राव विरमदेव के स्वर्गवास होने के बाद राव जयमल मेड़ता के शासक बने, चूँकि जयमल को बचपन से ही जोधपुर के शक्तिशाली शासक राव मालदेव के मन में मेड़ता के खिलाफ घृणा का पता था, साथ ही जयमल राव मालदेव की अपने से दस गुना बड़ी सेना का कई बार मुकाबला कर चुका थे| अत: उन्हें विश्वास था कि मालदेव मौका मिलते ही मेड़ता पर आक्रमण अवश्य करेंगे| सो उन्होंने शुरू से सैनिक तैयारियां जारी रखी और अपने सीमित संसधानों के अनुरूप सेना तैयार की| हालाँकि जोधपुर राज्य के सामने उसके पास संसाधन क्षीण थे|
आखिर संवत १६१० में राव मालदेव विशाल सेना के साथ मेड़ता पर आक्रमण हेतु अग्रसर हुए| जयमल चूँकि जोधपुर की विशाल सेनाएं अपने पिता के राज्यकाल में देख चुके थे, उन्हें पता था कि जोधपुर के आगे उनकी शक्ति कुछ भी नहीं| सो उन्होंने बीकानेर से सहायता लेने के साथ ही मालदेव से संधि कर युद्ध रोकने की कोशिश की, चूँकि सेनाओं में दोनों और के सैनिक व सामंत सभी आपसी निकट संबंधी ही थे सो जयमल नहीं चाहते थे कि निकट संबंधी या भाई आपस में लड़े मरे, सो उन्होंने मालदेव के एक सेनापति पृथ्वीराज जैतावत को संदेश भेजकर संधि की बात की व भाईचारा कायम रखते हुए युद्ध बंद करने हेतु अपने दो सामंत अखैराज भादा व चांदराज जोधावत को अपना दूत बना मालदेव के शिविर में भेजा|
जयमल के दूतों ने मालदेव से युद्ध रोकने की विनती करते हुए कहा जयमल का संदेश दिया कि– “हम आप ही के छोटे भाई है और आपकी सेवा चाकरी करने के लिए तैयार है सो हमसे युद्ध नहीं करे|” राव मालदेव ने बड़े अहम् भाव से दूतों से कहा – “अब तो हम जयमल से मेड़ता छिनेंगे|” दूत अखैराज ने कहा- “मेड़ता कौन लेता है और कौन देता है, जिसने आपको जोधपुर दिया उसी ने हमको मेड़ता दिया|”
इस पर राव मालदेव ने व्यंग्य से कहा – “जयमल के सामंत निर्बल है|”
चूँकि दोनों दूत अखैराज व चांदराज जयमल के प्रमुख सामंत थे सो राव मालदेव का व्यंग्य बाण दोनों के दिलों को भेद गया और वे गुस्से से लाल पीले होते हुए उठ खड़े हुए| गुस्से से उठते हुए अखैराज ने राव मालदेव के सामने अपने गले में बंधा हुआ दुपट्टा हाथ में ले ऐसा जोर से झटका कि उसके तार-तार बिखर गये| अखैराज द्वारा अपना दम दिखाने के बाद सामंत चांदराज ने गुस्से से लाल पीले होते हुए पास ही खड़े एक घोड़े की काठी के तंग पकड़कर घोड़े को ऊपर उठा अपना बल प्रदर्शित किया| और दोनों वहां से चले आये|
मुंहता नैणसी अपनी ख्यात में लिखता है कि- दोनों के चले जाने बाद राव मालदेव ने अपने सामंतों से दुपट्टे के झटके लगवाये पर कोई सामंत झटका मार कर दुपट्टे के तार नहीं निकाल सका| इस तरह जयमल द्वारा की गई शांति की कोशिश विफल हुई, दोनों के मध्य युद्ध हुआ, मेड़तीयों ने संख्या बल में कम होने के बावजूद इतना भीषण युद्ध किया कि जोधपुर की सेना को पीछे हटना पड़ा और राव मालदेव को जान बचाने हेतु युद्ध भूमि से खिसकना पड़ा|
काश ऐसे महाबली योद्धा छोटे छोटे मामलों को लेकर आपस में ना उलझते तो आज देश का इतिहास और वर्तमान अलग ही होता !!
सुंदर और जानकारी भरा ऐतिहासिक प्रसंग, आभार.
रामराम.
bahut badiya
सुंदर और जानकारी भरा ऐतिहासिक प्रसंग, आभार.