अलाउद्दीन खिलजी की सेना में कुछ मंगोल सैनिक थे, जिन्होंने गुजरात विजय के दौरान लूटपाट में मिली राशि का 1/5 वां हिस्सा भी खिलजी के सेनापति उलूगखां द्वारा मांगने पर नहीं दिया और अपने सरदार मुहम्मदशाह के नेतृत्व में बगावत कर दी| पहले इन मंगोलों ने खिलजी की सेना के खिलाफ जालौर के कान्हड़देव का साथ दिया| ज्ञात हो उक्त युद्ध में खिलजी की सेना को भागना पड़ा था| बाद में मुहम्मदशाह रणथम्भोर के शासक हमीरदेव चौहान की शरण में चला गया|
खिलजी ने हमीरदेव से इन विद्रोहियों को माँगा, पर हमीर ने मना कर दिया अत: 1299 ई. में उलूगखां, अलपखां और वजीर नसरतखां के नेतृत्व में एक बहुत बड़ी सेना भेजी| यह सेना बनास नदी तक पहुंची तो आगे उबड़-खाबड़ जगह होने के कारण असुरक्षित समझ बनास के किनारे डेरा डाला गया और हमीर के राज्य को गांवों की खेती बर्बाद की जाने लगी तब हमीर ने धर्मसिंह व भीमसिंह के नेतृत्व में सेना भेजी, जिनका मुकाबला खिलजी की सेना नहीं कर सकी और भाग खड़ी हुई| लेकिन लौटती हुई हमीर की सेना की पीछे रही टुकड़ी के भीमसिंह को उसके सैकड़ों साथियों को मार कर दिया|
इस विफलता के बाद हमीर के कुछ विद्रोहियों के उकसावे पर खिलजी ने फिर उन्हीं सेनापतियों के नेतृत्व में एक सेना भेजी| जिनका मुकाबला हमीर के भाई वीरम, सेनापति रतिपाल, जाजदेव, रणमल और मंगोल मुहम्मदशाह ने किया| हिन्दुवाट की घाटी में हुई इस मुठभेड़ में खिलजी की सेना को परास्त होना पड़ा| नयनचन्द्रसुरि ने लिखा है कि शत्रुओं की स्त्रियों को बंदी बनाया गया और उन्हें गांव गांव मट्ठा बेचने को लगाया गया|
यही नहीं खिलजी की सेना को उकसाकर लाने वाले भोज की जागीर पर मंगोलों ने आक्रमण किया और उसके परिजनों को बंदी लाकर हमीरदेव के सामने रणथम्भोर ले आये| रणथम्भोर पर कई विफलताओं के बाद खिलजी बड़ी सेना लेकर खुद आया और कई माह के घेरे के बाद हमीर के शाका कर विजय पाई, लेकिन गफलत में रणथम्भोर में महिलाएं जौहर में कूद पड़ी| इस अनायास हुई दुर्घटना के बाद हमीर ने अपना सिर काटकर मंदिर में चढ़ा दिया और खिलजी हारा हुआ युद्ध जीत गया|
Dhanayawaad Ratan Singh ji aapke post bahut ache hote hai maine Maharaja Hammir Dev ji Chauhan ki kahaniyan suni hai bahut he ache Raja thay woh Hammir hati ke naam se unko jaana jaata tha