जो लोग भारत को पिछड़ा हुआ कहता हैं, भारत की कुरीतियों पर जमकर बोलते हैं लिखते हैं| उन्हें प्राचीन भारत का अध्ययन करना चाहिए| विशेषतः इस्लाम पूर्व भारत का अध्ययन। यही एक सर्वसिद्ध तथ्य है कि भारत की अनेक कुरीतियाँ विशेषकर स्त्रियों से जुड़े कुरीतियाँ भारत में मुस्लिमों के आने के बाद आई हैं चाहे वो पर्दा प्रथा हो चाहे स्त्रियों की अशिक्षा, उन पर अत्याचार या उनके प्रति अपराध का मामला हो। इसके स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध है मुस्लिम आक्रान्ता धन के साथ स्त्रियों की भी लूट करते थे उन्हें भोग की वस्तु की तरह मानते थे। स्त्रियों को लूट लेना उनके साथ बलात्कार, यौन अत्याचार, उन्हें अपने हरम में कैद रखना ये सब भारत को इस्लामिक आक्रान्ताओ की देन है जिससे भारत का महान समाज पुर्णतः अपरिचित था। राजाओं के बीच युद्ध राज्य हस्तगत करने एवं शत्रु को दंड देने, उसके दमन तक सिमित होते थे । आम जन पर अत्याचार और उसमे भी स्त्रियों के साथ बलात्कार इस देश की महान पावन धरती पर एक अकल्पनीय विषय था, जो करना तो दूर कोई उसके बारे में सोच भी नहीं सकता था।
भारत में तो न केवल स्त्रियों का अत्यंत सम्मान था बल्कि राज काज में भी उनका दखल रहता था। एक से एक विदुषियां यहाँ हुयी है। विवाह के मामलों में भी वो स्वतंत्र थीं । न केवल अपने वर चुनने को लेकर, बल्कि प्रेम विवाह तक की उन्हें स्वीकृति थी। स्वयंवर के तो हमें अनेक उदाहरण मिलते ही हैं प्रेम विवाह भी वर्जित नहीं था।
इस्लाम पूर्व भारत जहाँ शांत, शिक्षित, उन्नत-सहिष्णु था, जहाँ स्त्रियाँ पुर्णतः स्वतंत्र इकाई थी, जो अपने फैसले लेने के लिए स्वाधीन थी। स्त्रियों की दशा उन्नत एवं जीवन उन्मुक्त था। समाज में स्त्री अपराध पाप थे जो वस्तुतः नगण्य थे और यदि ऐसा कुछ होता था तो उसकी सजा के प्रावधान बहुत कड़े थे। लोग यौन कुंठाओं तथा कलुषित भावनाओं से मुक्त थे। अजंता एलोरा की गुफाएँ हो या खजुराहो या कोणार्क के मंदिर हों, या फिर महर्षि वात्स्यायन द्वारा लिखा गया भारत का एक प्राचीन कामशास्त्र कामसूत्र हो। सभी यही इंगित करते हैं कि भारतीय खुला जीवन जीते थे जिसमे यौन उच्च्श्रन्ख्लायें वर्जित नहीं थीं।
उस काल में आये सभी विदेशी यात्रियों ने अपनी पुस्तकों में भारतीय जीवन का वर्णन किया है। यहाँ में एक ऐसा उदहारण उद्धृत करना चाहता हूँ जो आपको 7 वीं सदी के भारत के जीवन का स्पष्ट परिचय देगा। यह समय है लगभग 620 के बाद का समय है जब महान सोलंकी क्षत्रिय शासक पुलकेशिन द्वितीय ने जिसका शासन क्षेत्र महाराष्ट्र था और जो उस समय दक्षिण का सबसे सशक्त शासक था । जिसकी साख भारतवर्ष के तत्कालीन सर्वशक्तिशाली सम्राट हर्षवर्धन बैस के आक्रमण को विफल करने के कारण पूरे भारत तथा विदेशों तक फ़ैल चुकी थी। अरबी इतिहासकार तबरी के अनुसार, “ईरान के तत्कालीन बादशाह खुस्त्रौं का एलची (दूत) पुल्केशि के पास पत्र और तुहफा (उपहार) लेकर आया था” ।
यहाँ मैं आपको ईरानी बादशाह के दूतमंडल के चालुक्य राजा पुलकेशिन के दरबार में आने के समय बनाये गए सुन्दर रंगीन चित्र का आपको वर्णन देता हूँ जो प्रसिद्ध अजंता की गुफा में अब भी विधमान है जिन्हें पेंटिंग ऑफ़ अजंता के नाम से जाना जाता है।
पुलकेशिन द्वितीय के दरबार का जो सजीव वर्णन इस चित्र के माध्यम किया गया है उसे जानकार आपको अत्यंत आश्चर्य होगा विशेषकर उस समय के भारत की स्त्रियों के वस्त्र विन्यास के बारे में जानकर। आज की तथाकथित आधुनिक युवतियां भी उनके आगे कुछ नहीं।
“राजा गद्दी बिछे हुए सिंहासन पर लम्ब्गोलाकृतिक तकिये के सहारे बैठा हुआ है। आसपास चमर तथा पंखा करने वाली स्त्रियाँ, तथा अन्य परिचारक स्त्री पुरुष, कोई खड़े और कोई बैठे हुए हैं। राजा के सन्मुख बाईं और तीन पुरुष और एक लड़का सुन्दर मोतियों के आभूषण पहिने हुए बैठे हैं। जो राजा के भाई कुंवर या अमात्य वर्ग से लग रहे हैं राजा के सिर पर मुकुट, गले में बड़े बड़े मोती व माणक की एक लड़ी कंठी, और उसके नीचे सुन्दर लडाऊ कंठा है । दोनों हाथों में भुजबंध और कड़े हैं। जनेऊ के स्थान पर पचलड़ी मोतियों की माला है, जिसमे प्रवर के स्थान पर पांच बड़े मोती हैं, पोशाक में आधी जांघ तक कछनी , और बाकि सारा शरीर नंगा है। दक्षिणी लोग जैसे समेट कर दुपट्टा गले में डालते हैं, उसी प्रकार समेटा हुआ केवल एक दुपट्टा कन्धों से हटकर पीछे के तकिये पर पड़ा हुआ है । राजा का शरीर प्रचंड, पुष्ट और गौर वर्ण है । दरबार में जितने भी हिन्दुस्तानी पुरुष हैं उनके शरीर पर आधी जांघ तक कछनी के सिवाय कोई दूसरा वस्त्र नहीं है, और नाही किसी के दाढ़ी या मूंछ है। स्त्रियों के शरीर का कमर से लगाकर आधी जांघ या कुछ नीचे तक का हिस्सा वस्त्र से ढंका हुआ है, और स्तनों पर कपडे की पट्टी बंधी हुयी है, बाकि सारा शरीर खुला हुआ है । ईरानी और हिन्दुस्तानियों की पोशाक में दिन रात का अंतर है। जबकि हिन्दुस्तानियों का सारा शरीर खुला हुआ है उनका दोगुना ढंका हुआ है। उनके सिर पर लम्बी ईरानी टोपी, कमर तक अंगरखा, चुस्त पायजामा, और कितनों के पैरों में मौजे भी हैं, और दाढ़ी मूंछ सबके है
Editor “Shauryagatha Aarambh Naye Yug ka “
Ratan Singh Shekhawat ji namaskar aapke paas anmol dharowar hai mai aapke post padhta rehta hoon atulya