूत देश की राजनीति की दूसरी पंक्ति में क्यों खड़ा ? उत्तर साफ़ है ! आजादी के समय हुई उठापटक और राजपूतों को पददलित करने के लिए हुए राजनैतिक षड्यंत्रों के बाद भी राजपूत अपने असली मित्र और शत्रुओं की पहचान नहीं कर पाए| राजपूतों की सत्ता का आधार श्रमजीवी वर्ग था जो उनके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर पुरुषार्थ करता था, उसी वर्ग को आजादी के बाद हमारे शत्रुओं ने उनके लिए कल्याणकारी योजनाओं का दिखावा कर हमारे खिलाफ किया और उनके वोटों से सत्ता पर काबिज होने में सफल रहे|
राजपूतों चुनौती नहीं दे, इससे बचने के लिए जागीरदारी उन्मूलन के माध्यम से राजपूतों की कमर तोड़ी, उनकी जमीने श्रमजीवी वर्ग को देकर आपस में लड़ाकर उनकी राजपूतों के साथ दूरियां बढाई, साथ ही राजपूतों का हितैषी होने का झूठा नाटक कर उन्हें अपने साथ भी रखा| ताकि समय आने पर उसी श्रमजीवी वर्ग के खिलाफ लट्ठ उठवाने में राजपूतों का प्रयोग किया जा सके| कांग्रेस, भाजपा किसी भी दल को देख लीजिये- जब तक अच्छा होता रहता है उसका श्रेय उसके नेता का और जब बात ना बने तब कांग्रेस में दिग्विजय सिंह, भाजपा में राजनाथसिंह, आम आदमी पार्टी में संजयसिंह आदि को आगे कर दिया जाता है|
अब समय है राजपूतों को राजनीति की दूसरी पंक्ति से पहली में आना है और इसके लिए उन्हें उन बुद्धिजीवी व पूंजीपति तत्वों के प्रभाव से निकलकर उनके षड्यंत्रों से सावधान रहते दूरी बनानी होगी और श्रमजीवी यानी पुरुषार्थी वर्ग को अपने सीने से लगाकर वापस अपना बनाना होगा, क्योंकि भूतकाल में भी यही श्रमजीवी वर्ग हमारी सहयोगी था और आज भी सत्ता पर प्रभाव इसी वर्ग को साथ लेकर कायम किया जा सकता है| महान क्षत्रिय चिन्तक स्व. कुंवर आयुवानसिंहजी शेखावत ने इस विषय पर 1956 में लिखी पुस्तक “राजपूत और भविष्य” के “नई प्रणाली : नया दृष्टिकोण” नामक पाठ में विस्तार से प्रकाश डाला है| राजनीति में अपना भविष्य देखने वाले राजपूत युवा उक्त लेख पढ़कर, मनन कर अपना राजनैतिक भविष्य संवार सकते है| यह लेख यहाँ क्लिक कर पढ़ा जा सकता है|
यह लेख बहोत अच्छा है। पढ कर मन मे कई सवाल आए की श्रमजीवी जाति क्या OBC से है पर सभी सवालो के ज्वाब अन्य लेख मे मिल गए 😉
कुन्नु जी श्रमजीवी जातियां SC/St & OBC में है कुछ जनरल में | श्रमजीवी मतलब जो परिश्रम कर अपने पुरुषार्थ के बल पर कमाए, सिर्फ दिमाग से नहीं|