गांवों में अक्सर एक साधारण सा आदमी जिसने न तो पढ़ाई लिखाई की हो और न ही कहीं बाहर घुमा हो, किसी बड़े मुद्दे पर एक छोटी सी बात बोलकर इतनी बड़ी सलाह दे जाता है कि सम्बंधित विषय के बड़े-बड़े जानकार भी सुन कर चकित हो जाते है, उसकी छोटी सी चुटीली बात में भी बहुत बड़ा सार छुपा होता है | मै यहाँ एक ऐसी ही छोटी सी बात का जिक्र कर रहा हूँ जिस बात ने अपने खोये पैत्रिक राज्य को पाने के लिए संघर्ष कर रहे एक राजा का इतना बड़ा मार्गदर्शन कर दिया कि वह इस छोटी बात से सबक लेकर अपनी गलती सुधार अपना पैत्रिक राज्य पाने में सफल हुआ |
मै यहाँ जोधपुर के संस्थापक राजा राव जोधा की बात कर रहा हूँ | यह बात उस समय की जब राव जोधा के पिता और मारवाड़ मंडोर के राजा राव रिड़मल की चित्तोड़ में एक षड़यंत्र के तहत हत्या कर मेवाड़ी सेना द्वारा मंडोर पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया गया | मंडोर उस समय मारवाड़ की राजधानी हुआ करती थी | राव जोधा ने अपने भाईयों के साथ मिलकर अपने पिता के खोये राज्य को पाने के लिए कई बार मंडोर पर हमले किए लेकिन हर बार असफल रहा |
उसी समय राव जोधा मेवाड़ की सेना से बचने हेतु एक साधारण किसान का वेश धारण कर जगह-जगह घूम कर सेन्ये-संसाधन इक्कठा कर रहे थे | एक दिन कई दूर चलते-चलते घुमते हुए भूखे प्यासे हताश होकर राव जोधा एक जाट की ढाणी पहुंचे, उस वक्त उस किसान जाट की पत्नी बाजरे का खिचड़ा बना रही थी,चूल्हे पर पकते खिचडे की सुगंध ने राव जोधा की भूख को और प्रचंड कर दिया | जाटणी ने कांसे की थाली में राव जोधा को खाने के लिए बाजरे का गरमा -गर्म खिचड़ा परोसा | चूँकि जोधा को बड़ी जोरों की भूख लगी थी सो वे खिचडे को ठंडा होने का इंतजार नही कर सके और खिचड़ा खाने के लिए बीच थाली में हाथ डाल दिया, खिचड़ा गर्म होने की वजह से राव जोधा की अंगुलियाँ जलनी ही थी सो जल गई | उनकी यह हरकत देख उस ढाणी में रहने वाली भोली-भाली जाटणी को हँसी आ गई और उसने हँसते हुए बड़े सहज भाव से राव जोधा से कहा – “अरे भाई क्या तुम भी राव जोधा की तरह महामूर्ख हो ” ?
राव जोधा ने उस स्त्री के मुंह से अपने बारे में ही महामूर्ख शब्द सुन कर पूछा – ” राव जोधा ने ऐसा क्या किया ? और मैंने ऐसा क्या किया जो हम दोनों को आप महामूर्ख कह रही है “?
तब खेतों के बीच उस छोटी सी ढाणी में रहने वाली उस साधारण सी स्त्री ने फ़िर बड़े सहज भाव से कहा– ” जिस प्रकार राव जोधा बिना आस-पास का क्षेत्र जीते सीधे मंडोर पर आक्रमण कर देता है और इसी कारण उसे हर बार हार का मुंह देखना पड़ता है, ठीक उसी तरह मेरे भाई तुमने भी थाली में किनारे ठंडा पड़ा खिचड़ा छोड़कर बीच थाली में हाथ डाल दिया, जो जलना ही था |इस तरह मेरे भाई तुमने भी राव जोधा की तरह उतावलेपन का फल हाथ जलाकर भुक्ता |
उस साधारण सी खेती-बाड़ी करने वाली स्त्री की बात जो न तो राजनीती जानती थी न कूटनीति और न युद्ध नीति ने राव जोधा जैसे वीर पुरूष को भी अपनी गलती का अहसास करा इतना बड़ा मार्गदर्शन कर दिया कि राव जोधा ने उसकी पर अमल करते हुए पहले मंडोर के आस-पास के क्षेत्रों पर हमले कर विजय प्राप्त की और अंत में अपनी स्थिति मजबूत कर मंडोर पर आक्रमण कर विजय प्राप्त कर अपना खोया पैत्रिक राज्य हासिल किया, बाद में मंडोर किले को असुरक्षित समझ कर राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव डाल अपने नाम पर जोधपुर शहर बसाया |
बात बाजरे के खिचडे की चली है तो अब लगते हाथ बाजरे के खिचडे पर राजस्थानी लोक गीत भी सुन लीजिये| बजरिया थारो खिचडो Download
छोटी सी कहानी है, पर इससे बडी सीख लेने वाली बात आज भी मौजूद है. अक्सर हम जीवन मे इस शिख्षा को मान कर चले तो हमारे आज के जीवन की बहुत सी विसंगतियां दूर हो सकती हैं.
असल मे जीवन मे बडे गोल को प्राप्त करने के लिये हमेशा पहला एक छोटा सा कदम बढाना जरुरी होता है ना कि सीधे मन्जिल पर पहुंचने की उतावली.
बहुत बहुत प्यारी लगी आज की बात.
रामराम.
बहुत सही कहानी। ज़ल्दबाज़ी या शार्टकट से सफ़लता नही मिलती।
ज्ञान के लिये बडा आदमी होना जरूरी नही है । राजस्थान के गांवों मे सरलता के साथ ही ज्ञानी जन भी बहुत मिल जाते है । इसी प्रकार कि एक ऐतिहासिक कहानी और भी है जिसमें रोटी का उदाहरण दिया गया था । सम्पूर्ण कहानी मुझे याद नही है इतिहास से मेरी पुरानी दुश्मनी रही है ।
अक्षरों की जानकारी ना होना बुद्धिहीनता का प्रतीक नहीं है. उस किसान की पत्नी ने अपनी सहज बुद्धि से जैसे अपने बच्चों को समझती वैसी ही बात राजा से भी कह दी लेकिन इसी बात ने राव जोधा की अकल ठिकाने लगा दी. सुंदर कहानी. बजरिया थारो खिचडो वाला गीत भी अच्छा लगा. आभार.
गांव देहात में ऐसे कई उदाहरण मिलते है.. सहज बात बडे़ बडे़ ज्ञानी को चकित कर देती है.. उत्तम//
गावँ के लोग अनुभव के मामले में शहरियों से बहुत आगे होते हैं !
ज्ञान हर जगह होता है..पर फलने फूलने की संभावना नहीं होने से छिपे ज्ञान का पता नही चल पाता…..अलग अलग क्षेत्र में कोई भी किसी का गुरू हो सकता है।
बहुत बढीया लेख, मार्गदर्सन करने वाला लेख है।
तो आज पता चला की एक ही बार 13वी क्लास मे पढने से पहले नर्सरी और एल.केजी के दर्सन करने पडते हैं
शेखावत जी बेहतरीन दृष्टांत की प्रस्तुति के लिये आभार…
सुन्दर सीख!
Are bhai ye to same to same copy h Chandragupta or Chankya ki story se..