आगरा का किला भारत का सबसे महत्वपूर्ण किला है। इस किले को सबसे ज्यादा सुरक्षित, सुविधाजनक व महफूज मानते हुए भारत के मुगल सम्राट बाबर, हुमायुं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां व औरंगजेब यहां रहा करते थे, व यहीं से पूरे भारत पर शासन किया करते थे। यहां राज्य का सर्वाधिक खजाना, सम्पत्ति व टकसाल थी। यहाँ विदेशी राजदूत, यात्री व उच्च पदस्थ लोगों का आना जाना लगा रहता था, जिन्होंने भारत का इतिहास रचा। लेकिन क्या आप जानते है कि आगरा जैसे सुरक्षित किले की सुरक्षा को भारत के वीरों ने चुनौती दी और इसकी सुरक्षा व्यवस्था को ठेंगा दिखाया।
जी हाँ ! हम बात कर रहे है उन भारतीय वीरों की जिन्हें आगरा का यह अति-सुरक्षित किला रोक नहीं पाया और उन वीरों ने अकेले या कुछ साथियों के साथ इस किले की सुरक्षा को धत्ता बता दिया था।
नागौर के राव अमरसिंह राठौड़ की वीरता से प्रभावित होकर बादशाह शाहजहाँ ने उन्हें राव का खिताब व नागौर का परगना देकर अपने पास रखा था। हाथी की चराई पर बादशाह की और से कर लगता था, जो अमर सिंह ने देने से साफ मना कर दिया था। सलावतखां द्वारा इसका तकाजा करने व अमर सिंह को कुछ उपशब्द बोलने पर स्वाभिमानी अमर सिंह ने बादशाह शाहजहाँ के सामने ही सलावतखां का वध कर दिया और खुद भी मुगल सैनिकों के हाथों लड़ते हुए किले में मारे गए। तब राव अमरसिंह राठौड़ का पार्थिव शव लाने के उद्देश्य से उनका सहयोगी बल्लू चांपावत आगरा किले में गया। मुगल सुरक्षा के बीच रखे अमरसिंह का शव घोड़े पर रखकर बल्लू चाम्पावत ने घोड़े को ऐड लगा दी। घोड़े सहित आगरा दुर्ग के पट्ठे पर जा चढा और दुसरे क्षण वहां से नीचे की और छलांग मार गया। मुगल सैनिक ये सब देख भौचंके रह गए। इस तरह वीर बल्लू चाम्पावत ने इस सुरक्षित किले की सुरक्षा व्यवस्था को अकेले ही धत्ता बता दिया।
ठीक इसी तरह वर्ष 1903 ई. में जब आगरा का किला अंग्रेजों के अधीन था, तब भी राजस्थान के वीरों ने इसकी सुरक्षा व्यवस्था को तोड़कर राजस्थान के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी डूंगजी (डूंगरसिंह शेखावत) को कैद से छुड़ा लिया था। डूंगजी को अंग्रेजों ने धोखे से पकड़ कर आगरा किले में कैद कर दिया। तब उनके साथी लोटिया जाट व सांवता मीणा ने वेश बदलकर किले की रैकी की। उनके द्वारा जुटाई सूचनाओं के आधार पर जवाहरसिंह ने अपने क्रान्तिकारी साथियों के साथ आगरा जैसे सुदृढ़ किले की सुरक्षा में सेंध लगाकर डूंगजी को कैद से छुड़ा लिया। इस कार्य में लोठूराम निठारवाल जो राजस्थानी साहित्य में लोटिया जाट के नाम से प्रसिद्ध है ने व सांवता मीणा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और कई वीर राजपूत शहीद भी हो गए थे|
इस तरह मुगल काल में बल्लू चाम्पावत व अंग्रेजी शासन में जवाहरसिंह शेखावत ने अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ इस अति सुरक्षित किले की सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ डाला था।