मुग़ल बादशाह अकबर ने भारत की कुछ देशी रियासतों को छोड़कर ज्यादातर से संधि कर अपनी अधीनता स्वीकार करवा ली थी| लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि बादशाह अकबर उन राजाओं पर अपनी हर मर्जी थोप देता था, या फिर भी वे राजा बादशाह अकबर की हर बात गर्दन झुकाकर मान लेते थे| बादशाह अकबर के साथ संधियाँ होने के बावजूद देशी राजा अपने स्वाभिमान पर चोट बर्दास्त नहीं करते थे| ऐसे कई उदाहरण इतिहास के पन्नों पर दर्ज है जहाँ स्वाभिमान की बात आई अकबर के मातहत राजाओं ने खुला विद्रोह किया और अकबर ने ऐसे मामलों को बल प्रयोग से नहीं शांति से उनके सामने झुककर झुलाया|
ऐसा ही एक वाकया हुआ वि. सं. 1640 में| जोधपुर के राजा उदयसिंह जी की पुत्री अपने मृत पति के साथ सहगमन कर सती हो गई| अकबर सती प्रथा रोकना चाहता था| अत: इसी बात को लेकर बादशाह अकबर व जोधपुर के राजा उदयसिंह के मध्य काफी कहा सुनी हो गई| इस कहासुनी में राजा उदयसिंह क्रोधित हो गए और उन्होंने तलवार खेंच कर बादशाह अकबर पर हमला कर दिया, किन्तु उस समय राजा रायसल दरबारी व जगन्नाथ कछवाह ने राजा उदयसिंह को पकड़ लिया और अकबर की जान बच गई| यदि जगन्नाथ कछवाह व रायसल दरबारी उदयसिंह को रोकने में थोड़ी से देर कर देते तो अकबर उसी समय राजा उदयसिंह के वार में मारा जाता|
अपने मातहत राजा द्वारा इतनी दृष्टता करने पर जाहिर है उसे कड़ी सजा मिलती, लेकिन बादशाह अकबर इस घटना के बाद के भी शांत रहा और उदयसिंह पर किसी तरह की कार्यवाही करने के बजाय उन्हें माफ़ कर दिया| आपको बता दें जोधपुर के राजा उदयसिंह जी को जोधपुर का राज्य पैतृक रूप से नहीं मिला था, वे जोधपुर की गद्दी पर बादशाह अकबर की मेहरबानी से ही बैठे थे| अत: उन पर बादशाह का यह सबसे बड़ा उपकार भी था, बावजूद जब उदयसिंह के स्वाभिमान की बात आई तब वे अकबर पर जानलेवा हमला करने से नहीं चूके| यह घटना साफ़ करती है कि बादशाह अकबर अपने अधीन राजाओं के स्वाभिमान पर चोट कर उन्हें जलील करने का कृत्य नहीं करता था, बल्कि किसी तरह उन्हें मैनेज कर अपने राज्य प्रसार व उसकी मजबूती के लिए ही प्रयोग करता था|