पिछला वर्ष आन्दोलनों व बड़े बड़े घोटालों के उजागर होने वाला वर्ष रहा| एक के बाद उजागर हुए घोटाले और अन्ना, बाबा रामदेव व केजरीवाल आदि लोगों द्वारा काले धन, लोकपाल व भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आंदोलन हुए| केजरीवाल और अन्ना को भ्रष्टाचार से त्रस्त व उद्वेलित युवाओं ने पुरा समर्थन दिया व उनके आन्दोलनों को सफल बनाया जो युवाओं का कर्तव्य भी था और संवेदनशीलता भी| देश की किसी भी व्यवस्था में यदि कोई गडबड़ी आती है तो उसका दुष्परिणाम युवाओं को भी ताजिंदगी भुगतना पड़ता है और इस तरह व्यवस्था में आई गडबड़ी को दुरस्त करने के लिए युवाओं द्वारा आंदोलित होना और आन्दोलनों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना उनका कर्तव्य है जिसे युवाओं ने दिल्ली में हुए पिछले कई आन्दोलनों में निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी|
पर सवाल यह है कि- क्या युवाओं का कर्तव्य सिर्फ आन्दोलनों भाग लेने व उन्हें सफल बनाने तक ही सीमित है ? शायद नहीं ! उनका यह कर्तव्य तभी पुरा हो सकता है और उनके सपनों का भ्रष्टाचार मुक्त देश तभी बन सकता है जब वे अपने जीवन में भी ईमानदारी व नैतिकता अपनाये| स्कूल कालेज में पढ़ने वाला युवा यह भी देखे कि उसकी सुविधाओं पर खर्च होने वाला धन उसका पिता कहीं भ्रष्टाचार से तो नहीं कमा रहा ? पर पिछले आन्दोलनों में बढ़ चढ़कर भाग लेने वाले कई युवाओं को जिन्हें मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ अपने पिताओं द्वारा उन्हें उपलब्ध कराई सुविधाओं के लिए जो धन खर्च हुआ उनके अर्जित संसाधनों पर शायद ही कभी ध्यान दिया हो|
ऐसे कई लोग अक्सर मिलते है जो नेताओं के भ्रष्टाचार से उद्वेलित होते है पर कभी उन्होंने अपने अंदर नहीं झाँका ! पेश है ऐसे ही एक भ्रष्टाचार उद्वेलित आंदोलनकारी का उदाहरण-
बयानवीर अन्ना आंदोलन के बाद जब भी मिलता है वह उद्वेलित ही मिलता है और उसकी एक ही प्रतिक्रिया होती है- “इन भ्रष्ट नेताओं व अधिकारियों को तो गोली मार देनी चाहिए| इन्होंने देश को कंगाल कर दिया| “ और न जाने भ्रष्टाचार व भ्रष्ट लोगों के खिलाफ वह कितनी ही बातें बिना रुके एक ही साँस में कह जाता है|
उसे देख यह लगता है कि- भ्रष्टाचार के मामले में इससे ज्यादा कोई पीड़ित होगा ही नहीं और इससे बड़ा कोई ईमानदार भी शायद ही तलाशे मिले| पर अब जानिये इस उद्वेलित आंदोलनकारी की असलियत जो मैं बड़ी नजदीक से व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ-
बयानवीर एक कपड़ा रंगाई की फैक्ट्री में रंगाई विभाग का हेड था, मेरा उस फैक्ट्री में अक्सर कपड़ा रंगाई के सिलसिले में आना जाना पड़ता था| बयानवीर द्वारा मेरी कम्पनी के लिए रंगे कपड़े की गुणवत्ता ठीक नहीं होने के चलते मैं उसके रंगे कपड़े को अक्सर फ़ैल कर देता उसके बाद उस कपड़े को उसे ठीक करने के लिए मालिकों से भी झाड़ पड़ती| बआखिर किसी भी कपड़े के लिए दो दो बार कार्य करने से उसकी लागत भी बढती है| बयानवीर ने मुझे कई बार रिश्वत की पेशकश की कि मैं उसके द्वारा रंगे कपड़े को फ़ैल ना करूँ| और ऐसा करने के लिए वह नियमित मुझे अपनी फैक्ट्री से रिश्वत दिलाता रहेगा|मैंने उसके द्वारा रंगाई के लिए उपयोग किये जाने वाले कच्चे माल की खपत भी देखी जो आवश्यकता से ज्यादा होती थी| चूँकि फैक्ट्री मालिक बहुत भला व्यक्ति था और मेरी उससे अच्छी दोस्ती थी तो मैंने उसकी करतूत फैक्ट्री मालिक को बताई| फैक्ट्री मालिक ने मुझे तुरंत बतया कि रंगाई के लिए कच्चा माल मतलब रंग व केमिकल आदि की खपत ये ज्यादा करता है ताकि इनकी खपत ज्यादा हो और ज्यादा खरीद पर इसकी रिश्वत की राशि बढ़ जाए जो वह रंग-केमिकल सप्लाई करने वालों से लेता है| पर चूँकि मालिक को इस मामले में टेक्निकल ज्ञान नहीं था सो वह भुगत रहा था|
