बीसवीं सदी में जयपुर में कई बड़े मुस्लिम सूफी संत हुए, जिनका बड़ा नाम रहा और मुसलमान समाज में बड़ा सम्मान रहा| इनमें मौलवी हिदायतअली साहिब उक्त शताब्दी के बड़े सूफी संत हुए| उनके पौत्र खेजड़े के रास्ते वाले मौलवी साहिब का भी बड़ा नाम रहा| जयपुर के रामगंज के सूफी बाबा अल्लाहजिलाय साहिब व हाजीबाबा बगदादी व हाजी बंधू अब्दुल्ला शाह और अहमद शाह उस वक्त के सूफी संतों में बड़े नाम थे| लेकिन ये सूफी संत संत थानेदार रामसिंहजी भाटी को अपने से बड़ा संत व औलिया समझते थे| यही कारण था कि जब भी संत ठाकुर साहिब इन सूफी संतों से मिलते तब उम्र में बड़े होने के बावजूद मुस्लिम सूफी संत खड़े होकर संत ठाकुर को सलाम करते|
एक बार संत ठाकुर खेजड़े वाले मौलवी साहब से मिलने उनके मकान पर पहुँच गए| आपने अदब के लिहाज से अपनी जूतियाँ नीचे सीढियों में ही खोल दी| दोनों संतों के बीच बहुत समय तक वार्तालाप चलता रहा| जब वापस आने को हुए तो मौलवी सीढियों में पहले उतरे और लपककर नीचे पड़ी जूतियाँ अपने दोनों हाथों में उठा लाये और ऊपर सीढियों में संत ठाकुर साहिब के सामने रख दी| संत ठाकुर यह दृश्य देख बोले- “मौलवी साहिब ! आपने यह क्या किया?”
मौलवी साहब हाथ जोड़कर बड़े अदब से बोले- “मैं तो मुसलमान हूँ, आपको एक गिलास पानी भी नहीं पिला पाया| आप एक औलिया हैं| मैं आपकी क्या खिदमत करने लायक हूँ|” इस पर संत ठाकुर साहिब ने मुस्कराकर कहा- “आप पानी की बात करते हैं, मुझे तो आपने अमृत पिला दिया| मेरी जूतियों के हाथ लगाकर आपने मुझे खरीद लिया है|” यह सुनते ही मौलवी साहिब की आँखें भर आई| उस काल इसी तरह के व्यवहार से हिन्दू मुसलमान के तटबंधों को तोड़कर राजस्थान की मरूभूमि में विशुद्ध प्रेम की धारा प्रवाहित हो जाया करती थी| यही कारण था गोल साफे वाले हिन्दू सूफी संत ठाकुर रामसिंहजी भाटी का मुसलमानों संतों के बीच बड़ा आदर था जो धर्म से अनुप्रमाणित मानव संस्कृति का उज्जवल आयाम है|
आपको बता दें संत ठाकुर साहिब राजस्थान पुलिस में थानेदार थे और उनकी ईमानदारी व भक्ति की चर्चा पूरे राजस्थान में फैली थी| आज भी उनकी समाधि पर हजारों श्रद्धालु मत्था टेकने जाते हैं|