पन्द्रह सौ घोड़े और पन्द्रह सौ खच्चरों पर हीरे जवाहरात, सोने चांदी जैसी मूल्यवान वस्तुओं का खजाना लदा था| बाखर से दिल्ली की ओर बढ़ रहे इस खजाने की सुरक्षा के लिए कोई 800 पठान व अन्य मुस्लिम सैनिक सुरक्षा में तैनात थे| यह खजाना अलाउद्दीन खिलजी द्वारा टटा और मुलतान आदि कई जगह के शासकों से नजराने के रूप में एकत्र किया गया था, जिसे कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच दिल्ली रवाना किया था| खजाने को लेकर जा रहे इस काफिले पर कृष्ण के वंशज दो यदुवंशी राजकुमारों की नजर पड़ी, उन्हें समझते देर नहीं लगी कि यह काफिला अथाह धन लेकर जा रहा है| बात की बात में दोनों ने उसे लूटने की योजना बना ली|
जी हाँ ! हम बात कर रहे है जैसलमेर के यदुवंशी शासक जैत्रसिंह भाटी के राजकुमार मूलराज व रतनसी की| ये दोनों भाटी राजकुमार बारह सौ ऊँटों व घुड़सवारों का दल लेकर अनाज के व्यापारी का भेष बना, खिलजी का खजाना लूटने चले और पंजनद के किनारे अपना पड़ाव डाला| जहाँ उन्हें खिलजी का धन ले जा रहा काफिला भी मिल गया| रात के समय इन यदुवंशी राजकुमारों ने खिलजी के काफिले पर हमला किया| उनके हमले में खिलजी के काफिले के अधिकतर लोग कत्ल कर दिए गए| सम्पूर्ण खजाने को लूट कर जैसलमेर किले में ले जाया गया|
खिलजी के उस काफिले में कुछ लोग किसी तरह बचने में सफल रहे, उन्होंने खिलजी को घटना की सूचना दी, तब खिलजी बड़ा क्रोधित हुआ| इस अपमान का बदला लेने के लिए खिलजी ने सेना तैयार कर कूच किया| खिलजी खुद अजमेर में रुका और खुरासानियों व कुरैशियों की एक बहुत बड़ी सेना नबाब महबूब खान के नेतृत्व में जैसलमेर भेजी| इस सेना ने जैसलमेर को जीतने के लिए आठ वर्ष तक घेरा डाले रखा| किले पर दो बार के हमले के समय खिलजी के हजारों सैनिक मारे गए| 1295 ई. के आखिरी हमले में नाकाम होने के बाद महबूब खान सेना लेकर पीछे हट गया|
इसी बीच महबूब खान के भाई को रतनसी किले में ले गया| महबूब के भाई ने जब देखा कि किले में खाद्य सामग्री ख़त्म हो चुकी है और सैनिक भी ज्यादा नहीं रहे, तब किसी तरह भागकर अपने भाई के पास पहुंचा और यह गोपनीय सूचना दी| तब महबूब खान ने जैसलमेर पर फिर आक्रमण किया| इस बार जैसलमेर के वीरों ने साका किया और महिलाओं ने जौहर किया| इस तरह आठ वर्षों के घेरे के बाद किला खिलजी की सेना के अधिकार में हो सका|