गौरक्षा के लिए रतनसिंह बालापोता द्वारा प्राणों के उत्सर्ग का समाचार रायांगणां के मांगलिया क्षत्रिय परिवार, जहाँ उसकी सगाई हुई थी, पहुंचा। तब उसकी मंगेतर मांगलियाणी कन्या रथ जुतवा कर मोरडूंगा गांव पहुंची और अपने मृत मंगेतर के शव के साथ चिता का आरोहण कर सती हो गई। सरवड़ी व पूरणपुरा गांव के कांकड़ पर उस सती का स्मारक स्वरूप मंदिर बना है। यह मंदिर आज भी अपनी मूकवाणी से क्षत्रिय कन्याओं को सतीत्व व पवित्रता की याद दिलाता है। पास में ही एक गांव लालासरी, जिसके बीचों बीच एक देवरी बनी है, जिसमें लिखा है- ‘‘वि.सं. 1908, बालापोता बलखेण के झुझार जी महाराज रतनसिंह।’’
इस घटना को घटित हुए आज सैंकड़ों वर्ष बीत गये। मोरडूंगा में इन्हीं झुझारजी महाराज का भादवा सुदि द्वादशी को मेला भरता है। ग्यारस की रात को जागरण होता है। मेले में आस-पास के ग्रामीणों के अलावा दूसरे प्रदेशों से श्रद्धालु पहुंचकर अपने आपको धन्य समझते है। राजपूत समाज के साथ ही सभी जातियों के लोग झुझारजी महाराज रतनसिंहजी को लोक देवता के रूप में पूजते है, जात जडुले चढ़ाते है, दहेड़ी चढ़ाते है, वर-वधु गठजोड़े के साथ जात देने आते है। जनमानस को इस पवित्र स्थान के चमत्कारों पर इतना विश्वास है कि वहां मनौतियाँ मांगी जाती है। विश्वास करने वाले बताते है कि यहाँ असाध्य रोगों के रोगी ठीक होकर गए है।
मंदिर में शराबी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है। मोरडूंगा के अलावा रतनसिंह के गांव बलखेण में भी झुझारजी का स्थान बना है। झुझार रतनसिंहजी का चरित्र आज भी हमें अपने कर्तव्यपथ पर चलने की प्रेरणा देता है और भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को देता रहेगा। कहा जाता है कि मंदिर से आज भी कर्तव्य परायण व्यक्तियों को एक ध्वनी सुनाई देती है, कि जो व्यक्ति अपने धर्म के लिए जीवन देता है, उसी की स्मृति में मेले लगते है। झुझारजी महाराज रतनसिंहजी के चमत्कारों से प्रभावित होकर आस-पास के गांव सेवदड़ा, लालासरी, पूरणपुरा, सरवड़ी, मावा सहित कई जगह उनके देवरे बने हुए है।
लेखक : नरेंद्रसिंह, निभैड़ा