आखिर फैक्ट्री मालिक ने मुझे कोई ऐसा टेक्निकल व्यक्ति बुलाने को कहा जो उसका सहायक होने का नाटक कर उसकी करतूतें पकड़ें| मैंने यही किया एक टेक्निकल व्यक्ति फैक्ट्री मालिक को उपलब्ध कराया जिसनें वहां नौकरी लगने का नाटक कर उसके सहायक के तौर पर कार्य करते हुए उसके कार्य पर नजर रख उसकी हकीकत बताई| तब जाकर उस फैक्ट्री मालिक ने उसे वहां से निकाला|
अब बताईये ऐसा व्यक्ति उसी भ्रष्टाचार के खिलाफ उद्वेलित हो आन्दोलन में भाग ले उसका क्या फायदा? दरअसल लोग दूसरों से तो ईमानदारी की अपेक्षा रखते है पर खुद का आचरण नहीं बदलना चाहते|
बयानवीर को एक आध बार तो मैंने अनसुना कर दिया पर हर बार उसकी उत्तेजना मुझसे भी देखी ना गई| और मैंने उसे उसकी करतूत बताकर उसे अपने अंदर झाँकने को कहा तो वह चुप हो बगलें झांकना लगा व थोड़ी देर में बोला- “भाई साहब! हमने तो छोटा-मोटा घोटाला ही तो किया पर ये नेता ?
मैंने कहा- “यदि तुम्हें भी नेताओं जैसा मौका मिला होता तो तुम भी नेताओं जितना बड़ा घोटाला करने से नहीं चुकते|”
बयानवीर के पास कोई जबाब नहीं था| उस दिन जब मैंने उसे कड़वी सच्चाई से अवगत कराया तब से वह मेरे आगे भ्रष्टाचार पर नहीं बोलता और हाँ ! जहाँ वह बैठा उद्वेलित हो भाषण झाड़ रहा होता है मेरे पहुंचते ही चुप्पी लगा लेता है| अब तो उसका भाषण सुन रहे लोग भी उससे बीच में मजाक कर लेते है कि- “वे भाई साहब आ रहे है|” और सुनते ही बयानवीर की नजरें रास्ते पर टिक जाती है|
जब तक हम अपना स्वयं का आचरण नहीं सुधारेंगे तब तक समाज नहीं सुधरने वाला| क्योंकि समाज भी हम जैसी इकाइयों से मिलकर ही बना है| यदि हम सभी समाज के सदस्य सद्चरित्र हों तो फिर किसी आंदोलन की हमें जरुरत ही नहीं|
बहुत सही कहा आपने, हम खुद छोटी छोटी अनैतिकता करते हैं सिर्फ़ दूसरों की बडी अनैतिकता की आड में. जब तक हम खुद नही सुधरेंगे तब तक दूसरों की आशा करना बेकार है.
रामराम
और गहराई से खुदाई करेंगे तो करीब करीब हमाम में नंगे मिलेंगे 🙂
जय जवान जय किसान जय हिन्द – ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
दूसरों से हम ईमानदारी की अपेक्षा रखते है पर खुद का आचरण नहीं बदलना चाहते|
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए…
सच कहा आपने, छोटी छोटी कमजोरियों ने सब जर्जर कर डाला है..
बहुत सुन्दर आलेख एक समस्या की तरह आर्कशित किया धन्यवाद
पत्र्कार जी कुछ समय पूर्व जो घटना घटी उसका हल्ला बाजार सडको यहा तक संसद मे भी हुआ पर श्रीमान जी जब पाक द्वरा तो जाबांजो का सर काट दिया जाता है तो कुछ नही होता कोई एक मोमबत्ती भी नही जलाता है यह बात ही मै आपके उस दिन लेख मे रखना चाह रहा था और आज वह आपके साथ सत्य उजागर भी हो गया है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-12-2013) को (मोटे अनाज हमेशा अच्छे) चर्चा मंच-1123 पर भी होगी!
सूचनार्थ!
यही दोहरा और दोगला चरित्र आज सबसे बडी समस्या है , सच कहा जाए तो भ्रष्टाचारियों और भ्रष्टाचारियों से भी बडी । आपसे पूर्णत: सहमत ।