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Friday, June 9, 2023

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इन वीरों के आगे भी भागना पड़ा था खिलजी की सेना को

किसी भी शक्तिशाली राजा बादशाह की हार की घटना वाली इतिहास सम्मत बात लोगों को पचती नहीं, खासकर उस राजा, बादशाह आदि के स्वजातीय लोग तो उस घटना को बिना इतिहास पढ़े ही सिरे से ख़ारिज कर देते है| उनकी नजर में उनका नायक तो कभी हार ही नहीं सकता| ऐसा आजकल अलाउद्दीन खिलजी को लेकर भ्रम है कि जिस व्यक्ति ने मंगोलों को हराया, उसे यहाँ के छोटे-छोटे राजपूत शासक कैसे हरा सकते थे, पर यह हकीकत है कि कई युद्धों में खिलजी की सेना को पीठ दिखाकर भागना पड़ा था|

1298 ई. में जब खिलजी गुजरात विजय अभियान के लिए चला तब उसने जालौर के कान्हड़देव चौहान को उसकी सीमा में रास्ता देने का लिखा, लेकिन कान्हड़देव ने मना कर दिया| खिलजी ने इस बात की उपेक्षा की और उसकी सेना मेवाड़ के रास्ते गुजरात निकल गई| उसने काठियावाड़ को जीता और सोमनाथ मंदिर को खंडित किया| खिलजी की विजयी सेना लौटते समय जालौर की सीमा से गुजरते हुए डेरा डाला| इसी बीच खिलजी सेना के मंगोल सिपाहियों ने धन की लूट में हिस्से को लेकर बगावत कर दी| ये मंगोल सिपाही मुहम्मदशाह के नेतृत्व में कान्हड़देव से जा मिले|

रात में एक तरफ से अचानक कान्हड़देव की राजपूत सेना व दूसरी तरफ से मंगोल सिपाहियों ने आक्रमण किया| इस अप्रत्याशित आक्रमण के चलते खिलजी की सेना को पीठ दिखाकर भागना पड़ा| फ़ारसी तवारीखों में भी लौटती सेना का जालौर सीमा से गुजरना, मंगोलों का विद्रोह आदि बातें दर्ज है| खिलजी ने चितौड़ व रणथम्भोर विजय अभियानों के चलते, उस आक्रमण की उपेक्षा की और उन्हें विजय करने के बाद बदला लेने के लिए 1305 ई. में जालौर पर आक्रमण के लिए सेना भेजी|

इस बार खिलजी के सेनानायक एन-उल-मुल्क-मुल्तानी ने युक्ति से काम लिया और कान्हड़देव चौहान को गौरवपूर्ण संधि का आश्वासन दिलाकर उसे दिल्ली ले आया| हालाँकि कान्हड़देव की यह संधि ज्यादा वर्षों तक नहीं टिक सकी| दिल्ली में कान्हड़देव के कुंवर विरमदेव से खिलजी की एक शाहजादी फिरोजा प्रेम करने लगी| पहले उसे समझाया गया, पर जब वह ना मानी तब खिलजी द्वारा विरमदेव को उससे शादी करने का प्रस्ताव दिया गया| विरमदेव ने मुस्लिम महिला से शादी करना अपने कुल मर्यादा के खिलाफ समझा और वह बारात लेकर आने का बहाना कर दिल्ली से जालौर आ गया और शादी प्रस्ताव ठुकरा दिया| तब लज्जित होकर खिलजी ने जालौर तबाह करने के लिए सेना भेजी, कई सैन्य अभियान चलाने के बाद भी जब जालौर फतह नहीं हो सका, तब खिलजी स्वयं जालौर आया और कई वर्षों के घेरे के बाद आखिर उसने छल की नीति अपनाकर जालौर विजयी किया|

इस तरह 1298 ई. में शुरू हुई झड़प 1311 ई. में कान्हड़देव, कुंवर विरमदेव आदि सभी वीरों द्वारा शाका कर शहीद होने के बाद ख़त्म हुई| आपको बता दें इस युद्ध में भी राजपूत महिलाओं ने जौहर किया था| खिलजी कई वर्षों तक विजय नहीं पा सका तब विका दहिया नाम से एक व्यक्ति को लालच देकर किले की गुप्त जानकारी ली तब जाकर वह किला फतह कर सका|

मतलब यहाँ भी युद्ध जीतने के लिए खिलजी की ताकत व वीरता काम नहीं आई, बल्कि काम आई तो सिर्फ उसकी कूटनीति, छलनीति और कपटनीति| आपको यह भी बता दें कि जालौर से गद्दारी करने वाले की पत्नी को अपने पति की गद्दारी का पता चला तो उस वीर पत्नी हीरादे ने अपने पति को मार डाला था|

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1 COMMENT

  1. Rajputs were fool i.e ( non diplomatic) , as Panda made him fool name Ideology and now sad-fully Rajput are India’s poorest cast and still tey do not like to learn diplomacy .

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